अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: मत लीजिए 'नारी' के सब्र का इम्तिहान, जिस दिन यह भड़क गई तो सब नष्ट हो जाएगा...

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: मत लीजिए ‘नारी’ के सब्र का इम्तिहान, जिस दिन यह भड़क गई तो सब नष्ट हो जाएगा…

‘नारी’ भले ही यह शब्द छोटा हो लेकिन इसकी अहमियत बहुत खास और महत्वपूर्ण है. अगर नारी ना होती तो शायद यह दुनिया ही ना होती लेकिन फिर भी कुछ दरिंदे नारी की अहमियत आज तक नहीं समझ सके. नारी एक जलते हुए दीपक के समान होती है जो दिखती तो बहुत शांत है लेकिन जब उसे यह महसूस होता है कि उसका अंत होने वाला है तो वह ऐसी भभकती है कि फिर उसके सामने कोई नहीं टिक सकता है. आज अंतर्राष्ट्रीय महिला है और इस खास मौके पर आप भी सभी महिलाओं को इन खास कविताओं के जरिए शुभकामनाएं दें सकते हैं.  

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: मत लीजिए 'नारी' के सब्र का इम्तिहान, जिस दिन यह भड़क गई तो सब नष्ट हो जाएगा...
नारी का सम्मान ही, पौरूषता की आन,
नारी की अवहेलना, नारी का अपमान।
 
मां-बेटी-पत्नी-बहन, नारी रूप हजार,
नारी से रिश्ते सजे, नारी से परिवार।
 
नारी बीज उगात है, नारी धरती रूप,
नारी जग सृजित करे, धर-धर रूप अनूप।
 
नारी जीवन से भरी, नारी वृक्ष समान,
जीवन का पालन करे, नारी है भगवान।
 
नारी में जो निहित है, नारी शुद्ध विवेक,
नारी मन निर्मल करे, हर लेती अविवेक।
 
पिया संग अनुगामिनी, ले हाथों में हाथ,
सात जनम की कसम, ले सदा निभाती साथ।
 
हर युग में नारी बनी, बलिदानों की आन,
खुद को अर्पित कर दिया, कर सबका उत्थान।
 
नारी परिवर्तन करे, करती पशुता दूर,
जीवन को सुरभित करे, प्रेम करे भरपूर।
 
प्रेम लुटा तन-मन दिया, करती है बलिदान,
ममता की वर्षा करे, नारी घर का मान।
 
मीरा, सची, सुलोचना, राधा, सीता नाम,
दुर्गा, काली, द्रौपदी, अनसुइया सुख धाम।
 
मर्यादा गहना बने, सजती नारी देह,
संस्कार को पहनकर, स्वर्णिम बनता गेह।
 
पिया संग है कामनी, मातुल सुत के साथ,
सास-ससुर को सेवती, रुके कभी न हाथ।

नारी पर कविता
 
नारी तुम स्वतंत्र हो,
जीवन धन यंत्र हो।
काल के कपाल पर,
लिखा सुख मंत्र हो।
 
सुरभित बनमाल हो,
जीवन की ताल हो।
मधु से सिंचित-सी,
कविता कमाल हो।
 
जीवन की छाया हो,
मोहभरी माया हो।
हर पल जो साथ रहे,
प्रेमसिक्त साया हो।
 
माता का मान हो,
पिता का सम्मान हो।
पति की इज्जत हो,
रिश्तों की शान हो।
 
हर युग में पूजित हो,
पांच दिवस दूषित हो।
जीवन को अंकुर दे,
मां बनकर उर्जित हो।
 
घर की मर्यादा हो,
प्रेमपूर्ण वादा हो।
प्रेम के सान्निध्य में,
खुशी का इरादा हो।
 
रंगभरी होली हो,
फगुनाई टोली हो।
प्रेमरस पगी-सी,
कोयल की बोली हो।
 
मन का अनुबंध हो,
प्रेम का प्रबंध हो।
जीवन को परिभाषित,
करता निबंध हो।

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