लंबे समय से चल रही खींचतान के बीच नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के सहयोगी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने नरेंद्र मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कुशवाहा की आरएलएसपी के बीच लंबे समय से सीट बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही थी. इसी वजह से आख़िरकार कुशवाहा ने इस गठबंधन से अपना नाता तोड़ने का फैसला किया है.
कुशवाहा का मंत्री पद से इस्तीफा और एनडीए को अलविदा कहना, मोदी सरकार के लिए इसलिए भी झटका है क्योंकि अभी छह दिसंबर को ही राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा चुनाव की वोटिंग से महज़ एक दिन पहले उत्तर प्रदेश के बहराइच से बीजेपी सांसद और दलित नेता सावित्री बाई फुले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. सावित्री बाई फुले बीते काफी दिनों से पार्टी से नाराज़ चल रही थीं और पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी कर रहीं थीं, लेकिन उन्होंने अचानक पार्टी छोड़ने का एलान कर सबको सकते में डाल दिया था.
बीजेपी छोड़ने के साथ ही उन्होंने पार्टी पर बड़ा आरोप लगाया. सावित्री बाई फुले ने कहा, ”बीजेपी समाज में विभाजन पैदा करने का काम कर रही है.” कुशवाहा और फुले अपवाद नहीं हैं, जिन्होंने बीजेपी को 2019 के आम चुनाव से पहले अलविदा कहा है.
आइए, आपको उन बीजेपी सांसदों और पार्टियों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने 2014 के बाद से अब तक बीजेपी का दामन छोड़ दिया है.
शौरी और सिन्हा
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में दिग्गज नेताओं में शामिल रहे यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भी पार्टी छोड़ दी और मोदी के विरोध में मोर्चा खोल दिया. राफेल पर एक तरफ जहां विपक्ष सरकार को घेर रहा है, वहीं दूसरी तरफ इन दोनों नेताओं ने इस मामले में आग में घी डालने का काम किया.
मानवेंद्र सिंह
वाजपेयी सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह ने भी राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का दामन थाम लिया. मानवेन्द्र सिंह की शख्सियत का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस चुनाव में वो राज्य की सीएम वसुंधरा राजे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं.
हरीश मीणा
राजस्थान में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के तेज़ होते ही भारतीय जनता पार्टी से सांसद हरीश मीणा कांग्रेस में शामिल हो गए थे. हरीश मीणा राजस्थान की दौसा सीट से सांसद हैं. उन्होंने 2014 के आम चुनाव में अपने बड़े भाई और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नमोनारायण मीणा को पराजित किया था. अशोक गहलोत सरकार में राज्य के पुलिस प्रमुख रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी हरीश मीणा मार्च 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे.
नाना पटोले
विभिन्न मुद्दों पर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करते रहे नाना पटोले ने दिसंबर 2017 में पार्टी और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था. वह 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले बीजेपी में शामिल हुए थे. इस चुनाव में उन्होंने भंडारा गोंडिया निर्वाचन क्षेत्र से एनसीपी के कद्दावर नेता प्रफुल्ल पटेल को पराजित किया था. किसानों की बदहाली सहित कई मुद्दों पर उन्होंने बीजेपी की निंदा की थी.
थुपस्तान छवांग
लोकसभा में लद्दाख क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले थुपस्तान छवांग ने पिछले महीने सदन और बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. छवांग दो बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं. इस्तीफा देने के काफी समय पहले से ही छवांग पार्टी से अलग-थलग चल रहे थे.
चंद्र बाबू नायडू की टीडीपी
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चंद्र बाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) भी इसी फेहरिस्ता का हिस्सा है. टीडीपी तो सिर्फ़ एनडीए का साथ छोड़ने तक ही नहीं रुकी, बल्कि इस पार्टी ने मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में आए इकलौते अविश्वास प्रस्ताव का नेतृत्व किया था. हालांकि, सरकरा को बहुमत साबित करने में रत्ती भर की भी मशक्कत नहीं करनी पड़ी.
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन
किसानों से जुड़े दल स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने एनडीए से अगस्त के अंत में नाता तोड़ने का एलान किया था. महाराष्ट्र के किसानों के बीच शेतकरी संगठन की पकड़ मजबूत मानी जाती है. संगठन के नेता और सांसद राजू शेट्टी ने एनडीए से अलग होने का एलान करते हुए कहा था कि महाराष्ट्र में किसानों की बदहाली की वजह से उन्होंने ये फैसला किया था.
जम्मू-कश्मीर सरकार
हालांकि, इस राज्य में बीजेपी ने सहयोगी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) पर राज्य की व्यवस्था बिगाड़ने और काम नहीं करने देने जैसे आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ने का फैसला किया था, लेकिन ये एक बड़ी बात इसलिए है क्योंकि आज़ाद भारत के इतिहास में बीजेपी पहली बार यहां सरकार बना पाई थी. गठबंधन सहयोगी के साथ रिश्ते बनाए रखने की मुश्किल ने ये राज्य बीजेपी के हाथ से निकाल दिया.
हमलावर शिवसेना
इस गठबंधन की एक और बड़ी पार्टी महाराष्ट्र की शिवसेना ने सहयोगी बीजेपी पर हमला करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है. तेल की कीमतों से राम मंदिर तक और यहां तक की विपक्षी पार्टियों के कई मुद्दों पर शिवसेना सुर में सुर मिलाती नज़र आई है. पार्टी ने पीएम मोदी के दिल के बेहद करीब रहे नोटबंदी जैसे आर्थिक फैसलों की भी जमकर आलोचना की है और कई बार तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी साथ देती नज़र आई है.
लौटे नीतीश
गंठबंधन में इस तरह की टूट के बीच बिहार जैसे 40 लोकसभा सीटों वाले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए में लौट आए. उन्होंने 2014 के आम चुनाव से पहले मोदी को पीएम पद उम्मीदवार बनाए जाने की आशंका में एनडीए को त्याग दिया था. 2013 में एनडीए को त्यागने वाले जनता दल प्रमुख (जेडीयू) नीतीश ने लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था. इसमें जीत हासिल करने के बाद उन्होंने इस गठबंधन के तहत सरकार चलाई लेकिन ठीक ठाक चल रही सरकार को छोड़कर 2017 में वो एनडीए में वापस आ गए.