आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद से विकास दुबे ने 7 दिनों तक 3 राज्य में लुकाछिपी की और फिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में सरेंडर किया. लेकिन इसके बावजूद कोई उपाय काम नहीं आया और कानपुर लाए जाते वक्त गाड़ी पलटी तो उसने भागने की कोशिश की, जिसमें वो मारा गया.
सात दिनों तक चकमा देने वाला विकास दुबे आखिरकार पुलिस की गिरफ्त में गुरुवार को आया. ‘मैं विकास दुबे, कानपुर वाला’- 154 घंटे बाद जब मध्य प्रदेश के उज्जैन में ये आवाज सुनाई दी तो सब लोग चौंक गए थे. कानपुर कांड के जिस आरोपी विकास दुबे ने 7 दिनों से यूपी पुलिस की नींद हराम कर रखी थी. वो उज्जैन के महाकाल मंदिर में पकड़ा गया. बताया जाता है कि भागते वक्त पुलिस को उसकी यूपी, हरियाणा और एमपी में लोकेशन मिली थी.
फिलहाल, बता दें कि 50 हजार से शुरू हुई इनामी राशि 5 लाख तक पहुंच गई. लेकिन विकास दुबे यूपी के कई जिलों से पुलिस को चकमा देते हुए कानपुर से करीब पौने सात सौ किलोमीटर दूर महाकाल के दरबार पहुंच गया. सुबह करीब 7.30 बजे महाकाल पहुंच गया. जहां उसने महाकाल के दर्शन किए.
बहरहाल, विकास ने मंदिर में दर्शन के लिए पर्ची कटवाई. फूल खरीदे. वहीं अपना नाम गलत बताया और फर्जी आई कार्ड दिखाया. जैसे ही उज्जैन की पुलिस विकास को पकड़ती है वो लगातार चिल्लाता रहता है कि वो विकास दुबे है ताकि मीडिया और आसपास के लोग का ध्यान उसकी तरफ जाए.
क्या कानपुर से उज्जैन तक का सफर क्या विकास की सोची समझी चाल थी. ये विकास का सेरेंडर था या फिर पुलिस की गिरफ्तारी. क्योंकि ये बात तो विकास को भी पता थी कि महाकाल मंदिर में सीसीटीवी कैमरे हैं. भीड़ रहती है, जहां वो आसानी से पकड़ा जा सकता है.
परसों रात साढ़े दस बजे के आसपास उज्जैन के डीएम आशीष सिंह और एसएसपी मनोज कुमार भारी हड़बड़ाहट में उज्जैन मे महाकाल मंदिर पहुंचे थे. उसके बाद मीटिंग हुई. हालांकि ये साफ नहीं हो पाया कि इस मीटिंग का विकास दुबे से कनेक्शन था या नहीं. लेकिन उज्जैन के डीएम की माने को विकास दुबे ने वहां मौजूद पुलिस वालों से हाथापाई भी की.
जानकारी के मुताबिक जब विकास पकड़ा गया तो उसके पास एक बैग था. बैग में कुछ कपड़े, एक मोबाइल, उसका चार्जर कुछ काग़ज़ात मिले है. सूत्रों के मुताबिक ये मोबाइल विकास का ही था. इसी मोबाइल से इसने कई लोगों से सम्पर्क किया. सम्पर्क करने के बाद विकास फोन ऑफ कर लेता था और फिर फ़ौरन अपनी जगह बदल लेता था.
बहरहाल विकास दुबे अब मारा जा चुका है. लेकिन सवाल है कि आखिर वो कानपुर से उज्जैन तक कैसे पहुंचा. किसने विकास की मदद की. आखिर 7 दिनों तक विकास दुबे ने पुलिस को कैसे चकमा दिया.
बता दें कि आठ पुलिस वालों की जान लेने के बाद विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिसवालों की लाशों के साथ भी हैवानियत की थी. विकास दुबे तो पुलिस वालों के शव घर के करीब ही गांव के कुएं में जलाना चाहता था. उसने पांच पुलिसवालों की लाशें कुएं के करीब रखवा भी दी थीं. मगर उसे वक्त नहीं मिला और वो भाग गया. सात दिन बाद आखिरकार सरेंडर की शक्ल में वो उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाहर से पकड़ा गया था.