विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अफगान शांति प्रक्रिया के दौरान अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हर हालत में किया जाना चाहिए। दोहा में आयोजित इस वार्ता पर वर्चुअल संबोधन में जयशंकर ने कहा कि शांति प्रक्रिया देश में मानवाधिकारों और लोकतंत्र को प्रोत्साहित करे, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और कमजोर वर्गों के हितों को सुनिश्चित करे और देश में हिंसा को प्रभावी तरीके नियंत्रित करे।
इस दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत के उस रुख को दोहराया जिसमें कहा गया है कि शांति प्रक्रिया अफगानिस्तान द्वारा, अफगानिस्तान की और अफगानिस्तान के नियंत्रण में होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमारे लोगों की दोस्ती अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास का प्रमाण है। हमारी 400 से अधिक विकास परियोजनाओं से अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा अछूता नहीं है। हमें विश्वास है कि यह सभ्यतागत संबंध बढ़ता रहेगा।’
पिछले महीने, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी पिछले महीने 400 तालिबानी कैदियों को रिहा करने पर सहमत हुए थे। गनी का यह फैसला देश में करीब दो दशकों से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए उस शांति प्रक्रिया की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त करता है जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। भारत ने अफगानिस्तान में सहायता और पुनर्निर्माण गतिविधियों में दो बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
बता दें कि शनिवार को दोहा की राजधानी कतर में तालिबान और अफगान सरकार की शांति वार्ता शुरू हो गई है। अफगानिस्तान के लिए वार्ता का नेतृत्व कर रहे पूर्व चीफ एक्जीक्यूटीव अब्दुल्ला ने तत्काल प्रभाव से सीजफायर पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से अब तक 12 हजार नागरिक मारे जा चुके हैं और 15 हजार लोग घायल हुए हैं।
अगर यह वार्ता सफल होती है तो इससे करीब 19 साल बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी का रास्ता साफ होगा। इस वार्ता में अफगानिस्तान सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार और तालिबान का 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भाग ले रहा है। वार्ता की शुरुआत के मौके पर अब्दुल्ला के साथ तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भी मौजूद थे।