परिवार का आधार गृहस्थी होती है और गृहस्थी की धुरी दाम्पत्य पर टिकी होती है। लोग परिवार, गृहस्थी और दाम्पत्य को एक ही समझते हैं लेकिन इनमें बहुत बारीक अंतर होता है। दाम्पत्य, पति-पत्नी के निजी संबंधों से चलता है, गृहस्थी पति-पत्नी के साथ संतान की जिम्मेदारियों से जुड़ी होती है, जिसमें आर्थिक, मानसिक और भौतिक तीनों स्तरों पर व्यवस्था मुख्य होती है।
परिवार इन सब का समग्र रूप है, जिनमें पति-पत्नी और संतान के अलावा अन्य रिश्ते भी शामिल होते हैं। अगर गृहस्थी की बात करें तो यह शुरू होती है दाम्पत्य से। पति-पत्नी के रिश्ते में समर्पण, प्रेम और कर्तव्य का भाव ना हो तो गृहस्थी सफल हो ही नहीं सकती। हमारे प्रेम और कर्मों से ही हमारी संतानों के संस्कार और भविष्य दोनों जुड़े हैं। पति-पत्नी सिर्फ खुद के लिए ना जीएं, संतान हमारी सम्पत्ति हैं, इन्हें व्यर्थ ना जाने दें। संस्कार दें, समझ दें और कर्तव्य का भाव पैदा करें।
देखिए महाभारत में धृतराष्ट्र और गांधारी का दाम्पत्य। धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। उनका विवाह सुंदर गांधारी से हुआ। गांधारी ने जब देखा कि मेरे पति जन्म से अंधे हैं तो उसने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। पिता अंधा था, माता ने अंधत्व ओढ़ लिया। दोनों अपनी संतानों के प्रति कर्तव्य से विमुख हो गए। संस्कार और शिक्षा दोनों की व्यवस्था सेवकों के हाथों में आ गई। माता-पिता में से कोई भी उनकी ओर देखने वाला नहीं था। सो, सारी संतानें दुराचारी हो गईं।
गांधारी अगर यह सोचकर आंखों पर पट्टी नहीं बांधती कि संतानों का क्या होगा, उनके लालन-पालन की व्यवस्था कौन देखेगा तो शायद महाभारत का युद्ध होने से रुक जाता। लेकिन पति-पत्नी ने सिर्फ अपने दाम्पत्य के सुख को देखा, गृहस्थी यानी संतान और अन्य कामों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। संतानें सिर्फ सम्पत्ति नहीं होती, वे हमारा कर्तव्य भी हैं। अगर अपने रिश्तों में इस बात का ध्यान नहीं दिया तो परिणाम भी हमें ही देखना होगा।