दिल्ली में खतरा बड़ा है, जिसका अनुमान लगाना भी मुश्किल प्रतीत हो रहा है: उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया

हर बीतते हुए दिन के साथ कोरोना और भी खतरनाक होता जा रहा है. संक्रमितों की संख्या हो या फिर मौतों का आंकड़ा, हर रोज बढ़ता ही जा रहा है.

स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं. इस बीच दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कुछ आंकड़े जारी किए हैं. ये आंकड़े इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दिल्ली में अगले कुछ दिनों में स्थितियां कितनी भयावह होने वाली हैं. पहले उन आंकड़ों को देखिए, जो मनीष सिसोदिया ने जारी किए हैं.

# 15 जून तक दिल्ली में 44,000 मामले हो जाएंगे. अस्पतालों में 6000 बेड की ज़रूरत पड़ेगी.

 

# 30 जून तक एक लाख केस हो जाएंगे और 15 हजार बेड की ज़रूरत होगी.

 

# 15 जुलाई तक 2.5 लाख केस हो जाएंगे और करीब 33,000 बेड की ज़रूरत होगी.

 

# 31 जुलाई तक दिल्ली में करीब 5.5 लाख कोरोना के केस होंगे और 80,000 बिस्तरों की ज़रूरत होगी.

ये आंकड़े हैं, जो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की ओर से जारी किए गए हैं. उन्होंने आशंका जताई है कि अगर कोरोना का प्रसार ऐसे ही होता रहा, तो ये आंकड़े सामने आ सकते हैं. और अगर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की इस आशंका को थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए तो कुछ और भी आंकड़े सामने आएंगे, जो और भी खतरनाक स्थति की ओर इशारा कर रहे होंगे.

फिलहाल दिल्ली में कोरोना के कुल संक्रमित मरीजों की संख्या है 29,943. ठीक होने वालों का आंकड़ा है 11,357 और मरने वालों का आंकड़ा है 874. यानि कि कुल संक्रमित मरीजों में से करीब 2.91 फीसदी मरीजों की मौत हुई है और करीब 37.92 फीसदी मरीज ठीक होकर अपने घरों को लौटे हैं.

अब जरा मनीष सिसोदिया की ओर से जाहिर आशंका पर आते हैं. उन्होंने कहा है कि 15 जून तक दिल्ली में 44,000 मामले हो जाएंगे. इसका मतलब ये है कि अभी की मृत्यु दर के हिसाब से इस बात की आशंका जताई जा रही है कि कोरोना की वजह से 15 जून तक 1200 से ज्यादा लोगों की मौत हो सकती है.

अगर 30 जून तक एक लाख केस पहुंचते हैं तो मौतों का आंकड़ा 2,900 तक पहुंच सकता है. 15 जुलाई तक ये आंकड़ा 7,000 तक पहुंच सकता है और 31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा 15,00 को पार कर सकता है.

आगे बढ़ने से पहले आपको फिर से बता दें कि ये सिर्फ आशंका है. और ये आशंका तब की है, जब भारत में करीब ढाई महीने तक लॉकडाउन रहा है. यानि कि दिल्ली में कोरोना से होने वाली जो 2.91 फीसदी की जो मृत्यु दर है, उसमें ज्यादा वक्त लॉकडाउन में गुजरा है.

और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की आशंका के आधार पर जो मौतों की आशंका जाहिर की जा रही है, उसका आधार लॉकडाउन के दौरान की मृत्यु दर ही है.

लेकिन अब लॉकडाउन लगभग खत्म हो गया है. धार्मिक स्थल से लेकर शॉपिंग मॉल्स, होटल और रेस्टोरेंट तक खुल गए हैं. लॉकडाउन में लोग घरों में कैद थे और इसके खत्म होने के बाद अब लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं.

