श्रीगणेश को धर्मशास्त्रों में प्रथम पूजनीय कहा गया है। मान्यता है कि भगवान गजानन की आराधना से समस्त संकटों का नाश होता है और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान श्रीगणेश को विघ्नविनाशक और कष्टों के हरण करने वाला देवता माना जाता है। गणपतिजी की आराधना रोजाना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, लेकिन Chaturthi तिथि पर श्रीगणेश की पूजा विशेष फलदायी होती।
एक महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में Chaturthi तिथि आती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली Chaturthi तिथि को Sankashti Chaturthi और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भालचंद संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस साल 12 मार्च गुरुवार को भालचंद संकष्टी चतुर्थी है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठ जाएं। स्नान आदि से निवृत्त होकर संकष्टी चतुर्थी के व्रत का संकल्प लें। दिनभर निराहार रहें या फिर फलाहार कर व्रत का पालन करें।
संध्या के समय स्नान कर श्रीगणेश की पूजा का प्रारंभ करें। श्रीगणेश की यदि प्रतिमा है तो पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान करवाने के बाद एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर स्थापित करें।
गणपति देव को सिंदूर, रोली, अक्षत, अबीर, गुलाल, मेंहदी, हल्दी, वस्त्र, जनेऊ लाल फूल समर्पित करें। मोदक, लड्डू, पंचमेवा, ऋतुफल, पंचामृत और पान का भोग लगाएं। दीपक और धूपबत्ती लगाएं। चतुर्थी तिथि की कथा का श्रवण करने के बाद आरती उतारें।