उत्तर प्रदेश के महोबा में लॉकडाउन के चलते श्रमिकों का रोजगार छिन जाने से अब श्रमिकों की घर वापसी के लिए होड़ मची है। कोई पैदल, कोई ट्रकों पर, कोई नई साइकिल खरीदकर घर के लिए निकल पड़ा है। ऐसे में एक श्रमिक का पूरे परिवार और गृहस्थी के साथ रिक्शे से घर के लिए निकल पड़ा।

एक हफ्ते में परिवार के साथ महोबा के बरा गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने श्रमिक का हौंसला बढ़ाया। थाना श्रीनगर के ग्राम बरा निवासी रामचरण सात माह पहले परिवार के साथ दिल्ली में मजदूूूूरी करता था।
मार्च माह में अचानक लॉकडाउन होने से काम बंद हो गया। एक माह तक काम शुरू होने की उम्मीद में वह लोग दिल्ली में रहे लेकिन एक के बाद एक लॉकडाउन बढ़ता गया।
इससे उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। उसके साथी पैदल और ट्रकों से निकल चुके थे। बढ़ने पर श्रमिक रामचरण ने अपने घर आने का मन बनाया।
दिल्ली से महोबा आने के लिए कोई साधन न मिलने से बीस दिन तक श्रमिक परेशान रहा। बाद में श्रमिक रामचरण ने वहीं एक पुराना रिक्शा खरीदा और परिवार के सभी नौ लोगों को रिक्शे में बैठाकर गांव के लिए निकल पड़ा।
कुछ दूर रामचरण रिक्शा चलाता था तो उसका छोटा भाई रिक्शे मेें आराम करता था और छोटे भाई के रिक्शा चलाने पर बड़ा भाई आराम करता था।
दिनरात एक सप्ताह तक रिक्शा घसीटने के बाद रामचरण के परिवार को मंजिल मिल गई। घर आने के बाद परिवार के लोगों से मिलकर खुश हैं।
श्रीनगर के ग्राम बरा निवासी रामचरण अहिरवार का कहना है कि वह दिल्ली मजदूरी करने गया था लेकिन लॉकडाउन के चलते रोजी-रोटी के भी लाले पड़ गए।
एक माह बाद रिक्शा खरीद लेने से खाने तक के लिए पैसा नहीं बचा। रास्ते में तीन दिन भूखे रहकर रिक्शा चलाया। बच्चों को पानी में बिस्किट देकर बहलाया।
श्रीनगर के बरा निवासी मुन्नी का कहना है कि दिल्ली अब कभी नहीं जाऊंगी। घर में रूखी-सूखी खाकर रहूंगी लेकिन बाहर की तरफ अब रूख नहीं करना है।
35 साल की उम्र में ऐसा समय पहले कभी नहीं देखा है। लॉकडाउन के बाद मानो दुखों का पहाड़ टूट गया हो। आटा, सब्जी, दवा सब बंद हो गया था। कभी सूखी रोटी तो कभी भूखे पेट बच्चों को सुलाया। कुछ दिन बाद आटा और सब्जी मिली।
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