बीते कुछ समय से देश में आर्थिक सुस्ती का माहौल है. इस माहौल से निकलने के लिए सरकार की ओर से तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. हाल ही में ऐसी खबरें आईं कि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से 45 हजार करोड़ की मदद मांग सकती है.
अब इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों से 19,000 करोड़ रुपये के डिविडेंड (लाभांश) की मांग की है. यह सरकार की ओर से डिविडेंड के तौर पर मांगी गई अब तक की सबसे बड़ी रकम है. ऐसे में आपके मन में ये सवाल होगा कि आखिर डिविडेंड क्या है और क्यों सरकार तेल कंपनियों से इसकी मांग कर रही है.आइए जानते हैं.
क्या होता है डिविडेंड?
डिविडेंड यानी लाभांश का मतलब अपने ”सहयोगी” के साथ मुनाफा साझा करना होता है. शेयर मार्केट की भाषा में ”सहयोगी” का मतलब शेयर होल्डर से है. कंपनियां अपने शेयर होल्डर को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं. मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयर होल्डर को डिविडेंड के रूप में देती हैं. डिविडेंड देने का फैसला कंपनी की बोर्ड मीटिंग में लिया जाता है. यह पूरी तरह कंपनी के फैसले पर निर्भर करता है.
सरकार क्यों मांगती है डिविडेंड?
जिन कंपनियों यानी पीएसयू में सरकार की हिस्सेदारी होती है उसमें वह बेहिचक डिविडेंड की मांग करती है. वहीं पीएसयू कंपनियां भी अपने मुनाफे को ध्यान में रखकर सरकार को डिविडेंड देती हैं. लेकिन अब केंद्र सरकार तेल कंपनियों से डिविडेंड के तौर पर 19 हजार करोड़ रुपये की मांग कर रही है. तेल कंपनी ONGC और इंडियन ऑयल से तो ये तक कहा गया है कि वे इस कुल रकम में से करीब 60 फीसदी यानी 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि दें.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट की मानें तो ONGC को करीब 6,500 करोड़ रुपये, इंडियन ऑयल को 5,500 करोड़, BPCL को 2,500 करोड़, GAIL को 2,000 करोड़, ऑयल इंडिया को 1,500 करोड़ और इंजीनियर्स इंडिया को 1,000 करोड़ रुपये बतौर डिविडेंड सरकार को देने पड़ सकते हैं.
दिक्कत क्या है?
कोई कंपनी डिविडेंड तब ही जारी करती है जब वह मुनाफे में होती है. लेकिन बीते कुछ समय से तेल कंपनियों की हालत ठीक नहीं है, यही वजह है कि वह डिविडेंड की इतनी बड़ी रकम देने के लिए तैयार नहीं हैं. कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि इतनी बड़ी डिमांड करते समय यह भी तो देखा जाना चाहिए कि कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी पिछले साल जितनी नहीं है. जाहिर सी बात है कि अधिकारी तेल कंपनियों की माली हालत की ओर इशारा कर रहे हैं.
अभी सरकार को क्यों जरूरत पड़ी?
दरअसल, सरकार के लिए चालू वित्त वर्ष काफी मुश्किल नजर आ रहा है. इस साल आर्थिक सुस्ती के चलते विकास दर 11 साल के सबसे निचले स्तर (पांच फीसदी) पर रह सकती है. वहीं सरकार करीब 19.6 लाख करोड़ रुपये राजस्व की कमी से जूझ रही है. जीएसटी और टैक्स कलेक्शन भी उम्मीद के मुताबिक नहीं हो सका है.
आरबीआई से भी मांगने की तैयारी
बीते दिनों न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की खबर में बताया गया था कि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से 45 हजार करोड़ की मदद मांग सकती है. बता दें कि रिजर्व बैंक ने केंद्र को लाभांश (डिविडेंड) के तौर पर 1.76 लाख करोड़ रुपये देने की बात कही थी. इस रकम में से चालू वित्त वर्ष (2019-20) के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे.