अजा एकादशी व्रत पर शाम के समय करें इस स्तोत्र का पाठ

अजा एकादशी का व्रत हिंदुओं में बेहद शुभ माना जाता है। इस उपवास को रखने से सौभाग्य समृद्धि और खुशी में वृद्धि होती है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से सभी पाप धुल जाते हैं। साथ ही श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। वहीं इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे जीवन के सभी संकटों का नाश होता है।

हिंदू धर्म में अजा एकादशी का खास महत्व है। इस माह भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 29 अगस्त यानी आज मनाई जा रही है, इस दिन विष्णु जी के साथ धन की देवी यानी माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री हरि की पूजा सच्चे भाव के साथ करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही घर में बरकत का वास होता है। वहीं, इस दिन श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ बेहद कल्याणकारी माना गया है, तो आइए इसका पाठ करते हैं।

।।श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र।।

चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।

गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो-रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥

शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम्।

बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥

विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ।

चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी- नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥

लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम्

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम्।

नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥

इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम्।

ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥

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