साबरमती नदी की तर्ज पर रिस्पना और बिंदाल की सूरत संवारने की कवायद की जा रही

करीब एक दशक पहले दून ने एक ख्वाब देखा था। साबरमती नदी की तर्ज पर रिस्पना और बिंदाल के पुनर्जीवन का। उम्मीद सातवें आसमान पर थी कि गंदगी से मरणासन्न हो चुकी शहर की प्रमुख नदी रिस्पना और बिंदाल के दिन बहुरेंगे। इस ख्वाब को धरातल पर उतारने के लिए वर्ष 2010 में तत्कालीन महापौर विनोद चमोली ने मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के कुछ अधिकारियों के साथ अहमदाबाद का दौरा कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसके कुछ समय बाद साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एसआरएफडीसीएल) की टीम ने उस समय की रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार को अपना प्रस्तुतीकरण भी दिया।

इसके बाद हरीश रावत की सरकार में रिस्पना और बिंदाल नदी की सूरत संवारने को रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया। इस दिशा में कुछ काम भी किए गए। हालांकि, बात लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाई। वर्तमान की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में भी इस पर लंबी-चौड़ी कसरत की गई है। एक मुश्त दोनों नदियों पर काम करने की जगह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में निश्चित क्षेत्रों का चयन किया गया। यहां तक कि निर्माण कंपनी भी तय कर ली गई और काम में सहयोग के लिए साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ एमओयू भी कर लिया गया। इसके बाद भी अब तक कोई यह कहने की स्थिति में नहीं कि परियोजना पर काम कब शुरू हो पाएगा और कब साबरमती की तरह रिस्पना और बिंदाल नदी पुनर्जीवित हो उठेंगी।

750 करोड़ के काम पर मुहर, जमीन का पता नहीं 

फरवरी 2018 में एमडीडीए ने रिस्पना-बिंदाल के 36 किलोमीटर हिस्से को एकमुश्त विकसित करने की जगह तय किया कि पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 3.7 किलोमीटर भाग पर रिवर फ्रंट का विकास किया जाएगा। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआइ) के तहत आवेदन मांगे गए। परियोजना की लागत करीब 750 करोड़ रुपये आंकी गई। जून माह में यह भी तय कर लिया गया कि नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी) इस काम को करेगी। हालांकि, इसके बाद जमीन का नया पेच फंस गया। परियोजना के विकास के लिए जो 43 हेक्टेयर भूमि एमडीडीए के प्रबंधन में दी गई थी, उसका नियमानुसार हस्तांतरण भी एमडीडीए के पक्ष में किया जाना था। लंबे समय तक मामला शासन में भी अटका रहा और फिर राज्य कैबिनेट की बैठक में मई 2019 में इसके लिए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया। तब से अब तक करीब दो माह पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन जमीन हस्तांतरण को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।

पहले फेज में इस हिस्से का चुनाव 

रिस्पना नदी, धोरण पुल से बाला सुंदरी मंदिर तक 1.2 किलोमीटर भाग।

बिंदाल नदी, हरिद्वार बाईपास रोड के पुल क्षेत्र में 2.5 किलोमीटर भाग।

योजना में ये होने हैं काम 

हरियाली क्षेत्रों का विकास, सड़कों का निर्माण, साइकिल ट्रैक, फुटपाथ, रिटेनिंग वॉल, चेक डैम, वर्षा जल निकासी की व्यवस्था, आवासीय परियोजना, कमर्शियल और मिश्रित परियोजना, पुल निर्माण, मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल निर्माण, थीम पार्क आदि।

तैयारी पूरी, मगर हसरत अधूरी 

एमडीडीए की योजना के अनुसार निर्माण कंपनी के साथ 20 से 30 साल के लिए अनुबंध किया जाएगा। कंपनी न सिर्फ परियोजना का निर्माण करेगी, बल्कि संचालन से लेकर रखरखाव की जिम्मेदारी भी उसी की होगी। कंपनी की प्रगति को देखते हुए संचालन की अवधि को 10 साल और बढ़ाया जा सकता है।

साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन भी इंतजार की मुद्रा में 

रिवर फ्रंट डेवपलमेंट योजना में जब तक जमीन का पेच नहीं फंसा था, तब तक एमडीडीए हर स्तर पर योजना को धरातल पर उतारने में जुटा रहा है। यहां तक जनवरी 2019 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की उपस्थित में एमडीडीए उपाध्यक्ष डॉ. आशीष श्रीवास्तव व साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एसआरएफडीसीएल) के अधिशासी निदेशक आरके मेहता ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि लंबे समय से इस योजना पर काम करने के प्रयास किए जा रहे थे।

