New Delhi : बाबा राम रहीम को पहलवान बनाने में नेताओं का बड़ा हाथ रहा है। आज जनता तो मर रही है लेकिन वो नेता मजे से AC में बैठे हैं।अभी-अभी: पुलवामा में हुआ आतंकी हमला, पुलिस का एक जवान शहीद, सात जवान भी जख्मी
जी हां एक पूर्व CBI अधिकारी ने खुलासा किया है कि कांग्रेस बाबा को बचाना चाहती थी। 2007 में कांग्रेस ने केस बंद करने के लिए भी कहा था। जिसके बाद 2007 और 2009 के चुनावों में बाबा ने कांग्रेस का समर्थन किया था।
सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्या वजह है कि गुरमीत राम रहीम और उसके समर्थकों की हिम्मत इतनी कैसे बढ़ गई? आइए समझने की कोशिश करते हैं कि राम रहीम इतना पावरफुल कैसे बना?
प्रत्याशियों की हार-जीत तय करता है राम रहीम: हरियाणा और पंजाब में पिछले दो दशक की राजनीति पर गौर करने पर पता चलता है कि गुरमीत राम रहीम ने अपने समर्थकों के बल पर राजनीति में सीधी दखल दे रहा था।
पंजाब के मालवा क्षेत्र में राम रहीम के समर्थकों की संख्या बल इतनी अधिक है कि उसी से हार-जीत तय होती है। आलम यह रहा है कि इस इलाके में विभिन्न दलों के प्रत्याशियों के चुनाव में भी राम रहीम के डेरा की चलती है।
मालवा की 35 सीटों पर डेरा की तूती: पंजाब विधानसभा में 117 सीटें हैं, जिसमें से 35 मालवा और इसके आस-पास के इलाकों की हैं। जानकार कहते हैं कि इन 35 सीटों पर डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी निर्णायक भूमिका में होते हैं। डेरा प्रमुख के एक इशारे पर अनुयायी किसी खास उम्मीदवार को ज्यादातर वोट मिल जाते हैं।
साल 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव पर गौर करें तो विभिन्न दलों के 44 उम्मीदवार गुरमीत राम रहीम से मिलने पहुंचे थे और उससे समर्थन की गुजारिश की थी।
राजनीति हालात देखकर पाला बदलता रहा है राम रहीम: गुरमीत राम रहीम पंजाब और हरियाणा में साल 2002 से लेकर हालिया चुनाव तक अलग-अलग पार्टियों को सपोर्ट करता रहा है। यूं कहें कि राम रहीम राजनीति हवा को भांपकर डेरा के समर्थन का ऐलान करता है।
डेरा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन कर दिया था। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में सरकार थी, शायद इसी वजह से उसने हुड्डा का समर्थन किया था। लेकिन पंजाब में अकाली-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी थी।