चर-अचर जगत् में, अखिल ब्रह्मांड में, सर्वत्र परमात्मा की शक्ति फैली है और परमात्मा की शक्ति से सारी प्रकृति संचालित हो रही है। कोई माने या न माने, मनवाने की कोई बात नहीं है। नहीं भी कोई माने तो भी परमात्मा का जो काम है, परमात्मा करते रहेंगे। लेकिन नास्तिक लोग कितना भी न मानें परमात्मा की शक्ति को, लेकिन परमात्मा की शक्ति को झुठलाया नहीं जा सकता है।
पूरी प्रकृति के कण-कण में उनकी शक्ति का संचार है, तभी तो सर्वत्र प्राण-तत्व की जीवंतता, मधुरता व हरितिमा की अनुभूति महसूस की जाती रही है। परमात्मा की शक्ति को व्यक्ति इन भौतिक आंखों से देखना चाहता है, जो कभी संभव नहीं है। शक्ति को देखा नहीं जा सकता है, शक्ति को अनुभव किया जाता है। क्या आप बिजली के तार में प्रवाहित विद्युत शक्ति को देख पाते है? इसे सिर्फ अनुभूति करते हैं। जो अनुभूति योग्य है, उसे देखने की चाह, ललक को अज्ञानता और मूर्खता नहीं तो भला और क्या कहा जा सकता है!
बिजली के तार में प्रवाहित शक्ति का रूपांतरण करके तरह-तरह के आवश्यक उपकरण उपयोग किए जाते हैं। अगर शक्ति को देखने की इच्छा है, तो आप बिजली के तार को नंगे हाथ पकड़ कर देख लीजिए, पता चल जायेगा कि आप कितने होशियार और चालाक हैं। जाड़े, गर्मी, प्यार, संवेदना को देखा नहीं जाता है, उसे अनुभव किया जाता है; क्योंकि ये अनुभूति योग्य हैं। अनुभूति योग्य चीज को आप जबरदस्ती देखने के लिए जिद करते हैं, तो क्या आप अपने नासिका से पल-पल सांस के आवागमन को अपनी आंखों से देख पाते हैं?
जब आप अपनी आंखों से नासिका में आती-जाती हवा को नहीं देख सकते, तो परमात्मा की शक्ति को कैसे देख सकते हैं? आप अपनी संकीर्णता-स्वार्थपरता को त्याग दें। मन हृदय में आस्था, विश्वास विकसित करें। ईश्वर के विराट स्वरूप को समझने के लिए स्वयं में निहित शक्ति को जानने-परखने की कोशिश करें।
परमात्मा अपनी शक्ति की अनुभूति आपको अवश्य करा देंगे; क्योंकि अंदर वे ही बैठे हैं। ‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन अमल सहज सुख राशि।’ जो छूने की चीज है, जो देखने की चीज है, उसे आप कहें कि हम खाएंगे; जो खाने की चीज है, उसे कहें कि हम देखेंगे; जो पहनने की चीज है, उसे कहे कि हम देखेंगे! यह चेतनशील प्राणी के लिए अनुपयुक्त व्यवहार है। समय रहते ऐसे व्यक्ति अपनी चेतना को विकसित करें।
धरती, सूरज, हवा, प्रकाश, नदी, सरोवर, पहाड़, झरना सब परमात्मा की शक्ति के अंश हैं। सब परमात्मा की कृति हैं। प्रकृति, ग्रह, नक्षत्र, सब परमात्मा का स्वरूप हैं। सब में परमात्मा की शक्ति निहित है। पूरे ब्रह्मांड के भिन्न-भिन्न तत्वों की शक्तियों का सामूहिक स्वरूप ईश्वर की पूर्ण शक्ति कही जाती है।