अब एमओयू के बाद एसआरएफडीसीएल के तकनीकी सहयोग ने दोनों नदियों को दो साल के भीतर पुनर्जीवित किया जा सकेगा। इसमें साफ पानी का प्रवाह निरंतर रहेगा और दोनों किनारों को बेहतर बनाकर आवासीय व व्यावसायिक संरचनाओं का विकास किया जाएगा। वहीं, एसआरएफडीसीएल के अध्यक्ष केशव वर्मा ने दून के प्रयास की सराहना करते हुए बताया था कि साबरमती परियोजना में 1100 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जबकि इससे आज 3500 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हो रहा है। इसी तरह दून में रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना के परवान चढऩे के बाद नदियों की सूरत बदल जाएगी। पर्यटन के लिहाज से भी दून को नई पहचान मिल सकेगी। एमओयू होने से लेकर अब तक छह माह पूरा होने जा रहे हैं और शासन परियोजना पर स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाया है।

 

ढहने लगे 45 करोड़ के पुश्ते 

वर्ष 2016-17 में रिस्पना व बिंदाल नदी पर विभिन्न क्षेत्रों में दोनों तरफ बड़े-बड़े पुश्ते लगाए गए थे। एक तरह से यह कवायद नदी के किनारों को सुरक्षित रखने के मकसद से की गई थी। इस काम में करीब 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। हालांकि, इसके बाद इस काम को बीच में ही रोकना पड़ गया है। आधे-अधूरे काम का यह असर पड़ा कि सालभर के भीतर ही पुश्ते ढहने लगे। बीच में एमडीडीए ने जरूर इनकी मरम्मत कराई थी, मगर हालात अभी भी चिंताजनक ही हैं। यदि जल्द काम को शुरू नहीं किया गया तो एक-एक कर करोड़ों रुपये के यह पुश्ते इसी तरह ढहते रहेंगे।

काम शुरू न होने पर सिंचाई विभाग वापस मांग रहा अपने इंजीनियर 

लंबे समय से रिवर फ्रंट डेवलपमेंट में धरातलीय कवायद रफ्तार न पकडऩे पर सिंचाई विभाग ने अपने इंजीनियर वापस मांगने की बात कही है। क्योंकि सिंचाई विभाग से अधीक्षण अभियंता समेत चार इंजीनियर प्रतिनियुक्ति पर एमडीडीए में सेवा दे रहे हैं। यह बात और है कि एमडीडीए पहले से ही अभियंताओं की कमी से जूझ रहा है और रिवर फ्रंट के काम शुरू न होने की दशा में इनसे तमाम परियोजनाओं पर काम कराया जा रहा है। फिर भी सिंचाई विभाग के अपने अभियंताओं को वापस भेजने की मांग भी बताती है कि रिवर फ्रंट सुप्तावस्था में पहुंच गई है।

ये अभियंता हैं प्रतिनियुक्ति पर 

  • अधीक्षण अभियंता संजीव जैन (करीब तीन साल से)
  • अधिशासी अभियंता संजय राज (करीब 09 माह से)
  • सहायक अभियंता शैलेंद्र रावत (करीब तीन साल से)
  • अवर अभियंता बलवीर सिंह राणा (करीब तीन साल से)

उत्पल कुमार सिंह (मुख्य सचिव, उत्तराखंड) का कहना कि रिवर फ्रंट के लिए एमडीडीए के प्रबंधन में दी गई करीब 43 हेक्टेयर भूमि के हस्तांतरण को लेकर कई तरह की तकनीकी अड़चने सामने आ रही हैं। उन्हें दूर करने के लिए प्रयास जारी हैं। जल्द स्थिति स्पष्ट कर प्रकरण का हल निकाला जाएगा।

विनोद चमोली (पूर्व महापौर व धर्मपुर क्षेत्र के विधायक) का कहना है कि वर्ष 2009-10 में मेरे ही कार्यकाल में साबरमती की तर्ज रिस्पना-बिंदाल की सूरत संवारने की पहल की गई थी। तब से लेकर अब तक जो भी काम किए गए हैं, वह सब अनियोजित रहे। बेहतर होगा कि रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना के लिए एक एसपीवी का गठन किया जाए।

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