अनोखा सफ़र: 6 भाई बहनों की सुदीक्षा की तूती पूरे गांव में बोलती थी

2015 में भारत सरकार ने बड़े जोरशोर के साथ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को लॉन्च किया. मकसद यही था कि बेटियां सुरक्षित रहें और ज्यादा से ज्यादा पढ़ें. देश की राजधानी से सटे गौतमबुद्धनगर जिले के दादरी कस्बे की रहने वाली सुदीक्षा भाटी पढ़ाई में उस ऊंचाई तक पहुंच गई, जिसका बचपन में सपना ही देखा जाता है.

12वीं सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में जिले में टॉप करने वाली सुदीक्षा को अमेरिका के बैबसॉन कॉलेज में 3.82 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप पर दाखिला भी मिल गया. उसने तो पढ़ाई में सब कुछ हासिल कर दिखा दिया लेकिन अफसोस बेटियों की सुरक्षा के लिए लंबे चौड़े दावों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका…

वो यूं तो महज 20 साल की थी, लेकिन थी गांव में सबसे सयानी. घर में भी सबसे बड़ी थी, 6 भाई बहनों की सोनू दीदी. लेकिन तूती पूरे गांव में बोलती थी, अमेरिका से जब भी आती गांव के सारे बच्चे अपनी सोनू दीदी के आंगन में आकर कहते, हम तो तुम्हीं से पढ़ेंगे दीदी तभी तो अमेरिका जाएंगे. और सोनू दीदी भी किसी को कहां मना कर पाती थी.

पांचवी क्लास में ही पापा ने बिटिया रानी को बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया. एक ऐसे गांव में जहां औरतों को घूंघट तक से निकलना मुश्किल था, वो चल पड़ी अपने सपनों की उड़ान पर. दसवीं में तो उसने गजब ही कर दिया और पहली बार तभी साल 2016 में अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी ने उसे वहां कुछ महीनों को लिए बुलाया.

तस्वीरों में बीच में खड़ी सुदीक्षा भाटी लगती ही नहीं थी कि वो एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां एक ही कमरे में 6 भाई-बहन माता-पिता के साथ रहते हैं. कमरे की छत एक लकड़ी के सहारे ऐसे टिकी है, वैसे ही जैसे घर लाडली पर सबकी उम्मीद. साल 2018 में तो सुदीक्षा ने फिर कमाल किया, 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 98 फीसदी नंबर ले आई और अपने जिले की टॉपर बन गई. और अमेरिका के प्रसिद्ध बैबसन कॉलेज में स्कॉलरशिप के साथ दाखिला मिला तो सुदीक्षा पर घर-परिवार ने ही नहीं पूरे इलाके ने खुद को गौरवान्वित महसूस किया.

सुदीक्षा यूं तो 6 भाई बहनों में सबसे बड़ी थी, लेकिन सबका ना सिर्फ ख्याल रखती बल्कि उन्हें भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती. सुदीक्षा की बहन स्वाति बताते-बताते रो पड़ती हैं कि इसी मार्च की तो बात है दीदी ने “उभरती” नाम से गरीब लड़कियों के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया. दीदी ने हमें बोला था कि जब तक टीचर्स का इंतजाम नहीं हो जाता तब तक तुम्हें पढ़ाना है और जिन भी बच्चों को मदद चाहिए उन्हें मदद करनी है.

पहले उसने उभरती प्रोजेक्ट सिर्फ लड़कियों के लिए शुरू किया लेकिन बाद में उसने उसको गरीब लड़कों के लिए भी जारी रखा और वह हमें कहती थी कि आप घर घर जाओ और वहां से जाकर बच्चों को बुलाकर लाओ. दीदी भी जब घर पर आई इस बार तो उसने भी बच्चों को पढ़ाया. और जितने भी बच्चों को पढ़ने की जरूरत होती थी तो जब वह गांव में आती थी तो बच्चे लाइन लगाकर उनसे पढ़ने के लिए तैयार हो जाते थे. सुदीक्षा तो उनका नाम था लेकिन गांव में उन्हें सब सोनू नाम से बुलाते थे.

जब हम ग्रेटर नोएडा के दादरी इलाके में सुदीक्षा के छोटे से गांव में पहुंचे तो खास तौर पर औरतें काफी दुखी दिखाई पड़ीं, घूंघट में बैठी औरतों ने यूं तो अपना इमोशन छुपा रखा था लेकिन जब बात हुई तो आंखें छलक आईं. सबका कहना था कि एक लड़की का इस सामाजिक पृष्ठभूमि से आगे निकलना असंभव सा है, जो सुदीक्षा ने कर दिखाया था. गांव की औरतों से बात करते पता चला कि दसवीं पास करने के ठीक बाद सुदीक्षा नुक्कड़ नाटक किया करती थी, वो भी महिला सशक्तिकरण पर. आस-पास के 5 गांवों में महिलाओं को इकट्ठा कर खूब सारे बदलाव लाकर भी दिखाए.

तो सुदीक्षा कहो या सोनू दीदी…वो एक खालीपन छोड़ गई. परिवार में, गांव में और शायद देश ने भी एक होनहार को समय से पहले खो दिया.

लेकिन एक सवाल हम सबको अपने से भी पूछना चाहिए, सुदीक्षा ने तो पढ़ाई में सबसे ऊंचा मुकाम हासिल कर दिखा दिया लेकिन क्या हम उसे बचा सके…’बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा उसी दिन सार्थक होगा जिस दिन इस देश की किसी भी बेटी को घर से बाहर निकलने पर खौफ महसूस ना हो और वो अपने सपनों की उड़ान को जैसे वो चाहती है, पूरा कर सके.

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