निर्भया केस में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में दोषियों विनय शर्मा, मुकेश सिंह, पवन गुप्ता और अक्षय कुमार सिंह के खिलाफ डेथ वारंट जारी हो चुका है। चारों को 22 जनवरी को फांसी दी जाएगी। अभियोजन पक्ष ने दोषियों के फांसी की सजा के लिए डेथ वारंट जारी करने की मांग की थी। बता दें 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी नई दिल्ली में हुए गैंगरेप ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। अब निर्भया के दोषियों को फांसी मिलना तय है। आइए जानें भारत में कैसी दी जाती हैं फांसी और क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया…
इस दिन नहीं दी जा सकती फांसी
किसी भी सरकारी छुट्टी के दिन फांसी नहीं दी जा सकती
फांसी की तारीख तय होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट कैदी के परिजनों को ख़बर देते हैं
जेल सुपरिटेंडेंट फांसी का वक़्त तय करते हैं , जिसकी जानकारी, आईजी, सेशन जज और सरकार तक पहुंचाई जाती है
फांसी के लिए सुबह या भोर का वक़्त तय किया जाता है, जिसे मौसम के हिसाब से ऊपर निचे किया जा सकता है
मेडिकल ऑफिसर को कैदी की फांसी से चार दिन पहले ही ये बताना होता है की फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप कितना होगा
आमतौर पर फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 से 8 फीट होता है , ये गैप कैदी के वजन और हाइट के मुताबिक़ तय की जाती है
अगर कैदी का वजन 45 किलोग्राम से कम है तो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 8 फीट होगा
अगर कैदी का वजन 45 -60 किलोग्राम है तो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 7 फीट 8 इंच होगा
अगर कैदी का वजन 60 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 7 फीट होगा
अगर कैदी का वजन 75 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 फीट 6 इंच होगा
अगर कैदी का वजन 91 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 फीट होगा
जिस रस्सी से फांसी दिया जाना है वो कॉटन का बना होना चाहिए , जिसका व्यास 3.81 cm तय किया गया है
फांसी से एक दिन पहले डमी टेस्ट
फांसी के फंदे की लम्बाई फंदे पर लटकने के बाद कैदी के पैर और ज़मीन के बीच के गैप, कैदी के गर्दन की साइज़ के मुताबिक़ तय की जाती है
फांसी का फंदा तैयार होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट सूली की जांच करते हैं , फांसी से एक दिन पहले डमी टेस्ट होता है
डमी टेस्ट के लिए कैदी के वजन से डेढ़ गुना ज़्यादा वजन का बैग जिसमें बालू भरा होता है ,या डमी लटका कर रस्सी की मज़बूती चेक की जाती है
एक ही रस्सी का इस्तेमाल एक या एक से ज़्यादा क़ैदियों को फांसी के लिए किया जा सकता है , लेकिन किसी इमरजेंसी का सामना करने के लिए अलग से दो सेट रस्सी का इंतज़ाम भी होता है
फांसी की रस्सी की गांठ वाली जगह पर मोम या बटर लगा दी जाती है
रस्सी की मज़बूती का टेस्ट होने के बाद रस्सी और दूसरे सामानों को एक स्टील बॉक्स में रखकर सीलबंद कर दिया जाता है और स्टील बॉक्स को जेल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट के हवाले कर दिया जाता है
खुलेआम पब्लिक में नहीं दी जा सकती फांसी
फांसी जेल परिसर में बने किसी ख़ास जगह या जेल परिसर में ही कहीं भी दी जा सकती है ,जेल परिसर के बाहर फांसी नहीं दी जा सकती
फांसी के तय वक़्त से पहले जेल सुपरिटेंडेंट , डेप्युटी सुपरिटेंडेंट , अस्सिस्टेंट सुपरिटेंडेंट , मेडिकल ऑफिसर, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट अनिवार्य रूप से मौजूद होते हैं
कैदी अगर चाहे तो वो अपने मज़हब या विश्वास के मुताबिक़ किसी धर्मगुरु की मांग कर सकता है
फांसी के वक़्त कैदी के रिश्तेदार या दूसरे कैदी को फांसी देखने की इजाज़त नहीं दी जाती , लेकिन जेल सुपरिटेंडेंट अगर चाहे तो सोशल साइंटिस्ट , साइक्लोजिस्ट , साइकिएट्रिस्ट वगैरह जो रिसर्च करते हैं , उन्हें मौजूद रहने की इजाज़त दे सकते हैं
कैदी को सूली देखने की इजाज़त नहीं होती
फांसी के वक़्त 10 पुलिस कांस्टेबल और 2 हेड कांस्टेबल या 12 प्रिज़न आर्म्ड गार्ड का मौजूद होना ज़रूरी है
फांसी से पहले जेल के सभी सेल में सभी क़ैदियों को सेल के अंदर ही लॉक कर दिया जाता है
सभी तैयारी पूरी होने पर फांसी से एक घंटे पहले जेल सुपरिटेंडेंट , डेपुटी सुपरिटेंडेंट , एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफिसर उस कैदी के पास जाते हैं , जिसे फांसी दी जानी है
जेल सुपरिटेंडेंट , डेपुटी सुपरिटेंडेंट , एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट दस्तावेज़ के आधार पर ये पुष्टि करते हैं की क्या ये वही कैदी है जिसे फांसी दिया जाना है और कैदी को उसकी मातृभाषा में वारंट में लिखी बातें पढ़ कर सुनाई जाती है
कैदी की दस्तावेज़ी पुष्टि होने पर कुछ दस्तावेज़ों में कैदी के दस्तखत लिए जाते हैं , जिसके बाद कैदी के दोनों हाथ पीछे कर बांध दिए जाते हैं
कैदी को फांसी की सूली की तरफ लाया जाता है , लेकिन सूली तक पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कॉटन कैप से उसके चेहरे को ढंक दिया जाता है , क्योंकि फांसी पर लटकने वाले कैदी को सूली देखने की इजाज़त नहीं होती
कैदी को सूली पर चढ़ाया जाता है , कैदी के गले में फंदा डाला जाता है , सभी तैयारी पूरी होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट जल्लाद को लीवर खींचने का आदेश देते हैं
30 मिनट तक फांसी के फंदे पर लटकता रहता है कैदी
लीवर खींचने के बाद कैदी को अगले 30 मिनट तक फांसी के फंदे पर ही लटकता छोड़ दिया जाता है , इसके बाद मेडिकल ऑफिसर मौत की पुष्टि करते हैं , जिसके बाद कैदी के शव को फांसी के फंदे से उतारा जाता है
कैदी के शव को जेल में ही उसके मज़हब की रीति रिवाज के मुताबिक़ अंतिम संस्कार किया जाता है
अगर कैदी का कोई रिश्तेदार शव की मांग करता है तो जेल सुपरिटेंडेंट उसे इस शर्त के साथ शव सौंपते हैं की शव का पब्लिक डेमोंस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा
जेल सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट का दस्तखत किया वारंट उस कोर्ट को वापस भेजते हैं
जेल सुपरिटेंडेंट फांसी की रिपोर्ट आईजी को भेज देते हैं