जीवन में आपने किसी न किसी से कुछ सीखा होगा, सीखकर काम करना भी मानव की एक प्रवृत्ति है। गुरू के बिना हम जीवन में एक कदम भी नहीं चल सकते, इसलिए गुरू को बहुत महत्व दिया गया है। यही स्थान देवताओं और दानवों में भी किसी न किसी को मिला हुआ है। जहां देवों के गुरू भगवान बृहस्पति माने गए हैं वहीं दानवों के गुरू शुक्राचार्य कहे जाते हैं। जी हां। हम सभी भगवान की पूजा करते हैं। ऐसे में देवताओं के गुरू को कैसे भूला जा सकता है। यदि हमने देव गुरू बृहस्पति को साधलिया तो वे हमें मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। हमारे कई ऐसे काम हैं जो गुरू बृहस्पति की साधना से बन जाते हैं।
जी हां, गुरूवार का दिन देवगुरू को पूजने का दिन होता है। यह इनकी आराधना का ही दिन है। इस दिन भगवान बृहस्पति को पूजा जाता है। देवगुरू श्रद्धालुओं से प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। विवाह में देरी होने पर बृहस्पति मंदिरों में पूजन करना, गुरूवार का व्रत करना शुभफलदायक होता है। देवगुरू बृहस्पति को भी शिव स्वरूप में ही पूजा जाता है। वस्तुतः ये आदि देव शिव का ही स्वरूप हैं। इन्हें शिवलिंग स्वरूप में पूजन कर इनका जलाभिषेक किया जाता है। यदि आपके विवाह में देर हो तो आपको भगवान बृहस्पति के पांच पीले गुरूवार का व्रत बहुत फलदायकहो सकता है।
इस व्रत को करने के लिए आप सुबह स्नान कर शुद्ध पीले वस्त्र धारण करें। इस दिन व्रत रखें। व्रत में उपवास में सेवन किए जाने वाले खाद्य पदार्थ ले सकते हैं। भगवान बृहस्पति का पूजन मंदिर में जाकर और घर पर करें। इस दौरान उन्हें हल्दी की गांठ, पीला वस्त्र, पीली दाल, जैसे तुअर दाल, गुड़, बेसन के या पीले रंग के लड्डु अर्पित करें। यह प्रसाद अर्पित कर वहां मौजूद दर्शनार्थियों को भी बांटे। भगवान को जल अर्पित करें और यदि हो सके तो पीली वस्तु या वस्त्र का जरूरतमंद को दानकरें। इस दौरान भगवान का व्रत कर शाम को या दिन में एक बार भोजन किया जा सकता है। इस तरह के उपाय से भगवानप्रसन्न होते हैं और शीर्घ विवाह होता है।
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