केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश प्रशासन ने शुक्रवार को एक बडा़ फैसला लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ फारूक अब्दुल्ला के पीएसए को समाप्त कर दिया है। उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा किया गया है।
एेसा कहा जा रहा है कि सोमवार से डाॅ अब्दुल्ला संसद की कार्रवाई में भी भाग लेंगे। करीब पांच दिन पहले राकंपा अध्यक्ष शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी, माकपा प्रमुख सीता राम येचुरी समेत विपक्ष के सभी प्रमुख नेताओं ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृृहमंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं की रिहाई का आग्रह किया था।
केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश में जेके अपनी पार्टी नामक एक नए सियासी संगठन के गठन के बाद डाॅ फारूक अब्दुल्ला की रिहाई को एक बड़ी सियासी पहल माना जा रहा है।
हालांकि दिसंबर माह में उनके पीएसए में जो तीन माह का विस्तार दिया गया था, वह भी आज ही समाप्त हुआ है। फिलहाल, डाॅ फारुक अब्दुल्ला के पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अलावा पीडीपी अध्यक्षा व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत करीब नौ नेता पीएसए के तहत बंदी हैं। डाॅ अब्दुल्ला की रिहाई के बाद जल्द ही इन नेताओं को भी पीएसए से मुक्त किए जाने की संभावना प्रबल हो गई है।
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके डाॅ फारुक अब्दुल्ला को पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू किए जाने के मद्देनजर प्रशासन ने एहतियातन हिरासत में लिया था।
इसके बाद सितंबर 2019 में उन्हें जन सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत बंदी बनाया गया और उन्हें गुपकार स्थित उनके घर में ही कैद किया गया। उनके घर को सबजेल के तौर पर अधिसूचित किया गया था। बाद में उनके पीएसए की अवधि को बढ़ाया गया था।
आज जम्मू कश्मीर गृह विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर उनकी रिहाई पर मुहर लगायी है। इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम 1978 की धारा 19 की उपधारा एक के तहत जम्मू कश्मीर सरकार 15 सितंबर 2019 को जिला मैजिस्ट्रेट श्रीनगर द्वारा डा फारूक अब्दुल्ला को बंदी बनाए जाने के आदेश संख्या: डीएमएस पीएसए 120 2019 , जिसे 13 दिसंबर 2019 को गृह विभाग के एक आदेश जारी कर, तीन माह के लिए विस्तार दिया था, को वापस लिया जाता है।
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 10 मार्च मंगलवार को अपने 50वें जन्मदिन के मौके पर अधिकांश समय तक सबजेल हरि निवास में अकेले ही रहे।
इस दौरान उन्होंने अपने पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला का बधाई संदेश का एक फोन रसीव किया था। करीब 10 मिनट तक बातचीत की। शाम चार बजे उमर अब्दुल्ला की मां मौली अब्दुल्ला, बहन साफिया व उसका बेटा व तीन अन्य रिश्तेदार एक केक व कुछ अन्य उपहार लेकर हरि निवास पहुंचे। डॉ. फारूक अब्दुल्ला गुपकार स्थित अपने मकान में ही रहे। डॉ. अब्दुल्ला सितंबर 2019 से पीएसए के तहत बंदी बनाकर रखा गया है। उमर के दोनों बेटे जमीन और जहीर श्रीनगर नहीं पहुंचे। दोनों दिल्ली में अपनी मां पायल के पास ही हैं।
गैर कांग्रेसी विपक्षी दलों के आधा दर्जन दिग्गज नेताओं ने हिरासत में नजरबंद जम्मू-कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत सभी राजनीतिक बंदियों की तत्काल रिहाई की मांग उठाई थी।
विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा है कि मोदी सरकार लोकतांत्रिक विरोध को दंडात्मक प्रशासनिक कार्रवाई से कुचल रही है। इस क्रम में प्रजातांत्रिक मूल्यों व मौलिक अधिकारों के साथ नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बढ़ता जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौडा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के डी राजा और राजद के मनोज कुमार झा ने एक संयुक्त बयान जारी कर यह मांग की।
विपक्षी नेताओं की ओर से जारी इस बयान में भाजपा के दो पूर्व बड़े नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी का नाम भी शामिल हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इन सभी नेताओं की ओर से सोमवार को यह संयुक्त बयान जारी किया।
इसमें कहा गया है कि विविधता में एकता के हमारे विचारों के साथ संविधान हमेशा खड़ा रहा है। लेकिन विरोध की आवाज को न केवल कुचला जा रहा बल्कि आलोचना के स्वरों को बदले की कार्रवाई के जरिये सुनियोजित तरीके से दबाने की कोशिश की जा रही है।
जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य होने के सरकार के दावों पर गंभीर सवाल उठाते हुए इन विपक्षी नेताओं ने कहा है कि तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को बीते सात महीने से सतही आधार पर नजरबंद रखा गया है।
इन तीनों नेताओं का पूर्व का ऐसा कोई रिकार्ड नहीं कि इनके बाहर रहने से कोई खतरा हो और पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाने का आधार ही झूठा है। हकीकत यह भी है कि इन तीनों नेताओं की पार्टियों के साथ भाजपा का केंद्र और राज्य में एक समय गठजोड़ रहा है।
पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाने पर सवाल उठाते हुए विपक्षी नेताओं ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर से यह विशेष संविधान खत्म कर दिया गया तो फिर जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट की वैधानिकता भी खत्म हो गई है। ऐसे में तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की नजरबंदी उनके मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
विपक्षी नेताओं के अनुसार सूबे के नेताओं के मौलिक अधिकारों का हनन को पांच अगस्त 2019 से निरंतर जारी जम्मू-कश्मीर के लाक डाउन के संदर्भ में और भी गंभीर है। यह कश्मीर के लाखों भाई-बहनों के संवैधानिक अधिकारों पर भी हमला है।
कश्मीर के हालात सामान्य होने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के दावों पर सवाल उठाते हुए विपक्षी नेताओं ने कहा कि सरकार ने विदेशी राजनयिकों की दो टीमों के दौरे को विशेष रुप से प्रायोजित किया।
लेकिन अपने देश के राजनीतिक प्रतिनिधियों और मीडिया को राज्य में मुक्त आने-जाने की इजाजत नहीं दी, ताकि जमीनी हकीकत सामने आ सके। विपक्षी नेताओं ने कहा है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों और संविधान की मर्यादा की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध विपक्षी पार्टियां इस हालत में चुप नहीं बैठ सकतीं।