‘अफ्रीका के गांधी’ ने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में जेल में काट दिए 27 साल

रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने 27 साल जेल में काट दिए लेकिन न तो उन्होंने खुद कभी हार मानी, न ही अपने समर्थकों को मानने दी। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला हैं। रंगभेद को मिटाने में मंडेला के योगदान का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके सम्मान में साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिन 18 जुलाई को ‘मंडेला दिवस’ (Nelson Mandela Day) के रूप में घोषित कर दिया। इसमें और भी खास बात यह है कि उनके जीवत रहते ही इसकी घोषणा हुई।

अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया

नेल्सन मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका में बासा नदी के किनारे ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। मंडेला 10 मई 1994 से 14 जून 1999 तक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। वे अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। उनकी सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को खत्म करने और इसे अफ्रीका की धरती से बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया।

जेल में 27 साल

रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण नेल्सन मंडेला को तत्कालीन सरकार ने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया था। यहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। जिस सेल में वो रहते थे वह 8 फीट गुणा 7 फीट का था। यहां उन्हें एक खास-फूस की एक चटाई दी गई थी। इस पर वह सोते थे। साल 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। 

मंडेला पर गांधी का प्रभाव

नेल्सन मंडेला को अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है। उन्हें यह नाम ऐसे ही नहीं दिया गया। उन्होंने गांधी के विचारों से ही प्रभावित होकर मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी। उन्हें इस मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि वे अफ्रीका के गांधी कहे जाने लगे। यह भी रोचक बात है कि दक्षिण अफ्रीका ने ही राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनाया।अफ्रीका में रंगभेद के कारण उन्हें ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद गांधीजी ने देश लौटकर अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई और उन्हें देश से बाहर करके ही दम लिया।

‘भारत रत्न’ से सम्मानित  

नेल्सन मंडेला ने जिस तरह से देश में रंगभेद के खिलाफ अपना अभियान चलाया उसने दुनियाभर को अपनी ओर आकर्षित किया। यही कारण रहा कि भारत सरकार ने 1990 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके बाद बड़ी बीमारी के चलते 3 दिसंबर, 2013 को 95 वर्ष की उम्र में नेल्सन मंडेला का निधन हो गया।

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