उत्तर प्रदेश का रायबरेली जिला जिसे गांधी परिवार का मजबूत दुर्ग माना जाता है. वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं. और कुछ साल पहले तक यहां के कुछ लोगों की सिफारिश, मंत्री और विधायकों से भी ज्यादा प्रभावी मानी जाती थी.
साथ ही केंद्र सरकार की ओर से इस जिले के विकास का पूरा ख्याल रखा जाता था. राज्य सरकार की ओर से भी केंद्र से तालमेल मिलाने के चक्कर में रायबरेली का पूरा ख्याल रखा जाता था.
हालांकि साल 2014 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेस की विदाई के बाद से रायबरेली के विकास पर अब फोकस पहले जैसा नहीं रहा. इसको लेकर कई कांग्रेसी नेता सवाल भी खड़े करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र होने के नाते रायबरेली उपेक्षा का शिकार है?
योगी सरकार अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर रही है. सीएम योगी के गृहक्षेत्र गोरखपुर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इनदिनों विकास टॉप एजेंडे में है. इतना ही नहीं विकास कार्यों की सीएम योगी स्वयं यहां मॉनिटरिंग करते रहे हैं. इसका नतीजा है कि प्रशासन का ढुलमुल रवैया यहां नहीं दिखता. विकास को यहां गति मिली है.
वहीं, रायबरेली को लेकर कांग्रेस नेता मनीष सिंह कहते हैं कि यहां जो भी विकास कार्य हुए हैं वो कांग्रेस सरकार में ही हुए हैं. सोनिया गांधी ने रायबरेली को रेल कोच फैक्ट्री, विसाका सीमेंट फैक्ट्री, शीना होमटेक्स सहित तमाम कारखाने लगाए तो एम्स हॉस्पिटल दिया तो रायबरेली को रिंग रोड की सौगात दी. लेकिन, कांग्रेस के सत्ता में न होने से रायबरेली के साथ केंद्र की नरेंद्र मोदी और राज्य की योगी सरकार भेदभाव कर रही है.
वहीं, बीजेपी नेता प्रेम मौर्य कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में योगी सरकार के आने के बाद से रायबरेली में कांग्रेस सरकार की तुलना में ज्यादा काम हुए हैं.
कांग्रेस राज में सिर्फ पत्थर लगे थे, लेकिन बीजेपी सरकार के दौरान विकास को जमीन पर उतारा गया है. सीएम योगी करीब पांच बार रायबरेली आ चुके हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास योजनाओं की सौगात देने खुद आए थे. भेदभाव करने का काम कांग्रेस करती है बीजेपी नहीं.
प्रेम मौर्य कहते हैं कि कांग्रेस राज 2009 में ही रायबरेली में फैक्ट्रियां बंद होने लगी थी. 2009 में शुगर मिल बंद हो चुकी थी. शीना होमटेक्स 2005 में शुरू हुई थी और 2009 में बंद हो गई है. मोदी कारपेट 1995 में और रायबरेली टेक्सटाइल 2010 में ही ताला लग गया. मित्तल फर्टिलाइजर, अपकाम केबल, कंसेप्टा केबल समेत करीब 10 लघु उद्योग कांग्रेस के राज में ही बंद हो गए थे. ऐसे में बीजेपी पर आरोप लगाना निराधार है.
दरअसल 1952 में रायबरेली सीट से कांग्रेस के टिकट पर फिरोज गांधी जीते तो लोगों की निगाहों में चमक आ गई. उन्हें लगा कि केंद्रीय सत्ता वाले दल का नुमाइंदा जिताते रहने से विकास की गाड़ी दौड़ती रहेगी.
ऐसा हुआ भी, 15 सालों के बाद 1967 में उस दौर की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी यहां चुनाव लड़ने आईं और उनके जीतने के बाद यहां विकास तेजी से दौड़ा भी. आईटीआई, एनटीपीसी, रायबरेली टेक्सटाइल और मोदी कारपेट जैसी तमाम फैक्ट्रियां लगी.
इसके बाद सोनिया गांधी राजनीति में आई तो 2004 में रायबरेली को अपनी संसदीय क्षेत्र के तौर पर चुना तो एक बार फिर विकास की आस जागी. सोनिया गांधी यहां से लगातार जीत कर संसद पहुंचती रही हैं और मनमोहन सिंह के दस साल के कार्यकाल में रायबरेली में कई विकास की योजनाएं आईं. अब केंद्र व राज्य की बदली हुई सत्ता के बाद ये सवाल खड़े हो रहे हैं कि रायबरेली के साथ भेदभाव हो रहा है.