जब इंद्र की सभा में दोनों ने तोड़ी मर्यादा तो… दोनों को मिला ये श्राप

जया एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ माना गया है. इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है. खास तौर पर जिन लोगों की शादी में बाधा आ रही है या फिर प्यार को पाने में मुश्किलें आ रही हैं तो जया एकादशी का व्रत रखने से इस प्रकार की बधाएं दूर होती हैं. प्यार करने वालों को इस एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए. जया एकादशी का व्रत बहुत ही पावन व्रत माना गया है.

जया एकादशी की कथा

एक बार नंदन वन में उत्सव का आयोजन किया गया. इस उत्सव में समस्त देवता, संत और दिव्य पुरूष उपस्थित हुए. महोत्सव में नृत्य और गायन का भी आयोजन चल रहा था. जिसमें गंधर्व गीत गा रहे रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रहीं थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नाम की गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच वहां मौजूद पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयीं. पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर माल्यवान को आकर्षित करने के लिए नृत्य करने लगीं. माल्यवान गंधर्व कन्या का नृत्य देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और अनुशासन से भटक गया. जिसके चलते उसके सुर,लय और ताल बिगड़ गई.

इस बार से देवराज इंद्र क्रोधित हो. इंद्र ने दोनों को श्राप दे दिया और स्र्वग से निकाल कर पृथ्वी पर रहने का आदेश दिया. दोनों ने नीच योनि में जन्म लिया. जिसके चलते दोनों पिशाच बन गए. दोनों ने हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर रहने लगे. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों दुखी मन से बैठे थे उस दिन दोनों ने कुछ नहीं खाया था सिर्फ फलों का सेवन किया था. माघ का महीना था इसलिए सर्दी भी थी. दोनों रात भर साथ बैठकर ठंड में जागते रहे. ठंड के कारण दोनों की मौत हो गई. लेकिन अनजाने में दोनों से एकादशी का व्रत पूर्ण हो गया. जिसके चलते दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई. बाद दोनों को स्वर्ग में पुन: स्थान मिल गया.

भगवान विष्णु की पूजा की जाती है

मान्यता है कि एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही आरंभ कर देना चाहिए. इस व्रत के दौरान अनुशासन में  रहना चाहिए. बुराई नहीं करनी चाहिए, बुरी सोच नहीं रखनी चाहिए. किसी का अहित नहीं सोचना चाहिए. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए. इससे पूर्ण लाभ मिलता है. पूजा करने के बाद दान आदि का कार्य भी करना चाहि

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