सिर्फ चेतावनी देने से कुछ नहीं होगा, सीखना होगा हवा को शुद्ध बनाकर सांस लेने का तरीका

वायु गुणवत्ता सूचकांक की शुरुआत के साथ ही भारत अमेरिका, चीन, मेक्सिको, फ्रांस और हांगकांग जैसे देशों के समूह में भले ही शामिल हो चुका हो, लेकिन वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए जो पॉलिसी और प्रतिबद्धता दिखनी चाहिए वह नहीं दिखती है। हमें उनसे सीखना होगा कि चेतावनी ही नहीं प्रभावी उपाय भी इसके लिए करने होंगे।

बीजिंग: रेड अलर्ट में स्कूल बंद होते हैं। 80 फीसद सरकारी कारें सड़क से हट जाती हैं। मालवाहक वाहन रुक जाते हैं। प्रदूषण करने वाली इकाइयों को उत्सर्जन न करने के आदेश होते हैं। चिंताजनक स्थिति में सरकारों को जुर्माना देना पड़ता है।

मेक्सिको: औद्योगिक प्रदूषण को 30 से 40 फीसद तक कम किया जाता है। 50 फीसद सरकारी वाहनों पर रोक। स्कूल बंद कर दिए जाते हैं। तीसरे चरण में औद्योगिक इकाइयां बंद।

अमेरिका: नियम 701 के तहत स्कूल को सूचना देना अनिवार्य है। ह्रदय और सांस के रोगियों को सूचित किया जाता है। औद्योगिक इकाइयों के उत्सर्जन में 20 फीसद कटौती का प्रावधान है।

लंदन: वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने कार पूलिंग और उपयोग न होने पर वाहन का इंजन बंद करने जैसे कई उपाय सुझाए हैं। ब्रीथ बेटर टुगेदर नामक अभियान चलता है। 

पेरिस: सार्वजनिक परिवहन सेवा को सप्ताहांत में नि:शुल्क बनाया गया और सड़कों से 50 फीसद वाहन हटाए गए। कारों की आवाजाही के लिए शहर में वैकल्पिक परिवहन प्रणाली विकसित की गई है। मालवाहक वाहनों को 20 किमी/घंटा की रफ्तार से चलने की अनुमति है।

इन पर भी दें ध्यान गुणवत्ता निगरानी:

सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि वायु गुणवत्ता की निगरानी ज्यादा से ज्यादा शहरों में की जानी चाहिए ताकि इस संबंध में सार्वजनिक सूचना प्रणाली विकसित हो

आपातकालीन योजनाएं: प्रदूषण वाले दिनों में इसे नीचे लाने के लिए सरकार को पहले से आपातकालीन योजना तैयार रखनी चाहिए। अभियान का आगाज: उच्च प्रदूषण को नीचे लाने के लिए इस संदर्भ में समर्थन जुटाने के लिए अभियान चलाने की जरूरत है।

नियमित सूचना: वायु गुणवत्ता के विषय में नियमित सूचना अखबार, टीवी और अन्य संचार माध्यमों से रोजाना लोगों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

सूक्ष्म कणों का प्रदूषण (पार्टिकल पॉल्यूशन): ये ठोस और तरल बूंदों के मिश्रण होते हैं। आकार के लिहाज से इनके दो प्रकार होते हैं।

पीएम 2.5: ऐसे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रो- मीटर या इससे कम होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है।

पीएम 10: ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 से लेकर 10 माइक्रोमीटर तक होता है।

दुष्परिणाम: 10 माइक्रोमीटर से कम के सूक्ष्म कण से हृदय और फेफड़ों की बीमारी से मौत तक हो सकती है।

सल्फर डाइआक्साइड: रंगहीन क्रियाशील गैस है। सल्फर युक्त कोयले या ईंधन के जलने पर पैदा होती है।

दुष्परिणाम: जलन पैदा करती है। अस्थमा पीड़ित इससे प्रभावित होने पर परेशानी में आ सकता है।

कार्बन मोनोक्साइड: यह एक गंधरहित, रंगरहित गैस है। यह तब पैदा होती है जब ईंधन में मौजूद कार्बन पूरी तरह से जल नहीं पाता है। वाहनों से निकलने वाले धुएं इस गैस के कुल उत्सर्जन में करीब 75 फीसद भागीदारी निभाते हैं। शहरों में तो यह भागीदारी बढ़कर 95 फीसद हो जाती है।

दुष्परिणाम: फेफड़ों के माध्यम से यह गैस रक्त परिसंचरण तंत्र में मिल जाती है। हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है। ऑक्सीजन की मात्रा को बेहद कम कर देती है। लिहाजा कार्डियोवैस्कुलर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित होती है।

ओजोन: फेफड़ों के रोगों के लिए ओजोन संवेदनशील हो सकती है। इनके लिए ओजोन प्रदूषण भी गंभीर हो सकता है। अधिक समय तक बाहर रहने वाले बच्चे, किशोर, अधिक आयु वाले वयस्क और सक्रिय लोगों समेत स्वस्थ व्यक्ति को भी नुकसान पहुंच सकता है।

 

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