हिन्दू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में महाकाल ज्योतिर्लिंग भी एक है और महाकाल के भक्तों की बात करें तो वह बहुत अधिक है. ऐसे में महाकाल ज्योतिर्लिंग की पूजा में एक विशेष परंपरा है और हर दिन शाम के समय यहां मंगला आरती होती है जिसमें भस्म से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है. वहीं ऐसी मान्यता भी है कि यह चिता की भस्म होती है और भस्म आरती को लेकर समय-समय सवाल उठते रहे हैं. आप सभी को बता दें कि इस आरती में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सवाल उठाया है कि जब महिलाएं इन्हें देख नहीं सकती तो उन्हें आरती में शामिल ही क्यों होने दिया जाता है और इनकी जगह उतनी संख्या में पुरुषों को प्रवेश दिया जाना चाहिए.
जी हाँ, वहीं भगवान शिव का एक रूप औघड़ का है जिसमें वह दिगंबर हैं और इस रूप में भगवान शिव अपने पूरे अंग पर केवल भस्म लेपन किए हुए हैं. इसी के साथ मंगला आरती के दौरान शिव के इसी रूप की पूजा होती है इस कारण से आरती के दौरान महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति तो मिलती है लेकिन इन्हें घूंघट में रहना होता है. वहीं इससे जुडी एक कथा है जो हम आपको बताते हैं.
शिवपुराण की कथा – भगवान शिव ने देवी सती के दे’ह त्याग के बाद अपनी सुध-बुध खो दी थी. देवी सती के शव को लेकर भगवान शिव तांडव मचाने लगे. भगवान विष्णु ने शिव का मोहभंग करने के लिए चक्र से सती के श’व के टुकड़े कर दिए. सती के वियोग में शिव औघड़ और दिगम्बर रूप धारण कर श्म’शान में बैठ गए और पूरे शरीर पर चि’ता की भ’स्म लगा लिया.
कहते हैं कि तब से भ’स्म भी शिव का श्रृंगार बन गया. पहले महाकाल की आरती के लिए श्मशान से चिता की भस्म मंगाई जाती थी. लेकिन अब इस परंपरा में बदलाव आ चुका है. अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, बेर, पीपल, अमलतास, बड़ और शमी की लकड़ियों से भ’स्म तैयार कर इसका प्रयोग किया जाता है.
माना जाता है कि त्रेता युग, सत युग, द्वापर युग और कलियुग यानी चारों युगों के बाद इस सृष्टि का विनाश तय है, अंत में सब कुछ राख हो जाना है. शिवपुराण के अनुसार, यही राख यानी भस्म सृष्टि का सार है, सब कुछ अंत में राख ही हो जाना है. इसलिए भगवान शिव अपने पूरे शरीर पर भ’स्म लगाए रहते हैं.