जिस दिन अक्षय तृतीया होती है उसी दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है. ऐसे में परशुराम अपने पिता जमदग्नि के परम भक्त थे और वह उन्हें परमात्मा मानकर उनका सम्मान किया करते थे. ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे कि जमदाग्नि बहुत बड़े योगी थे और उन्होंने योग से सिद्धियां प्राप्त की थीं.
काट दिया था माँ का मस्तक – जी हाँ, वहीं सवेरे का समय था, जमदाग्नि की पूजा का समय हो गया था. परशुराम की मां रेणुका जमदग्नि के स्नान के लिए जल लाने के लिए सरोवर पर गईं. संयोग की बात, उस समय एक यक्ष सरोवर में कुछ यक्षणियों के साथ जल-विहार कर रहा था. रेणुका सरोवर के तट पर खड़ी होकर यक्ष के जल-विहार को देखने लगीं. वे उसके जल विहार को देखने में इस प्रकार तन्मय हो गईं कि ये बात भूल गईं, कि उसके पति के नहाने का समय हो गया है और उन्हें शीघ्र जल लेकर जाना चाहिए. कुछ देर के पश्चात रेणुका को अपने कर्तव्य का बोध हुआ. वे घड़े में जल लेकर आश्रम में गईं.घड़े को रखकर जमदग्नि से क्षमा मांगने लगीं.
जमदग्नि ने अपनी योग दृष्टि से ये बात जान ली कि रेणुका को जल लेकर आने में देर क्यों हुईं. जमदाग्नि क्रोधित हो उठे. उन्होंने अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि रेणुका का सिर काटकर धरती पर फेंक दें. किंतु परशुराम को छोड़कर किसी ने भी उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया. परशुराम ने पिता की आज्ञानुसार अपनी मां का मस्तक तो काट ही दिया, अपने भाइयों का भी मस्तक काट दिया. जमदग्नि परशुराम के आज्ञापालन से उन पर बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने उनसे वर मांगने को कहा. परशुराम ने निवेदन किया, पितृश्रेष्ठ, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरी मां और मेरे भाइयों को जीवित कर दें. परशुराम की मां और उनके भाई पुन: जीवित हो गए.