सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला सिर्फ और सिर्फ खुदकुशी का है: मुंबई पुलिस

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं. दरअसल, इस मामले में एक पक्ष ऐसा है जो मानने को तैयार ही नहीं है कि सुशांत सिंह राजपूत खुदकुशी कर सकते हैं. उनका मानना है कि मामला क़त्ल का है. फिर दूसरा पक्ष वो है, जो सबूतों, चश्मदीदों और रिपोर्ट्स के आधार पर ये कह रहा है कि मामला सिर्फ और सिर्फ खुदकुशी का है.

पर इन दोनों पक्षों के अलावा एक तीसरा पक्ष और भी है. जो कह रहा है कि मामला कत्ल की तरह खुदकुशी का है. मगर सुशांत की विसरा की रिपोर्ट ने भी एक अहम खुलासा किया है.

लगभग डेढ़ महीने होने को हैं. करीब-करीब चालीस लोगों से पूछताछ हो चुकी है. सुशांत की आख़िरी फिल्म भी ओटीपी पर रिलीज हो चुकी है.

दबी ज़ुबान पुलिस कहानी का क्लाइमैक्स भी लगभग सुना चुकी है. मगर इन सबके बावजूद उस एक सवाल के जवाब का हरेक को अब भी इंतज़ार है.ये खुदकुशी है या कत्ल?

वो 14 जून का दिन था. फर्स्ट फ्लोर के बेडरूम में खुद को बंद करने से पहले सुशांत सिंह राजपूत ने आखिरी बार जूस पिया था. ये जूस सुशांत का रसोइया ग्राउंड फ्लोर से ऊपर लेकर आया था.

उस वक्त घर में कुल चार लोग थे. दो रसोइये, एक हाउस कीपर और चौथा दोस्त. इन चारों ने पुलिस को जो बयान दिया है, उसके मुताबिक आखिरी बार जूस देते वक्त ही इन लोगों ने सुशांत को देखा था. शक जताया गया कि सुशांत को जूस में कोई नशीली या ज़हरीली चीज़ मिलाकर दी गई थी.

लेकिन अब विसरा रिपोर्ट ने इस शक को भी दूर कर दिया. सुशांत की विसरा की रिपोर्ट मुंबई पुलिस को मिल चुकी है. रिपोर्ट के मुताबिक, सुशांत के शरीर से कोई भी ज़हरीली वस्तु नहीं मिली.

यानी ना तो सुशांत को किसी ने कोई ज़हरीला पदार्थ खाने पीने में मिलाकर दिया और ना ही सुशांत ने खुद किसी जहरीले पदार्थ का सेवन किया. विसरा की इस रिपोर्ट के बाद मुंबई पुलिस लगभग अब ये मान चुकी है कि मामला खुदकुशी का ही है.

तमाम तफ्तीश और छानबीन के बाद सुशांत की मौत को लेकर मुंबई पुलिस अपनी राय पहले ही बना चुकी है. लेकिन आखिरी नतीजे पर पहुंचने से पहले पुलिस विसरा रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही थी.

मुंबई पुलिस के मुताबिक रिपोर्ट आने के बाद अब वो जल्द ही सुशांत की मौत के सच का खुलासा कर देगी. अब आइए सिलसिलेवार खुदकुशी, कत्ल या फिर कत्ल की तरह खुदकुशी की इस पहेली को समझते हैं.

मौका-ए-वारदात पर छानबीन. पुलिस की रिपोर्ट, फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम करने वाले पांच डॉक्टरों की रिपोर्ट ये बताती है कि सुशांत के जिस्म पर चोट के कहीं कोई निशान नहीं थे. यहां तक कि खरोच भी नहीं थी. यानी मौत से पहले सुशांत के साथ कोई हाथापाई नहीं हुई. ये रिपोर्ट इशारा करती है कि सुशांत ने खुदकुशी की है.

सुशांत के बेडरूम का लॉक कुछ इस तरह का था कि अंदर से लॉक का नॉब पुश कर दिया जाए और फिर दरवाज़ा बंद कर दिया जाए, तो फिर दरवाज़ा बाहर से नहीं खुल सकता.

यानी इसका मतलब ये हुआ कि दरवाज़ा अंदर से बंद किया गया. पर यहां सवाल उठता है कि दरवाज़ा अंदर से सुशांत ने बंद किया या फिर कोई और नॉब दबा कर बाहर निकल गया. इस सूरत में भी दरवाजा अंदर से ही बंद होगा.

अब अगर दरवाज़े के लॉक के नॉब पर सुशांत की ही उंगलियों के निशान हैं, तो फिर मामला खुदकुशी का है. लेकिन किसी और की उंगलियों के निशान हैं, तो मामला कत्ल का है. और अगर किसी की भी उंगलियों के निशान नहीं हैं, तो भी मामला क़त्ल का है. मान लीजिए अगर ये क़त्ल है, तो ज़ाहिर है क़ातिल कमरे के अंदर गया.

