नक्सली इलाकों में जान को जोखिम में डालकर किसी भी ऑपरेशन को CRPF के जवान अंजाम देते हैं, पर इन जवानों का काल नक्सल ऑपरेशन से ज्यादा हार्ट अटैक, डेंगू, मलेरिया और आत्महत्या बन रहा है. गृह मंत्रालय ने राज्य सभा में अपने लिखित जवाब में बड़ा ही चौंकाने वाला खुलासा किया है.
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रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 में नक्सली ऑपरेशन में सिर्फ 36 जवान शहीद हुए हैं. वहीं 2015-16 में हार्ट अटैक, मलेरिया, डेंगू, डिप्रेशन और आत्महत्या के चलते 903 जवानों की मौत हुई है. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2015 में हार्ट अटैक, मलेरिया, डेंगू और डिप्रेशन के चलते 407 CRPF के जवानों की मौत हुई तो 2016 में इन मौतों का आंकड़ा बढ़कर 476 हो गया है.
बीएसएफ के डीजी केके शर्मा ने वर्क शॉप के दौरान कहा ‘हाल के अध्ययनों से साबित हुआ है कि इन बलों के जितने सदस्य ऑपरेशन ड्यूटियों को निभाने के दौरान शहीद होते हैं, उनसे कहीं ज्यादा संख्या में बीमारियों के कारण मरते हैं. उन्होंने कहा कि सीमा सुरक्षा बल के चिकित्सा महानिदेशालय के आंकड़े बताते हैं कि बल में गलत जीवन शैली के कारण अनेक बीमारियां हो जाती हैं.’
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हाल में सभी अर्ध सैनिक बलों की एक रिपोर्ट की बात करें तो उससे भी खुलासा हुआ था कि देश के अर्धसैनिक बल के सैनिकों की मौत युद्ध के बजाय हार्ट अटैक और डायबिटीज जैसी बीमारियों की वजह से ज्यादा होती है. यानी बॉर्डर या देश की दूसरी सेंसिटिव जगहों पर तैनात हमारे जवानों को दुश्मनों की गोलियों से नहीं, बल्कि अपनी खराब सेहत से उन्हें खतरा है.
रिपोर्ट के मुताबिक देश के अंदर में 7 अर्द्ध सैनिक बल आते हैं. जो CRPF, BSF, ITBP, SSB, CISF, NSG और असम राइफल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 3 सालों में 1067 जवान आतंकियों के खिलाफ अलग-अलग ऑपरेशन्स में शहीद हुए हैं. वहीं खराब सेहत होने की वजह से मरने वाले सैनिकों की तादाद कहीं ज्यादा है. खराब सेहत से मौत का आकड़ा लगभग 3,611 है.
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