प्याज के बाद मंडियों में अब लहसुन के भाव एक-दो रुपए किलो पहुंच गए हैं। मध्य प्रदेश के मंदसौर, रतलाम और नीमच क्षेत्र में लहसुन और प्याज का बंपर उत्पादन हुआ है। मंदसौर मंडी में रोजाना 15 से 20 हजार बोरी आवक हो रही है पर व्यापारी ज्यादा भाव देने के लिए तैयार नहीं है।
बताया जा रहा है कि दक्षिण भारत में लहसुन की खपत घट गई है। वहीं, कम भाव मिलने से परेशान किसानों ने दोनों फसलों को खुले में छोड़ना शुरू कर दिया है। उधर, सरकार के कामकाज संभालने पर इन फसलों पर प्रोत्साहन राशि देने पर विचार किया जाएगा। कांग्रेस ने अपने वचन-पत्र में प्याज और लहसुन पर बोनस देने का वादा किया है।
मालवा-निमाड़ में व्यापारी नहीं कर रहे खरीदी
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, प्याज, लहसुन व टमाटर ऐसी फसलें हैं, जो ज्यादा दिन किसान रोक नहीं सकता है। यही वजह है कि किसान फसल आने पर मंडी पहुंच जाता है। इसकी एक बड़ी वजह किसानों की फसल को रोककर रखने की क्षमता की कमी है। दरअसल, नकदी फसलों में लागत अधिक होती है और छोटी जोत के किसान फसल आने पर उसे बेचकर आगे की फसल बोने की तैयारी में जुट जाते हैं।
यही वजह है कि जब खरीफ सीजन की प्याज और लहसुन की फसल आई तो किसान उसे लेकर मंडी पहुंच गया। मंदसौर की मंडी में प्याज 50 पैसे किलो तक बिकी। इससे किसानों का परिवहन खर्च नहीं निकला और वे नाराज होकर खुले में प्याज छोड़कर चले गए। ऐसा ही हाल लहसुन उत्पादक किसानों का हो रहा है।
पिछले दिनों मंदसौर मंडी में एक से दो रुपए किलो तक लहसुन के भाव लगे। जबकि, किसानों की मानें तो एक बीघा में लागत ही 15 हजार रुपए आ जाती है। पूरे सीजन में 800 से 12 सौ रुपए क्विंटल से ज्यादा भाव नहीं मिले। औसत एक बीघा में 15 क्विंटल तक लहसुन होती है। मंदसौर, रतलाम और नीमच की लहसुन को अच्छी गुणवत्ता का माना जाता है। अब उज्जैन में भी बड़े पैमाने पर इसकी खेती होनी लगी है।
नासिक की प्याज आई बाजार में
नकदी फसलों का पूरा कारोबार मांग पर टिका हुआ है। व्यापारियों के पास मांग रहती है तो अच्छे दाम देकर फसल खरीद लेते हैं, लेकिन अभी प्याज और लहसुन की खपत नहीं हो रही है। नासिक की प्याज भी बाजार में आ गई है। वहां भी अच्छा उत्पादन हुआ है। इससे मांग नहीं है। वहीं, दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर लहसुन जाती है।
मंदसौर मंडी के व्यापारी संतोष का कहना है कि आगे मांग कम होने से यहां भी व्यापारी कम भाव लगा रहे हैं। भंडारण की उचित व्यवस्था न होने से किसानों के सामने फसल बेचने की मजबूरी है।