कत्ल किया फिर लॉक का नॉब दबा कर बाहर निकल गया. अब ऐसी सूरत में वो दो चीज़ें करेगा. या तो हाथ में दस्ताने होंगे ताकि उंगलियों के निशान ना आएं या फिर वो लॉक के नॉब से उंगलियों के निशान को साफ करेगा.

इन दोनों सूरत में सुशांत की उंगलियों के निशान पूरी तरह से या फिर कुछ हद तक मिट जाएंगे. अब सुशांत की उंगलियों के निशान हटने और मिटने का सीधा मतलब यही होगा कि किसी और ने निशान के साथ छेड़खानी की थी.

मगर अफसोस की बात ये है कि पुलिस सुशांत के बेडरूम के उस लॉक या उसके नॉब का फिंगर प्रिंट नहीं उठा पाई. जिससे ये सच सामने आ सकता था.

बकौल पुलिस उसके वहां पहुंचने से पहले ही ताले वाले और घर के बाकी लोगों ने दरवाजे, लॉक, और नॉब पर हाथ लगा दिया था. जिसके बाद उंगलियों के निशान लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता.

14 जून की सुबह उठने के बाद सुशांत नॉर्मल थे. घर में चारों से उनकी बात भी हुई. जूस भी मांगा. फिर कमरे में गए. ऑन लाइन गेम खेला. गूगल में खुद को सर्च किया. उसके बाद दोपहर करीब एक बजे बेडरूम से उनकी लाश मिली. पंखे से झूलती हुई. 13 जून से लेकर 14 जून की दोपहर तक सुशांत ने अपने किसी परिवार के सदस्य, दोस्त, करीबी दोस्त किसी को फ़ोन कर ऐसा कुछ नहीं बताया कि वो ऐसा कोई क़दम उठाने जा रहे हैं. ना ही सुसाइड नोट लिखा. यानी ऐसा कुछ अचानक हुआ कि उन्होंने दरवाज़ा बंद किया और किसी को कुछ पता ही नहीं चला.

मौत से पहले बेशक सुशांत ने किसी को कुछ ना बताया हो, मगर क़रीब नौ महीने के अंदर सुशांत ने तीस से ज्यादा सिम बदले थे. सुशांत के रसोइये, हाउस कीपर और दोस्त के मुताबिक डिप्रेशन के दौरान सुशांत अकेले रहना चाहते थे.

वैसे भी वो फोन पर बहुत कम बातें किया करते थे. बहुत मुमकिन है कि फिल्म इंडस्ट्री के लोगों और दोस्तों से वो कम ही बातें करते थे.

घर के दोनों रसोइये, हाउस कीपर और दोस्त के मुताबिक सुशांत के बेडरूम में जाने के बाद पहली बार करीब साढ़े 11 बजे उन्होंने सुशांत का दरवाज़ा खटखटाया था, ये जानने के लिए कि दोपहर को वो खाने में क्या खाएंगे? लेकिन साढ़े 12 बजे तक सुशांत ने दरवाज़ा नहीं खोला.

चारों को शक भी हुआ. उन्होंने सुशांत की बहन को फोन कर बुला लिया. मगर दरवाज़ा तोड़ने की कभी कोशिश नहीं की. अगर वो ऐसा करते तो शायद वक़्त बर्बाद ना होता.

चौदह जून की सुबह से लेकर दोपहर तक घर में चार लोग थे. ऐसे में कोई बाहर से आए और सुशांत का क़त्ल करके चला जाए. ये लगभग नामुमकिन है. कोई भी कातिल इतना बड़ा जोखिम नहीं उठाएगा.

सुशांत के घर में चार लोग मौजूद थे. मान लें कि मामला कत्ल का है, तो भी एक साथ चारों का इस साज़िश में शामिल होना गले नहीं उतरता. क्योंकि कत्ल के लिए मकसद का होना ज़रूरी है और चारों का मकसद एक हो, ये मुमकिन नज़र नहीं आता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट, डॉक्टरों की राय, विसरा रिपोर्ट और चश्मदीदों के बयान फिलहाल यही कह रहे हैं कि मामला कत्ल का नहीं खुदकुशी का है.

पर खुदकुशी क्यों? डिप्रेशन क्यों? तो जिस तरह सबूत और रिपोर्ट बता रहे हैं कि मामला खुदकुशी का है. ठीक उसी तरह हालात बता रहे हैं कि मामला दरअसल कत्ल की तरह खुदकुशी का है. यानी फिल्मी दुनिया में सुशांत के इर्द गिर्द ऐसे हालात पैदा किए गए कि सुशांत इससे हार गया.

हालात नेपोटिज्म यानी भाई भतीजावाद के. अगर मामला कत्ल की तरह खुदकुशी का है, तो फिर पुलिस के लिए इसे साबित करना बहुत मुश्किल है. क्योंकि तमाम पूछताछ के बावजूद किसी को भी सीधे-सीधे सुशांत की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराना आसान नहीं होगा.

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