इन बाहर निकलने वालों में बड़ी संख्या बच्चों और बुजुर्गों की भी है, जिन्हें कोरोना के संक्रमण का ज्यादा खतरा है. अब जब बड़ी संख्या में लोग बाहर निकलेंगे तो संक्रमण की रफ्तार भी ज्यादा होगी. और जब संक्रमण की रफ्तार बढ़ेगी, मरीजों की संख्या बढ़ेगी तो मृत्यु दर के भी बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर बुजुर्ग और पहले से बीमार लोग घरों में कैद थे. अब वो बाहर निकलेंगे तो जाहिर है कि आज नहीं तो कल संक्रमित होंगे ही होंगे. उन्हें इलाज चाहिए होगा.

एक आम कोरोना संक्रमण की तुलना में बुजुर्ग संक्रमित और पहले से किसी बीमारी से ग्रसित कोरोना संक्रमित को और बेहतर इलाज की ज़रूरत होगी.

वेंटिलेटर की ज़रूरत होगी. और इसकी वजह से गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या में इजाफा होगा. जब ऐसा होगा, तो मौतों के आंकड़े भी बढ़ेंगे.

और तब मृत्यु दर भी 3 फीसदी से बढ़ जाएगी. आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस स्थिति में दिल्ली में कितनी मौतें होंगी. आशंका इस बात की है कि हम दुनिया में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित शहर न्यू यॉर्क के करीब पहुंच जाएं. फिलहाल न्यू यॉर्क में करीब 4 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हैं और वहां पर 30 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है.

दिल्ली सरकार जो कह रही है उसके मुताबिक कुल मामलों में से करीब 15 फीसदी लोगों को हॉस्पिटल में एडमिट करने की जरूरत पड़ सकती है. अभी दिल्ली में कोरोना के 30 हज़ार मामले हैं और 4600 से ज्यादा लोग अस्पताल में भर्ती हैं.

दिल्ली सरकार का ‘दिल्ली कोरोना’ एप बता रहा है कि इस वक़्त दिल्ली में कोविड 19 के इलाज के लिए 8900 बेड और करीब 509 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं.

डिप्टी सीएम के मुताबिक जुलाई के अंत में सरकार के पास कम से कम 80 हजार बेड होने चाहिए. अभी हाल ये है कि दिल्ली में अनेक लोग ये शिकायत करते फिरते हैं कि उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है. अस्पताल एडमिट नहीं कर रहे हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब राजधानी में 5.5 लाख केस होंगे तो हालात किस कद्र बिगड़ सकते हैं.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब सरकार बीते तीन महीने में 8900 बेड का ही इंतजाम कर पाई है तो अगले 50 दिन में 70 हजार और बेड कैसे उपलब्ध करा पाएगी? सबसे अहम बात ये है कि इस वक्त दिल्ली में 4500 से अधिक कोरोना के मरीज एडमिट हैं जिसमें 320 लोग वेंटिलेटर पर हैं.

इस आंकड़े के आधार पर अगर 80 हजार लोग हॉस्पिटल में एडमिट होते हैं तो 4 हज़ार से 5 हज़ार के बीच वेंटिलेटर की जरूरत भी पड़ सकती है.

सरकार तीन महीने में 500 वेंटिलेटर ही जुगाड़ कर पाई है तो अगले 50 दिन में इतने वेंटिलेटर कहां से उपलब्ध करा पाएगी. इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि आने वाले दिनों में हालात बहुत अच्छे नहीं हैं.

इलाज तो अपनी जगह, एक बड़ा सवाल ये भी है कि दिल्ली में कैसे इतने बड़े पैमाने पर लोगों के टेस्ट हो सकेंगे. दिल्ली सरकार एक दिन में अभी करीब 8 हजार टेस्ट कर सकती है.

बीते तीन महीने में दिल्ली में दो लाख 55 हज़ार टेस्ट हुए हैं. अभी टेस्ट आधे कर दिए हैं. 8 जून को महज़ 3700 टेस्ट किए गए. इससे जाहिर है कि जब कोरोना के केस बढ़ेंगे तो टेस्ट के लिए कितने ज्यादा पापड़ बेलने पड़ेंगे.

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