परंपरागतफलित ज्योतिष में कुंडली में गुरु और सूर्यआदि की स्थिति मानकर ही पितृदोष माना जाता है, परंतु लेकिन लाल किताब में कुंडली के अनुसार तो पितृदोष होता ही है और इसके और भी कई कारण होते है। यदि आपको लगता है कि आपकी कुंडली में पितृ दोष या कालसर्प दोष नहीं है फिर भी आप उसी तरह परेशान क्यों है जिस तरह की पितृदोष की कुंडली वाले रहते हैं तो जानिए लाल किताब अनुसार कुछ खास कारण।
1. पितृ ऋण और दोष कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। लेकिन यदि आपकी कुंडली में पितृदोष नहीं है फिर भी आप उसी तरह से संकटों से घिरे हैं, परेशान हैं तो यहां बताना जरूरी है कि लाल किताब अनुसार व्यक्ति अपने कर्मों से पितृ दोष निर्मित कर लेता है।
2. व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। जैसे कोई व्यक्ति पिता से वैरभाव रखता है, देवताओं का अपमान करता है और मंदिर का विरोध करता है तब भी पितृदोष प्रारंभ हो जाता है। पीपल का वृक्ष काटना या पूजा स्थान पर तोड़फोड़ करने से भी पितृदोष लगता है।
3. जब कोई जातक अपने पूर्वजन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है।
4. हमारे पितृ धर्म को छड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण या दोष बनता है, इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं। अर्थात करे कोई और भुगते कोई वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी।
5. लाल किताब के अनुसार यदि आपके पूर्वजों ने कोई अपराध किया है जैसे पीपल या बरगद का वृक्ष काटा, घर के पास का पूजा स्थान तोड़ा, मूर्ति तोड़ी या चुराई हो तो उसका भुगतान आपको भी करना होगा।
6. कुल धर्म या कुल देवों को छो़ड़ दिया हो तो भी उसका भुगतान आपको ही करना होगा। आपने यह तो सुना ही होगी कि जेनेटिक प्रॉब्लब अर्थात अनुवांशिक रोग। यह उसी तरह का है। क्योंकि आपका शरीर आपके पूर्वजों की देने हैं, जो जेनेटिक प्रॉब्लब तो रहेगी ही।
7. पितृ ऋण तब लगता है जबकि पितरों या बड़ों ने कुल पुरोहित का अपमान किया हो या उसके साथ कुछ गलत किया हो। पीपल और बरगद का वृक्ष काटने पर भी यह ऋण होता है। इसके अलवा हो सकता है कि किसी मंदिर में तोड़फोड़ की गई होगी। देवता का अपमान किया गया होगा। इसे पूर्वजों का ऋण भी कहते हैं। पूर्वजों का ऋण मतलब अपने पूर्वजों और पितरों के द्वारा किए गए पापों का फल आपको भुगतना होगा।
कुंडली अनुसार –
– लाल किताब के अनुसार जब कुण्डली में बृहस्पति 2, 5, 9, 12 भावों से बाहर हो जोकि बृहस्पति के पक्के घर है तथा बृहस्पति स्वयं 3, 6, 7, 8, 10 भाव में और बृहस्पति के पक्के घरों (2,5,9,12) में बुध या शुक्र या शनि या राहु या केतु बैठा हो तो व्यक्ति पितृ ऋण से पीडित होता है। जबकि वैदिक ज्योतिष में सूर्य का राहु, केतु या शनि के साथ होने या दृष्टि होने पर पितृदोष माना जाता है।
– लाल किताब के अनुसार कुंडली का नौवां घर यह बताता है कि व्यक्ति पिछले जन्म के कौन से पुण्य साथ लेकर आया है। यदि कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र है तो यह कुंडली पितृदोष की है। लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं। यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।