विशेषज्ञ मानते हैं कि आप उन पर हर चीज में आंख मूंदकर विश्वास करें। जब मैं गूगल पर ‘विशेषज्ञों के मुताबिक’ खोजता हूं, तो मुझे 83 लाख नतीजे मिलते हैं। इससे ऐसा लगता है कि विशेषज्ञों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा किया जा रहा है। ऐसा लगता है मानो जो लोग इंटरनेट और वेब की दुनिया में कुछ लिख-पढ़ रहे हैं, वे ‘विशेषज्ञों के मुताबिक’ पर मेहरबान हैं। इसके बावजूद हम पर इल्जाम यह लगाया जाता है कि हम ऐसे दौर में पहुंच गए हैं जब ‘विशेषज्ञों’ के दिन लद गए से लगते हैं, जब विशेषज्ञता हासिल करने से लोगों का विश्वास उठता सा जा रहा है। क्या ‘विशेषज्ञ’ वाकई विशेषज्ञ होते हैं?
कुछ दिनों पहले मैंने एक अंडरकवर अर्थशास्त्री टिम हाफरेर्ड की एक किताब पढ़ी। उसमें उन्होंने एक खोजकर्ता को याद किया है। वह खोजकर्ता इस बात का विश्लेषण करना चाह रहा था कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति की भावी घटनाओं के बारे में ‘विशेषज्ञ’ कितना सटीक अंदाजा लगाते या लगा पाते हैं।
वह 1984 का दौर था, जब शीत युद्ध अपने निर्णायक दौर में प्रवेश कर रहा था। अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन उन दिनों शीत युद्ध के प्रति बेहद आक्रामक रुख का प्रदर्शन कर रहे थे। इस आक्रामकता पर रूस की संभावित प्रक्रियाएं क्या-क्या हो सकती थीं, इसका पता लगाने की जिम्मेदारी अमेरिका ने यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के युवा मनोवैज्ञानिक फिलिप टेटलॉक को दी। टेटलॉक ने इस मामले में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की जानकारी रखने वाले हर उस विशेषज्ञ से बात की, जिन तक वह पहुंच सकता था।
लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इसकी वजह यह थी कि विशेषज्ञ ही किसी राय पर एकमत नहीं थे। राय चाहे जो भी हो, एक-दो विशेषज्ञ उसके पक्ष में खड़े हो ही जाते थे। टेटलॉक ने इसे लंबी अवधि वाली और बेहद सावधानी से की गई खोज की परियोजना बना दी। उसने विशेषज्ञों से कहा कि वे सवालों के वैसे जवाब दें जिन्हें कसौटी पर परखा जा सके, जिनके सही होने का सुबूत खोजा जा सके।
वह 20 वर्षो तक इस काम में लगा रहा। उसके बाद उसने बताया कि विशेषज्ञों की भविष्यवाणियां कभी सही नहीं हो सकतीं। इस पूरी कहानी का दिलचस्प पहलू यह है कि अध्ययन करते-करते टेटलॉक ने यह भी पाया कि विशेषज्ञों की राय पूरी तरह बेकार भी नहीं थी। किसी भी अन्य शोधकर्ता की तरह टेटलॉक का भी गैर-विशेषज्ञों का एक कंट्रोल ग्रुप था। उसने पाया कि हालांकि, गैर-विशेषज्ञों के कंट्रोल ग्रुप की तुलना में विशेषज्ञों की राय ज्यादा काम की थी।
लेकिन इतनी भी बेहतर नहीं थी कि काम की साबित हो सके। सच तो यह है कि टेटलॉक ने ज्यादा मशहूर विशेषज्ञों को ज्यादा निष्प्रभावी पाया। लेकिन यह उनकी प्रसिद्धि की विफलता थी, विशेषज्ञता की नहीं। टेटलॉक की खोज का कुल सार यह है कि हालांकि, विशेषज्ञता अनुपयोगी नहीं है, लेकिन यह भविष्य से जुड़े सवालों के काम लायक और निश्चित जवाब देने की ओर बहुत दूर तक नहीं ले जाता। अगर कोई यह चाहता है कि उसे विशेषज्ञ से किसी सवाल का तत्काल जवाब मिले, तो बहुत संभव है कि विशेषज्ञ के पास उसका जवाब नहीं होगा। एक और बात है।
