कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध में सड़कों पर उमड़कर शक्ति प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के जरिए प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी दमखम दिखाने में सफल रहे। सोनिया के हाथ में दोबारा पार्टी अध्यक्ष की कमान आने के बाद प्रदेश में भी यह पहला मौका रहा, जब पार्टी के इस फ्लैग मार्च में खेमेबंदी नहीं झलकी। सभी गुटों ने फ्लैग मार्च में भागीदारी तो की ही, पहली दफा प्रदेश संगठन के साथ अपने सुर भी मिलाए।
शनिवार को राजधानी दून की सड़कों पर उमड़ा कांग्रेसियों का सैलाब भीतर और बाहर दोनों ही मोर्चो पर कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने वाला रहा। पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों बुरी तरह हार का सामना करने वाली कांग्रेस के सामने प्रदेश की सियासत में दमदार वापसी का दबाव है। इस चुनौती से पार पाने के लिए पार्टी की ओर से समय-समय पर हाथ-पांव भी मारे गए, लेकिन कभी दिग्गजों के बीच खींचतान तो कभी मनमुटाव पार्टी कार्यक्रमों पर भारी पड़ता रहा। प्रदेश में मोटे तौर पर पार्टी के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की जोड़ी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के धड़े ज्यादा सक्रिय हैं। इस धड़ेबंदी के बीच जोर आजमाइश का नतीजा ये रहा कि प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ढाई साल गुजरने के बाद भी प्रदेश कार्यकारिणी गठित नहीं कर पाए।
कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में आने के बाद पार्टी बदली रणनीति के साथ केंद्र और राज्य की सत्ता पर आरूढ़ भाजपा के खिलाफ आक्रामक है। इस बदलाव का असर प्रदेश में कांग्रेस की अंदरूनी सियासत पर भी दिख रहा है। पखवाड़ेभर पहले प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने पुरानी 350 से ज्यादा सदस्यों वाली जंबो कार्यकारिणी को भंग कर दिया। इस कदम के बाद प्रदेश अध्यक्ष के सामने भी पार्टी के भीतर नए सिरे से दम-खम दिखाने की चुनौती थी।
शनिवार को प्रदेश में फ्लैग मार्च में पार्टी की ताकत दिखाने के साथ ही सबको साथ लेकर मिशन-2022 की ओर बढ़ने का संकल्प भी साफ दिखा। पार्टी के अधिकतर विधायकों की इसमें हिस्सेदारी रही। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत असम में व्यस्तता के चलते इस कार्यक्रम से गैर मौजूद रहे। उनके कई बड़े सिपहसालार फ्लैग मार्च में मौजूद रहे। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय पार्टी के इस प्रदर्शन से अभिभूत दिखे। इससे पहले बीते लोकसभा चुनाव में भी कई स्तरों पर पार्टी के भीतर तालमेल की कमी नुमायां हुई थी। अल्पसंख्यकों की गोलबंदी के साथ सियासी एकजुटता के इस प्रदर्शन के बूते पार्टी ने सत्तारूढ़ दल भाजपा को भी नए मनोबल के साथ संदेश दिया है।