इलाहाबाद और सिद्धार्थनगर में शनिवार की सुबह डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा टूटी मिली। कहा जा रहा है कि पिछली रात कुछ अराजक तत्वों ने इसे तोड़ दिया। शुक्रवार को ही हरदोई के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी हरि प्रसाद आंबेडकर ने जिलाधिकारी पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए प्रमुख सचिव को त्यागपत्र भेज दिया। 
अभी 10 मार्च को आजमगढ़ में आंबेडकर की प्रतिमा के साथ छेड़छाड़ का मामला सामने आया था। भाजपा सांसद सावित्री बाई फूले दलित आरक्षण के मुद्दे पर अपनी ही सरकार पर हमलावर हैं। वह रविवार को यहां रैली कर रही हैं। भाजपा गठबंधन के साथी और कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर का दर्द है कि सरकार में गरीबों और दलितों की सुनवाई नहीं हो रही है। वह इस मामले पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिल आए हैं। साफ है कि दलित एजेंडे से जुड़ी ये घटनाएं और फूले व राजभर जैसों के तेवर भाजपा की परेशानी बढ़ा सकते हैं।
प्रतिमाएं कैसे या किसने तोड़ी, इसके पीछे कौन लोग हैं, यह तो जांच से पता चलेगा। पर, एक ही रात दो स्थानों पर आंबेडकर की प्रतिमाओं पर प्रहार सामान्य मामला नहीं बल्कि गहरी साजिश का हिस्सा दिखता है। इसे किसी अराजक व्यक्ति ने अंजाम दिया है। ये घटनाएं तब घटी हैं जब भाजपा 2019 के चुनाव की तैयारी कर रही है। सरकार का सभी वर्गों पर फोकस है लेकिन दलित व पिछड़ा एजेंडे पर विशेष ध्यान है। खासतौर से बसपा- सपा के गठबंधन के बाद।
दलित आरक्षण से छेड़छाड़ न करने और एससी एसटी अत्याचार निवारण एक्ट के प्रावधानों को जस का तस रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला इसका प्रमाण है। दलितों के दिलों में भाजपा की दलित हितैषी छवि बनाए रखने की कोशिश ही नहीं हो रही बल्कि अति पिछड़ों व अति दलितों को आरक्षण में आरक्षण के फॉर्मूले से लाभ देने की घोषणा भी की गई है। मगर, ताजा घटनाएं भाजपा की राह में समस्या बन सकती हैं।
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