भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो अगले साल चंद्रयान-3 लॉन्च करेगा. इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस बार चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर थोड़ा अलग होगा. चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर में पांच इंजन (थ्रस्टर्स) थे लेकिन इस बार चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में सिर्फ चार ही इंजन होंगे. इस मिशन में लैंडर और रोवर जाएंगे. चांद के चारों तरफ घूम रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ लैंडर-रोवर का संपर्क बनाया जाएगा.

विक्रम लैंडर के चारों कोनों पर एक-एक इंजन था जबकि एक बड़ा इंजन बीच में था. लेकिन इस बार चंद्रयान-3 के साथ जो लैंडर जाएगा उसमें से बीच वाला इंजन हटा दिया गया है. इससे फायदा यह होगा कि लैंडर का भार कम होगा. आपको बता दें कि लैंडिंग के समय चंद्रयान-2 को धूल से बचाने के लिए पांचवां इंजन लगाया गया था. ताकि उसके प्रेशर से धूल कण हट जाएं. इस बार इसरो इस बात को लेकर पुख्ता है कि धूल से कोई दिक्कत नहीं होगी.
इसरो इसलिए पांचवां इंजन हटा रहा है क्योंकि अब उसकी जरूरत नहीं है. इससे लैंडर का वजन और कीमत बढ़ती है. इसरो के साइंटिस्ट ने लैंडर के पैरों में भी बदलाव करने की सिफारिश की है. अब देखना ये है कि वो किस तरह के बदलाव होंगे. इसके अलावा लैंडर में लैंडर डॉप्लर वेलोसीमीटर (LDV) भी लगाया गया है, ताकि लैंडिंग के समय लैंडर की गति काीसटीक जानकारी मिले और चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर जैसी घटना न हो.
आपको बता दें कि चांद के गड्ढों पर चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर अच्छे से उतर कर काम कर सकें, इसके लिए बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर छल्लाकेरे के पास उलार्थी कवालू में नकली चांद के गड्ढे तैयार किए जाएंगे. इसरो के सूत्रों ने बताया कि छल्लाकेरे इलाके में चांद के गड्ढे बनाने के लिए हमने टेंडर जारी किया है. हमें उम्मीद है कि सितंबर के शुरुआत तक हमें वो कंपनी मिल जाएगी जो ये काम पूरा करेगी. इन गड्ढों को बनाने में 24.2 लाख रुपये की लागत आएगी.
ये गड्ढे 10 मीटर व्यास और तीन मीटर गहरे होंगे. ये इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि हम चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर के मूवमेंट की प्रैक्टिस कर सकें. साथ ही उसमें लगने वाले सेंसर्स की जांच कर सकें. इसमें लैंडर सेंसर परफॉर्मेंस टेस्ट किया जाएगा. इसकी वजह से हमें लैंडर की कार्यक्षमता का पता चलेगा.
चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 मिशन भी अगले साल लॉन्च किया जाएगा. इसमें ज्यादातर प्रोग्राम पहले से ही ऑटोमेटेड होंगे. इसमें सैकड़ों सेंसर्स लगे होंगे जो ये काम बखूबी करने में मदद करेंगे. लैंडर के लैंडिंग के वक्त ऊंचाई, लैंडिंग की जगह, गति, पत्थरों से लैंडर को दूर रखने आदि में ये सेंसर्स मदद करेंगे.
इन नकली चांद के गड्ढों पर चंद्रयान-3 का लैंडर 7 किलोमीटर की ऊंचाई से उतरेगा. 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर आते ही इसके सेंसर्स काम करने लगेंगे. उनके अनुसार ही लैंडर अपनी दिशा, गति और लैंडिंग साइट का निर्धारण करेगा. इसरो के वैज्ञानिक इस बार कोई गलती नहीं करना चाहते इसलिए चंद्रयान-3 के सेंसर्स पर काफी बारीकी से काम कर रहे हैं.
इसरो के अन्य वैज्ञानिक ने बताया कि हम पूरी तरह से तैयार लैंडर का परीक्षण इसरो सैटेलाइट नेविगेशन एंड टेस्ट इस्टैब्लिशमेंट में कर रहे हैं. फिलहाल हमें ये नहीं पता कि यह कितना उपयुक्त परीक्षण होगा और इसके क्या नतीजे आएंगे. लेकिन परीक्षण करना तो जरूरी है. ताकि चंद्रयान-2 वाली गलती न होने पाए.
इसरो ने चंद्रयान-2 के लिए भी ऐसे ही गड्ढे बनाए थे. उसपर परीक्षण भी किए गए थे लेकिन चांद पर पहुंचने के बाद विक्रम लैंडर के साथ जो हादसा हुआ, उसके बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है. जिस तकनीकी खामी की वजह से वह हादसा हुआ था, उसे चंद्रयान-3 के लैंडर में दूर कर लिया गया है.
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