वे हिंदुस्तानी साहित्यकार, जो बांग्लादेश के राष्ट्रिय कवि हैं, जिनकी कवितायेँ विद्रोही थीं आज उनकी ही...

वे हिंदुस्तानी साहित्यकार, जो बांग्लादेश के राष्ट्रिय कवि हैं, जिनकी कवितायेँ विद्रोही थीं आज उनकी ही…

New Delhi:भारतीय इतिहास में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र अहम योगदान के लिए आज भी हम काज़ी नज़रुल इस्लाम को याद करते है। काजी काज़ी नज़रुल इस्लाम प्रसिद्ध बांग्ला कवि, संगीत सम्राट, संगीतज्ञ थे।वे हिंदुस्तानी साहित्यकार, जो बांग्लादेश के राष्ट्रिय कवि हैं, जिनकी कवितायेँ विद्रोही थीं आज उनकी ही...18 साध्वियों ने CBI से कहा- हर रात नई लड़किया बुलाता था राम रहीम, और गुफा से बुरी हालत में आती थी…

काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 में पश्चिम बंगाल के चुरुलिया नामक गांव में एक मुश्लिम परिवार घर हुआ था। ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित नज़रुल ने लगभग तीन हज़ार गानों की रचना की साथ कई गानों में अपनी आवाज दी।

 

इनके संगीत को आजकल ‘नज़रुल संगीत’ या “नज़रुल गीति” के नाम से जाना जाता है। उनकी शुरूआती पढ़ाई धार्मिक शिक्षा के रूप में हुई थी। बाद में काज़ी नज़रुल थिएटर से जुड़ गए जहां उन्होंने कविता, नाटक और साहित्य से जुड़ी जानकारी ली।

 

काज़ी नज़रुल इस्लाम बांगला भाषा के साहित्यकार होने के साथ एक देशप्रेमी और बांग्ला देश के राष्ट्रीय कवि भी थे। उनके रचनाओं और गानों को बांग्ला और पश्चिम बंगाल दोनों जगहों पर काफी पसंद किया जाता था।

उनके कई गानों को अंग्रेजों ने बैन कर दिया था। एक मुसलमान होकर भी वे हिन्दु धर्म में दिलचस्पी लिया करते थे। उन्होंने हिन्दु धर्म के भक्तीगीत रचना में भी वे काफी मशहूर हुए थे। उन्होंने मां काली, श्यामा संगीत जैसे भक्तीगीत गाए।

 

अगर उनकी निजी जीवन के बारे में बात की जाए तो वो बेहद उदार किस्म के व्यक्ति थे। उन्होंने एक हिन्दु महिला से शादी की। अक्सर अपनी पत्नी के साथ पूजा में भी शामिल होते थे दोनों के दिलों में एक दूसरे के धर्म के प्रति काफी सम्मान था।

अक्सर उनकी कविताओं में विद्रोह के स्वर होने की वजह से उन्हें ‘विद्रोही कवि’ का नाम दिया गया था। उनकी रचनाओं में अक्सर मनुष्य का आत्याचार, सामाजिक अनाचार, शोषण…. जैसी सोच से प्रेरित होती थी।

 

राष्ट्रीय कवि होने के साथ एक सच्चे देश भक्त काज़ी नज़रुल इस्लाम पिक्स रोग से ग्रसित हो गए थे। इस रोग से ग्रसित होने के बाद उन्होंने लिखना बंद कर दिया था।

बांग्ला देश सरकार के आमन्त्रण पर वे 1972 में सपरिवार ढाका आये। उस समय उनको बांग्ला देश की राष्ट्रीयता प्रदान की गई। यहीं 29 अगस्त, 1976 को उनकी मृत्यु हुई।

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