यूपी : बसपा ने MLC चुनाव में सपा को दिया वॉकओवर

उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 12 सीटों के लिए 28 जनवरी को होने वाले चुनाव की तस्वीर साफ हो गई है. नामांकन के अंतिम दिन यानी सोमवार को बीजेपी के दस प्रत्याशियों के पर्चा दाखिल करने के बाद महेश चंद्र शर्मा निर्दलीय तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. 13वें प्रत्याशी के उतरने से भले ही चुनाव में रोमांच दिख रहा हो, लेकिन उनका पर्चा खारिज हो जाने की संभावना दिख रही है, क्योंकि कोई भी विधायक उनका प्रस्तावक नहीं है. ऐसे में सपा के दो और बीजेपी के 10 एमएलसी का निर्विरोध चुना जाना तय है. सबसे अहम सवाल यह है कि बसपा दो नामांकन पत्र खरीदने के बाद भी एमएलसी चुनाव में नहीं उतरी, जिसके चलते सपा को वॉकओवर मिलता दिख रहा है.  

यूपी विधान परिषद के चुनाव में बसपा के उतरने की पूरी तैयारी थी, जिससे माना जा रहा था कि 12 सीटों के लिए वोटिंग करानी पड़ सकती है. बसपा ने एमएलसी चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले दिन ही दो नामांकन पत्र खरीदे थे, जिससे लगा रहा था कि राज्यसभा की तरह विधान परिषद में भी चुनावी किस्मत आजमाएगी. हालांकि, नामांकन के आखिरी दिन सोमवार को शाम ढलते-ढलते ये साफ हो गया है कि बसपा ने चुनाव मैदान में नहीं होगी. क्योंकि पार्टी की ओर से कोई भी नामांकन दाखिल नहीं किया गया. 

हालांकि, 13वें एमएलसी प्रत्याशी के तौर पर महेश चन्द्र शर्मा ने निर्दलीय तौर पर नामांकन किया है, लेकिन उनका पर्चा शायद ही स्वीकार हो. महेश चन्द्र शर्मा किसी भी पार्टी के बैकअप कैंडिडेट नहीं हैं. विधान परिषद का चुनाव लड़ने के लिए एक बड़ी शर्त होती है. पर्चा भरते समय उसमें 10 विधायकों को प्रस्तावक बनाना पड़ता है. अब इस शर्त को महेश चन्द्र शर्मा पूरी करते दिखाई नहीं दे रहे हैं. ऐसे में उनका पर्चा खारिज होना तय है. ऐसे में सभी सपा और बीजेपी के सभी का निर्विरोध चुना जाना तय है. 

बीजेपी की ओर से उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह, पूर्व आईएएस अरविंद कुमार शर्मा, कुंवर मानवेन्द्र सिंह, गोविन्द नारायण शुक्ला, सलिल विश्नोई,  अश्वनी त्यागी,  धर्मवीर प्रजापति, सुरेन्द्र चौधरी और लक्ष्मण आचार्य मैदान में है, जिनका निर्विरोध चुना जाना तय है. वहीं, सपा की ओर से अहमद हसन और राजेंद्र चौधरी का उच्च सदन पहुंचना तय माना जा रहा है. 

अखिलेश यादव ने भले ही एमएलसी चुनाव के लिए दो कैंडिडेट उतार दिए हों, लेकिन दोनों सीट जीतने के लिए उनके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं है. सपा के 48 विधायक जीतकर आए थे, जिनमें आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम खां की विधायकी का मामला कोर्ट में विचाराधीन है. इसके अलावा नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल सपा से बागी हो चुके हैं. ऐसे ही शिवपाल यादव सपा के विधायक हैं, लेकिन उन्होंने अपनीअलग पार्टी बना रखी है. इस तरह से सपा के पास फिलहाल 45 विधायक ही बचते हैं. 

यूपी में एक एमएलसी सीट के लिए 32 वोटों की जरूरत है. इस तरह से सपा के पास एक सीट जीतने के बाद 13 विधायक ही बचेंगे और उन्हें दूसरी सीट जीतने के लिए कम से कम 19 विधायकों का समर्थन जुटाना होगा. ऐसे में बसपा के पांच बागी विधायक सपा के साथ आ सकते हैं, जिसके बाद सपा को अपने दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती. इसके बावजूद बसपा ने एमएलसी चुनाव में अपना कोई प्रत्याशी नहीं दिया जबकि मायावती ने राज्यसभा चुनाव के दौरान कहा था कि एमएलसी चुनाव में सपा को हराने के लिए अगर बीजेपी की भी मदद करनी पड़ी तो करेंगी. इसके बाद भी बसपा ने आखिर क्यों एमएलसी चुनाव नहीं लड़ा, जिसके सपा को वॉकओवर मिल गया.

बसपा एमएलसी चुनाव में नहीं लड़ने की कई अहम वजह मानी जा रही है. पहला कारण तो यही है कि बसपा के पास पर्याप्त संख्या नहीं थी जिसके दम पर एमएलसी चुनाव में उतरकर सियासी जंग फतह कर सके. यही नहीं बसपा के 2017 में 19 विधायक जीतकर आए हैं, उनकी संख्या करीब आधी हो गई है. इस लिहाज से फिलहाल बसपा के पास 10 विधायक बच रहे हैं, जो प्रस्तावक के लिए पर्याप्त संख्या थी लेकिन जीतने के लिए नहीं. 

बसपा अगर चुनावी मैदान में उतरती तो बिना बीजेपी के सहयोग के जीत मुश्किल थी. मायावती विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी के सहयोगी होने के तमगे से बचना चाहती है, क्योंकि लगातार बीजेपी के मदद का आरोप तमाम विपक्षी पार्टियां लगा रही है. इसीलिए मायावती अपने जन्मदिन के मौके पर साफ तौर पर कहा था कि बसपा 2022 में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. इसीलिए उन्होंने एमएलसी चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने से परहेज किया है. हालांकि, बसपा अगर प्रत्याशी उतारती तो अपना दल, ओम प्रकाश राजभर और निर्दलियों की मदद से सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती थी. मगर, बसपा के कदम से सपा की दूसरी सीट की राह आसान हो गई. 

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