सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमों पर चिंता जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने 14 वर्ष पहले केंद्र सरकार से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था क्योंकि बड़ी संख्या में शिकायतों में घटना के अतिरंजित बयान होते हैं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने पति के विरुद्ध दायर दहेज उत्पीड़न के मामले को रद करते समय की।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह वास्तविकताओं पर विचार करके भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करे ताकि झूठी या अतिरंजित शिकायतें दर्ज करने के लिए इसके दुरुपयोग को रोका जा सके।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 में कहा गया है, ”किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार महिला के साथ क्रूरता करेगा तो उसे तीन वर्ष तक की कैद की सजा दी जाएगी और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।” धारा 86 में क्रूरता की परिभाषा दी गई है, जिसमें महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार का नुकसान पहुंचाना शामिल है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने 14 वर्ष पहले केंद्र सरकार से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था क्योंकि बड़ी संख्या में शिकायतों में घटना के अतिरंजित बयान होते हैं। जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उसने एक जुलाई से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 पर गौर किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या संसद ने अदालत के सुझावों पर गंभीरता से गौर किया है।
केंद्र को दी संहिता की धारा 85 और 86 में बदलाव की सलाह
पीठ ने कहा, ”उपरोक्त कुछ और नहीं बल्कि आइपीसी की धारा 498ए का शब्दश: पुनस्र्थापन है। एकमात्र अंतर यह है कि आइपीसी की धारा 498ए का स्पष्टीकरण अब एक अलग प्रविधान है, यानी भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 86।’ पीठ ने कहा, ”हम संसद से वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए ऊपर बताए गए मुद्दे पर गौर करने और नए प्रविधानों के लागू होने से पहले भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 में आवश्यक बदलाव करने पर विचार करने का अनुरोध करते हैं।”
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने पति के विरुद्ध दायर दहेज उत्पीड़न के मामले को रद करते समय की। उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार, उक्त व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की थी और उसे मानसिक व शारीरिक आघात पहुंचाया था।
एफआइआर में कहा गया था कि महिला के परिवार ने उसकी शादी के समय बड़ी धनराशि खर्च की थी। लेकिन शादी के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने झूठे बहाने से उसे परेशान करना शुरू कर दिया कि वह एक पत्नी व बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही और उस पर अधिक दहेज के लिए दबाव डाला।
महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट
पीठ ने कहा कि एफआइआर और आरोप पत्र पढ़ने से पता चलता है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य और व्यापक हैं जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया है। शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक प्रति केंद्रीय कानून और गृह सचिवों को भेजने का निर्देश दिया जो इसे कानून एवं न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष रख सकते हैं।
बने नए कानून
उल्लेखनीय है कि देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलने के लिए नए बने कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से लागू होंगे। तीनों कानूनों को पिछले वर्ष 21 दिसंबर को संसद की मंजूरी मिल गई और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी 25 दिसंबर को उन पर अपनी सहमति दे दी।