कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लगी वन पंचायत कर्तिया के साथ ही लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में हाल में ही शाही जीव हिमालयन सीरो (गोट एंटीलोप) की पुख्ता मौजूदगी ने वन्यजीव महकमे की बांछें खिला दी हैं। बकरे की तरह दिखने वाले हिरन प्रजाति के इस जानवर की मौजूदगी यह दर्शाती है कि संबंधित क्षेत्र की जैव विविधता बेहद मजबूत है और ये क्षेत्र उन्हें पसंद आ रहे हैं। इसे देखते हुए महकमे ने सीरो के संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाने की ठानी है। लैंसडौन वन प्रभाग की ओर से हिमालयन सीरो के संरक्षण के मद्देनजर कार्ययोजना तैयार करने का प्रस्ताव वन मुख्यालय को दिया गया है। यानी अब सीरो को संरक्षण का संबल मिलने जा रहा है। 
अब शर्मीले ‘सीरो’ का होगा संरक्षण, इस दिशा में उठाया गया ये कदम; जानिए
समुद्रतल से तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर हिमालयन सीरो की मौजूदगी है, लेकिन यह आमतौर पर अन्य हिरनों की तरह नजर नहीं आता। असल में सीरो को बेहद घने जंगलों में ही रहना पसंद है। ऐसे में लोग हिरन की इस प्रजाति से रूबरू नहीं हो पाते। हाल में भारतीय वन्यजीव संस्थान की ओर से कार्बेट टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्रों में लगाए गए कैमरा ट्रैप में इसकी तस्वीरें कैद हुई। न सिर्फ आरक्षित वन क्षेत्र बल्कि कर्तिया वन पंचायत के जंगल में भी इसकी मौजूदगी है।
राज्य में बाघ गणना के नोडल अधिकारी एवं अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन बताते हैं कि किसी भी वन क्षेत्र में सीरो की मौजूदगी वहां की समृद्ध जैव विविधता को भी दर्शाती है। इससे ये भी पता चलता है कि संबंधित क्षेत्र में मानवीय दखल नहीं है। उन्होंने बताया कि कार्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास सीरो की मौजूदगी इसकी तस्दीक भी करती है। हाल में बाघ गणना के दौरान कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग के जंगलों में लगे कैमरा ट्रैप में सीरों की मौजूदगी दर्ज हुई।
डॉ.धनंजय के अनुसार प्रोजेक्ट टाइगर की यह धारणा भी है कि बाघों के संरक्षण के साथ अन्य जीवों और उनके वासस्थलों का भी संरक्षण हो। साफ है कि इस दिशा में बेहतर कार्य हो रहा है। उन्होंने बताया कि लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ की ओर से सीरो के संरक्षण के मद्देनजर कार्ययोजना बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।
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