आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ी राहत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को लाभ के पद के मामले में उसके 20 विधायकों की सदस्यता को बहाल कर दिया। चुनाव आयोग द्वारा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को दरकिनार करते हुए आयोग को इस केस की दोबारा सुनवाई करने का आदेश दिया। विधायकों को मिली राहत के बाद आप के खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई।
खचाखच भरे कोर्ट रूम में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्र शेखर की पीठ ने 79 पेज के अपने फैसले में 20 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की केंद्र की अधिसूचना को रद्द करते हुए कहा कि उन जनप्रतिनिधियों के खिलाफ चुनाव आयोग की सिफारिश कानून गलत थी। आयोग ने सुनवाई के नियमों का उल्लंघन किया।
यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है क्योंकि अयोग्य करार दिए जाने से पहले विधायकों को मौखिक रूप से अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि आयोग के फैसले में कई खामियां हैं। इस सुनवाई से चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने खुद को अलग कर लिया था, लेकिन उनके वापस आने की जानकारी विधायकों को नहीं दी गई।
इसके अलावा चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा किसी भी सुनवाई में शामिल नहीं हुए, लेकिन फैसले पर उनके भी हस्ताक्षर थे। आप विधायकों की सात याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि आयोग इन विधायकों की दलीलें दोबारा सुनें और इस अहम मुद्दे का फैसला करे कि सरकार के अंतर्गत लाभ का पद लेने का क्या अर्थ है। मामले के तथ्यों के मद्देनजर यह भी तय करे कि संसदीय सचिव का पद लेने के बाद यह विधायक किस तरह अयोग्य हो गए थे।
बहाल हो गई इनकी सदस्यता
अलका लांबा, आदर्श शास्त्री, संजीव झा, राजेश गुप्ता, कैलाश गहलोत, विजेंद्र गर्ग, प्रवीण कुमार, शरद कुमार, मदन लाल, शिव चरण गोयल, सरिता सिंह, नरेश यादव, राजेश ऋषि, अनिल कुमार, सोम दत्त, अवतार सिंह, सुखवीर सिंह, मनोज कुमार, नितिन त्यागी और जरनैल सिंह।
क्या है मामला
दिल्ली सरकार ने 13 मार्च, 2015 को 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था। इस फैसले के खिलाफ जून में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को शिकायत की गई थी जिसे उन्होंने चुनाव आयोग के पास सुनवाई के लिए भेज दिया था।
योग ने 19 जनवरी, 2018 को संसदीय सचिव को लाभ का पद मानते हुए उन विधायकों की सदस्यता रद करने की सिफारिश की थी। इस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी थी। विधायकों ने आयोग की सिफारिश को 29 जनवरी को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।