दिवाली के दूसरे दिन ही गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है।हर साल यह पर्व मनाया जाता है जो बहुत ख़ास होता है।वैसे आप जानते ही होंगे कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण की गोवर्धन के रूप में पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि, ‘द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप गोकुलवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊंगली पर उठा लिया था।’ वैसे आप यह नहीं जानते होंगे कि भगवान श्री कृष्ण से पहले किस देवता ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। तो आइए आज हम आपको उसी से जुडी कथा बताने जा रहे हैं।

गोवर्धन पर्वत की त्रेतायुग की कथा- पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम का अवतार लिया था। उस समय उन्हें लंका तक पहुंचने के लिए वानर सेना की सहायता से समुद्र पर सेतु का निर्माण करना पड़ा था। उस समय पानी में सेतु के निर्माण के लिए बहुत सारे पत्थरों की जरूरत थी। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए हनुमान जी हिमालय पर चले गए। हिमालय पर पहुंचकर उन्होंने एक बड़ा सा पर्वत उठा लिया और समुद्र की ओर चल पड़े।
लेकिन रास्ते में ही उन्हें यह पता चल गया कि सेतु निर्माण पूजा हो चुका है। जिसके बाद हनुमान जी दुविधा में पड़ गए और उसके बाद उन्होंने पर्वत को वहीं जमीन पर रख दिया। यह पर्वत कोई ओर नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत ही था। यह देखकर गोर्वधन पर्वत निराश हो गए और उन्होंने हनुमान जी से कहा कि मैं न तो श्री राम के काम आया और न हीं अपने स्थान पर रह सका। गोवर्धन पर्वत को इस तरह से निराश देखकर हनुमान जी को उस पर दया आ गई। जिसके बाद हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत से कहा कि द्वापर युग में भगवान श्री राम भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे। उस समय भगवान श्री कृष्ण आपको अपनी ऊंगली पर उठाकर देवता के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे और लोग आपकी पूजा भी करेंगे। इसी भविष्यवाणी के कारण श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठा लिया था।
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