अभी-अभी: PAK की ओर से होने वाली घुसपैठ पर नेतन्याहू बोले-कारगिल युद्ध की तरह हमेशा दूंगा भारत का साथ

अभी-अभी: PAK की ओर से होने वाली घुसपैठ पर नेतन्याहू बोले-कारगिल युद्ध की तरह हमेशा दूंगा भारत का साथ

New Delhi: 26 जुलाई को शौर्य के 18 साल पूरे चुके हैं। देश भर में शौर्य यानी ‘कारगिल विजय दिवस’ के कई समारोह आयोजित किए गए लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस जीत पर हम गर्व से सीना चौड़ा करते हैं उस जीत में इजरायल ने अहम भूमिका निभाई थी। अगर इजरायल वक्त पर साथ न देता तो जीत में देरी होती और जानमाल का ज्यादा नुकसान होता।अभी-अभी: PAK की ओर से होने वाली घुसपैठ पर नेतन्याहू बोले-कारगिल युद्ध की तरह हमेशा दूंगा भारत का साथ‘मोदी का पलटा वार’ भ्रष्ट अफसरों पर होगी कड़ी नजर डोजियर तैयार करेगा विजिलेंस डिपार्टमेंट

शौर्य दिवस के मौके पर 18 साल बाद हम आपको युद्ध से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जिससे अब तक आप शायद अंजान थे। भीषण युद्ध के दौरान भारतीय सेना पाकिस्तान के सामने थोड़ी कमजोर साबित हो रही थी क्योंकि दुश्मन ऊपर था जवाबी कार्रवाई नीचे से करना थी। ऐसे मुश्किल समय में इजरायल भारत के लिए संकट मोचन बनकर उभरा।

 

 

नहीं थे बेहतर संसाधन

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साल 1999 में मई से जुलाई के बीच हुए इस युद्ध ने भारत को अपनी खामियों का पता चला। क्योंकि जिस तरह से कारगिल में पाकिस्तानी सेनाओं ने घुसपैठ की थी उससे खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा एजेंसियों और सेना के बीच बेहतर सामांजस्य न होने का पता चला। हालांकि इन सबसे इतर युद्ध के दौरान सेना का हौसला बुलंदियों पर था और इस बीच वे संसाधनों की कमी के बावजूद भी पाकिस्तान को धूल चटाने का माद्दा रखते थे।

 

विकराल हो सकता था युद्ध

एक रिपोर्ट के मुताबिक कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय फोर्स दुर्गम पहाड़ी इलाकों में लड़ने के लिए सक्षम नहीं थीं, क्योंकि जवानों को न तो कभी इसकी ट्रेनिंग दी गई थी और न ही उनके ऐसे हालातों को संभालने का अनुभव था। बावजूद इसके भारतीय सैनिक पाकिस्तान को खदेड़ रहे थें। इस बीच खबर यह भी थी कि सेना ने जवानों को सीमा में रहकर ही दुश्मनों को खदेड़ने के निर्देश दिए थे, क्योंकि सैनिक यदी एलओसी के पार जाता तो युद्ध विकराल हो सकता था।

 

पाकिस्तान ने ध्वस्त की टोही व्यवस्था

उस समय भारतीय वायुसेना के पास बेहतर और सटीक निशाना लगाने वाली मिसाइल लॉन्चिंग सिस्टम नहीं था। जिसके चलते पाकिस्तान के बंकरों को नेस्तेनाबूद करने में काफी दिक्कत हो रही थी। युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने वायुसेना के केनबरा पीआर-57 को ध्वस्त कर दिया जिसके चलते भारत की टोही व्यवस्था टूट गई। जिसके बाद लड़ाई जमीनी और सैनिकों के अदम्य साहस पर ही टिकी हुई थी।

 

इस बीच सेना के पास अन्य कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं थी। टोही विमान के नष्ट होने से लड़ाकू विमानों को विजन देने और दुश्मन के इलाके की तस्वीरें मिलना मुश्किल हो रहा था। युद्ध के दौरान यह एक बड़ा कारण रहा कि लड़ाकू विमान दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई करने में कारगर साबित नहीं हो रहे थे।

सच्चा साथी बनकर उभरा इजराइल

लेकिन इस बीच इजरायल भारत का सच्चा साथी बनकर उभरा और अमेरिकी दबाव के बावजूद भी उसने भारत की मदद की। इजरायली सेना के पास सीमापार पर आतंकवाद से लड़के के लिए विशेष अनुभव और ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सक्षम तकनीक थी। 

 

इजराइल ने दिए टोही विमान

एक समझौते पर हस्ताक्षर कर इजरायल ने भारत को तुरंत युद्ध सामग्री जरुरी हथियार सप्लाई किए। युद्ध के अंत तक इजराइल भारत की मदद के लिए खड़ा रहा। उन्नत तकनीक के इजरायली टोही विमान किसी भी क्षेत्र की साफ तस्वीरें ले सकते थे। रिपोर्ट्स की माने तो इस दोरान इजरायल ने न सिर्फ मानव रहित टोही विमान बल्कि अपनी मिलिट्री सेटेलाइट से इलाके की तस्वीरें भी भारत को उपलब्ध करवाईं थी। इतना ही नहीं हाल ही में इजराइल दौरे पर गए पीएम मोदी से बेहतर संबंधो की बात करते हुए इजराइल के पीएम नेतान्याहू ने भविष्य में भी भारत की मदद करने की बात कही थी।

 

युद्ध जितने के लिए दिए हथियार

इसके साथ ही ऊंची चौटी पर तैनात करने के लिए जरूरी हथियार और गोला बारूद भी उपलब्ध करवाए। इसके अलावा इजराइल ने हवा से जमीन में मार करने के लिए लेजर तकनीक से चलने वाली सक्षम मिसाइलें मिराज जो कि 2000एच लड़ाकू विमान से दागी जा सकती थीं, उपलब्ध करवाईं। युद्ध के दौरान इजराइल भारत के साथ साथ आया जिसने दोनों देशों के रिश्तों और दोस्ती का नया बीज बोया। दोनों ही देशों के रिश्तें अब एक उच्च स्तर पर हैं।

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