जो खुद को जितना बड़ा विशेषज्ञ समझता और दावा करता है, वह इस तरह की भविष्यवाणी में उतना ज्यादा विफल साबित होता है। ऐसे में, बचत और निवेश के मामले में विशेषज्ञों की राय लेने का मतलब क्या है? इसका सीधा मतलब यह है कि क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी के लिए आपको विशेषज्ञों के पास जाने की जरूरत नहीं है। और यह बात मैं इस सच्चाई से अवगत होते हुए कह रहा हूं, कि एक विशेषज्ञ के तौर पर मैं भी कभी-कभी ऐसे विचार व्यक्त कर देता हूं जिसे लोग भविष्यवाणी समझ सकते हैं। इसका अनिवार्य तौर पर मतलब यह है कि हर किसी को अपने बारे में खुद सोचना चाहिए, कम से कम थोड़ा तो सोचना ही चाहिए।
विशेषज्ञ सिर्फ यह कर सकता है कि वह एक ऐसा फ्रेकवर्क मुहैया करा दे, निवेशक जिसके अंदर काम कर सके। यह वास्तव में ‘भविष्यवाणी बनाम सिद्धांत’ की बात है। भविष्यवाणियां काम नहीं आतीं, सिद्धांत काम आते हैं। इन दोनों में भेद करना बेहद आसान है। जब आप निवेश पर सलाह मांगने जाते हैं, तो अमूमन आपको ऐसी सलाह मिलती हैं कि अमुक कंपनी का ईपीएस अगले वर्ष 17 फीसद की दर से बढ़ेगा और मैं उम्मीद करता हूं कि इसका शेयर भाव 400 रुपये पर पहुंच जाएगा। इस तरह के बयानों की कोई कमी नहीं होती।
म्यूचुअल फंड्स और कमोडिटी जैसी संपत्तियों के बारे में भी कमोबेश इसी तरह की भविष्यवाणियां की जाती हैं। इन्हें आप ‘टेटलॉक वर्ग के विशेषज्ञ’ कह सकते हैं। इसलिए, भविष्यवाणियों की सत्यता और शुद्धता का मतलब ही यही है कि वे विशेषज्ञता को सही ठहराने के ऐसे दावे हैं जो असल में अस्तित्व में होते ही नहीं। इसकी वजह यह है कि किसी भी विशेषज्ञ को सबसे पहले विशेषज्ञता की सीमाओं की पहचान होनी चाहिए।
ऐसी भविष्यवाणियों के साथ दिक्कत यह है कि वे न केवल गलत होती हैं, बल्कि गलत उम्मीदें भी स्थापित करने की कोशिश करते हैं। इसलिए, वे कई बार कुछ ऐसा कह जाते हैं जिससे आभास होता है कि यह किसी बड़े विशेषज्ञ ने कहा है। बचतकर्ताओं के साथ दिक्कत यह है कि वे नहीं जानते कि भविष्यवाणी कैसे की जाए, लिहाजा उन्हें विशेषज्ञों पर ही निर्भर रहना चाहिए।इनमें से कुछ भी सही नहीं है। किसी को खुद के लिए विशेषज्ञ होना है, तो उसे सामान्य ज्ञान के अलावा ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।
अब यह सामान्य ज्ञान क्या है, इसके बारे में चर्चा फिर कभी। हम अमूमन विशेषज्ञों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हैं। हर बात में विशेषज्ञों की सुनना और जानना चाहते हैं। लेकिन क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि विशेषज्ञता आखिर है क्या बला? जो विशेषज्ञ हैं, वे कितने विशेषज्ञ हैं और उनकी विशेषज्ञता क्या है? जहां तक बचत और निवेश का प्रश्न है, तो बचतकर्ताओं की राय पर कितना भरोसा किया जाना चाहिए? यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बचतकर्ता और निवेशक आमतौर पर विशेषज्ञों की राय को महत्व देते ही हैं।