बजट पेश होने में दो हफ्तों से भी कम समय रह गया है. 1 फरवरी को पेश होने वाले इस बजट में सरकार स्वास्थ्य के मोर्चे पर ज्यादा बजट आवंटन देने की मूड में नहीं है. सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए सरकार इस पर होने वाले खर्च में महज 11 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकती है.
सरकार बजट में तकरीबन 52 हजार करोड़ रुपये (8.2 अरब डॉलर) का आवंटन स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कर सकती है. हालांकि यह स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की 33 फीसदी की मांग से कम है.
सूत्रों की मानें तो स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इससे ज्यादा फंड आवंटन की मांग रखी थी. उन्होंने सरकार से बीमारियों की रोकथाम के लिए बजट को 33 फीसदी बढ़ाने की मांग की थी. उन्होंने इसके लिए 63,670 करोड़ रुपये देने की मांग की थी. हालांकि सरकार इसे दरकिनार कर स्वास्थ्य बजट में 11 फीसदी की ही बढ़ोतरी कर सकती है.
नड्डा की तरफ से वित्त मंत्रालय को लिखे गए पत्र में यह मांग उठाई गई थी. नड्डा ने पत्र में तर्क दिया था कि उन्हें यह फंड वैक्शिनेशन कवरेज बढ़ाने के लिए चाहिए. इसके साथ ही मुफ्त दवाइयों के वितरण के लिए इस फंड की जरूरत है.
उन्होंने पत्र में कहा कि इस फंड का इस्तेमाल कैंसर और डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. कैंसर और डायबिटीज जैसे रोगों की वजह से 2016 में 60 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने तीन सरकारी सूत्रों के हवाल से कहा कि नड्डा की मांग को स्वीकार नहीं किया गया है. इसमें स्वास्थ्य बजट में सिर्फ 11 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.
पिछले साल मोदी सरकार ने देश का सालाना स्वास्थ्य बजट जीडीपी के 2.5 फीसदी 2025 तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था. मौजूदा समय में स्वास्थ्य बजट जीडीपी का 1.15 फीसदी है. एक अधिकारी ने कहा कि 2025 तक जीडीपी टारगेट रखने की जरूरत ही क्या है. जितनी कम फंडिंग बढ़ाई जा रही है, उससे तो 2025 तक यह लक्ष्य पूरा होना असंभव सा लगता है. वित्त मंत्रालय ने इस पर फिलहाल कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है.