New Delhi: जिस ‘Kargil Vijay Divas’ पर हम आज इतरा रहे हैं उसमें इजरायल की बड़ी भूमिका रही है। इजरायल न होता तो शायद INDIA को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता।अभी अभी: पीएम मोदी ने केशव को दी सबसे बड़ी जिम्मेदारी, योगी को छोड़ केशव बनेंगे मुख्य….
कारगिल विजय दिवस के मौके आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारतीय फोर्स अपनी कमजोरियों की वजह से जब पाकिस्तान के सामने खुद को लाचार महसूस कर रही थी तो किस तरह से इजरायल, भारत के संकट के साथी के रूप में उभरा, और किस तरह से उसने ऐन मौके पर भारत का साथ दिया ?
1999 में मई से जुलाई के बीच हुए इस युद्ध ने भारत को कई सबक दिए। कारगिल में जिस तरह से पाकिस्तानी सेनाओं ने घुसपैठ किया था उससे भारतीय खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा एजेंकियों की एक बड़ी कमजोरी का पता चला। हालांकि जवानों का हौसला ऐसा था कि वे बिना संसाधनों के भी पाकिस्तान को धूल चटाने की कूबत रखते थे।
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एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय फोर्स दुर्गम पहाड़ी इलाकों में लड़ने के लिए सक्षम नहीं थीं, क्योंकि जवानों को इसके लिए न तो कभी ट्रेनिंग दी गई थी और न ही उनके पास ऐसे हालात को संभालने का अनुभव। इसके बावजूद भी भारतीय सैनिक लगातार पाकिस्तान पर बढ़त बनाए हुए थे और पाकिस्तानी सेना को सीमा से बाहर धकेलते जा रहे थे।
हालांकि भारतीय फोर्स ने अपने जवानों को सीमा (एलओसी) के भीतर रहकर ही ऑपरेशन को अंजाम देने का निर्देश दे रखा था, क्योंकि चिंता थी कि सैनिकों के सीमा पार करने पर युद्ध का रूप कहीं विकराल न हो जाए।
हमारी वायुसेना के पास जो मिसाइल लॉन्चिंग सिस्टम था वह भी सटीक निशाना लगाने में सक्षम नहीं था। इससे पाकिस्तान के बंकरों को नष्ट करने में दिक्कतें आ रहीं थीं। पाकिस्तान ने जब वायुसेना के केनबरा पीआर-57 को मार गिराया तो भारत की पारंपारिक टोही व्यवस्था ध्वस्त हो गई। लड़ाई अब सिर्फ सैनिकों के अदम्य साहस पर ही टिकी हुई थी।
भारतीय फोर्स के पास अब कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं थी कि दुश्मन के इलाके या दूर दराज के इलाकों की निगरानी की जा सके। टोही विमान के नष्ट होने से लड़ाकू विमानों को विजन देने और दुश्मन के इलाके की तस्वीरें मिलना मुश्किल हो गया था। यही कारण है कि भारतीय फोर्स के लड़ाकू विमान भी दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई करने में कारगर साबित नहीं हो रहे थे।
पाकिस्तान को चोरो ओर से घेरने की रणनीति के तहत भारतीय नेवी पाकिस्तान के सभी समुद्री रास्ते बंद करने के लिए तैयार हुई लेकिन डर इस बात का था कि पाकिस्तान कहीं अमेरिकी हार्पून मिसाइल का इस्तेमाल न कर बैठे। भारत के पास उस वक्त कोई प्रभावी एंटी मिसाइल सिस्टम नहीं था इससे ज्यादा नुकसान होने का डर था।
भारतीय फोर्स अब ऐसी मुसीबत की घड़ी में थी कि उसे पाकिस्तान को हराना काफी कठिन लगने लगा था। लेकिन तभी इजराइल का नाम चिराग के रूप में सामने आया। इस वक्त इजरायल उन कुछ चुनिंदा देशों में से एक था जो कारगिल मसले पर भारत का साथ देने को तैयार थे।
इजरायली सेना के पास सीमापार पर आतंकवाद से लड़के के लिए विशेष अनुभव था। इजरायल के पास स्थिति से निपटने के लिए सक्षम तकनीक भी थी। वह छोटे युद्धों को आसानी से काबू कर सकता था।
इजरायल ने भारत को युद्ध सामग्री और प्रभावी हथियार तत्काल सप्लाई करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इजरायल को ऐसा न करने के लिए अमेरिका का दबाव था, लेकिन इसके बावजूद भी इजरायल भारत के साथ खड़ा होने के लिए तैयार हो गया।
इजरायल ने भारत को फौरन टोही विमान भेजे जिससे कि कारगिल में सेना को इलाके का जायजा लेने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध हो सके। इजरायल ने भारत को जो टोही विमान दिए उनकी क्षमता बहुत ही उच्च स्तर की थी। इन विमानों से किसी भी एरिया की साफ तस्वीरें ली जा सकती थीं। इससे फायदा यह हुआ कि पहले से पाकिस्तान को नाकों चने चबवा रहे भारत के वीर जवान अब तकनीकी रूप से किसी भी चुनौती से निपटने में सक्षम हो गए। मौके पर मिले इजरायल के सहयोग भारतीय सेना को आसानी से कारगिल को जीतने में मददगार साबित हुआ।
इजरायल ने सिर्फ मानव रहित टोही विमान भारत को उपलब्ध कराए बल्कि अपनी मिलिट्री सेटेलाइट से इलाके की तस्वीरें उपलब्ध कराईं जो भारतीय सेना को काफी मददगार साबित हुईं। इसके साथ ही इजरायल ने भारत को गोला बारूद और जरूरी हथियार भी भारत को दिए जो कारगिल की ऊंची चोटियों पर तैनात की जा सकती थीं। हवा से जमीन में मार करने के लिए इजरायल ने भारत को लेजर तकनीक से चलने वाली सक्षम मिसाइलें उपलब्ध कराई जो मिराज 2000एच लड़ाकू विमान से दागी जा सकती थीं।