दिल्ली का जीबी रोड इलाका अपने अंदर कड़वे जज़्बात और तजुर्बों को समेटे हुए है. ये इलाका इंसानियत और समाज दोनों के चेहरों पर किसी कलंक की तरह नजर आता है. लेकिन अब राजधानी के सबसे पुराने रेड लाइट एरिया की सहमी गलियों में कोरोना का कहर साफ दिखाई देता है.
लॉकडाउन ने दुनिया के इस सबसे पुराने धंधे को भी चौपट कर दिया. वहां कोठों के अंधेरे कमरों में ना जाने कितनी ही मज़लूम औरतें सिसक रही हैं.
हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. ना वहां मास्क काम करता है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का वहां कोई मतलब नजर आता है.
दरअसल, जीबी रोड के कोठों पर अपनी अस्मत का कारोबार करने वाली औरतें इन दिनों भारी परेशानी का सामना कर रही हैं.
जिस्मफरोशी के इस धंधा करने की वजह से वो औरतें बहुत सी गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाती हैं. अगर उन्हें सही वक्त पर इलाज ना मिले तो उनकी जान पर बन आती है.
मगर परेशानी ये है कि कोरोना महामारी की वजह से उनका काम भी ना के बराबर चल रहा है. ऐसे में सेक्स वर्कर्स के पास दवाई के पैसे भी नहीं हैं और कोठे में बने तहखानों में सोशल डिस्टेंसिंग भी मुमकिन नहीं है.
जीबी रोड बदनाम गली के तौर पर दिल्ली में करीब 1 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. जिसे स्वामी श्रद्धानंद मार्ग भी कहते हैं. सेक्स वर्कर्स के वेलफेयर का काम पतिता उद्धार समिति नामक एनजीओ कर रही है.
एनजीओ के संचालक इकबाल का कहना है कि लॉकडाउन और कोरोना महामारी में जीबी रोड आने वाले ग्राहकों की संख्या में भारी गिरावट आई है. इकबाल के मुताबिक जीबी रोड के इन कोठों पर अभी भी 750 महिलाएं मौजूद हैं.
जीबी रोड इलाका कमला मार्केट थाना के अंतर्गत आता है. वहां के थानाध्यक्ष वेद प्रकाश राय का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान दिल्ली पुलिस एनजीओ कठकथा की मदद से उन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ट्रेनिंग दे रही है.
एसएचओ राय के मुताबिक जीबी रोड की 20 इमारतों में 84 कोठे हैं. हर कोठे में कई सेक्स वर्कर्स रहती हैं. वहां इस वक्त मौजूद 750 सेक्स वर्कर्स में से कुछ ने लॉक डाउन और कोरोना महामारी के बीच उनका दर्द बयान किया है.
वो कहती हैं “लॉकडाउन भर हमने पुलिस का दिया हुआ राशन खाया है. दरवाजे बंद कर लेते हैं और फिर अपने परिवार के साथ रहते हैं.” एक अन्य सेक्स वर्कर बताती है “जबसे कोरोना आया है, तब से बहुत तकलीफ में हैं. राशन तो मिल जाता है लेकिन दवा और दूसरी जरूरी चीजें नहीं मिलती हैं. बाकी के परेशानियों के लिए सरकारी मदद की आस लगाए रहते हैं.”
एक महिला कहती है “अंधी बूढ़ी मां है बच्चे हैं किराए का मकान है. चार-पांच महीने हो गए नए कपड़े नहीं खरीदे हैं. अंदर तहखाने में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे हो सकती है.” एक और सेक्स वर्कर अपनी कहानी बताती है “खाने-पीने में बहुत तकलीफ हो रही है. मैं शुगर पेशेंट हूं. दवाई के लिए पैसे नहीं हैं. केवल राशन से ही हर काम नहीं हो जाता”