मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के परिणाम की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है राजनीतिक दल, प्रत्याशियों के अलावा मंत्रियों के स्टाफ में भी बेचैनी बढ़ती जा रही है। दरअसल, चुनाव नतीजों से ही इनका भविष्य भी तय होगा।
भाजपा की सरकार बरकरार रहने की सूरत में भी मंत्री स्टाफ को नया ठौर तलाशना होगा, क्योंकि पांच मंत्रियों ने चुनाव नहीं लड़ा और कुछ के हारने की आशंका जताई जा रही है। वहीं, यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो मंत्री अपने हिसाब से स्टाफ का चयन करेंगे। इसमें संभावना है कि भाजपा सरकार के साथ लगातार काम करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों से दूरी बनाकर रखी जाए। 2003 में जब कांग्रेस से भाजपा के हाथों में सत्ता आई थी, तब मंत्री स्टाफ को लेकर काफी मंथन हुआ था।
भाजपा संगठन की ओर से मंत्रियों को यह संदेश दिया गया था कि लंबे समय तक कांग्रेस के नेताओं के साथ काम करने वाले स्टाफ की जगह नए लोगों को रखा जाए। हालांकि, ज्यादातर मंत्रियों ने वही स्टाफ रखा जो कांग्रेस के मंत्रियों के साथ था। इस बार पांच मंत्रियों ने चुनाव नहीं लड़ा तो कुछ मंत्रियों के हारने की आशंका है। भाजपा सरकार बनने की सूरत में मंत्रिमंडल बदला-बदला होगा। नए चेहरे शामिल होंगे। ऐसे में मंत्री स्टाफ में अपने भविष्य को लेकर बेचैनी है। वहीं, जिस तरह के एग्जिट पोल सामने आए हैं, उसमें कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना भी जताई जा रही है।
कांग्रेस के सरकार में आने पर मौजूदा मंत्रियों के पास लंबे समय से जमे स्टाफ से तौबा की जा सकती है। पटवा सरकार में बनी थी रणनीति 1990 में जब सुंदरलाल पटवा की सरकार बनी थी, तब मंत्रियों ने कांग्रेस के मंत्रियों के साथ रहे स्टाफ को नहीं लेने की रणनीति बनाई थी। इक्का-दुक्का मंत्रियों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर ने इसका पालन भी किया था। शिवराज सरकार में भी संगठन ने वित्त मंत्री जयंत मलैया को मंत्री स्टाफ के बारे में मालूमात लेकर रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा भी सौंपा था, लेकिन यह काम पूरा ही नहीं हो पाया। दरअसल, मंत्रियों का मानना है कि काम उन्हें कराना है, इसलिए उन्हें स्टाफ के चयन की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।