 नई दिल्ली : जम्मू और कश्मीर में पेलेट गन के इस्तेमाल से उठा विवाद जल्द ही सुलझ सकता है। लेकिन गृह मंत्रालय ने उपद्रवियों पर काबू पाने के लिए एक नए ‘तीखे’ विकल्प की तलाश कर ली है।
नई दिल्ली : जम्मू और कश्मीर में पेलेट गन के इस्तेमाल से उठा विवाद जल्द ही सुलझ सकता है। लेकिन गृह मंत्रालय ने उपद्रवियों पर काबू पाने के लिए एक नए ‘तीखे’ विकल्प की तलाश कर ली है।
मंत्रालय नए डिवेलप किए गए पावा (PAVA) शेल्स को पेलेट गन की जगह इस्तेमाल करने की योजना बना चुका है। पावा शेल, मिर्ची के गोले हैं जो टारगेट को पेलेट गन की तरह ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इन गोलों को किसी टारगेट पर दागे जाने से वह कुछ मिनटों के लिए थम जाएगा और कुछ कर नहीं पाता।
कश्मीर में पेलेट गन से गईं उपद्रवियों की आंखें
सेना कश्मीर में पेलेट गन का इस्तेमाल पत्थरबाज प्रदर्शनकारियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कर रही है। पेलेट छोटे-छोटे छर्रे होते हैं, जो टारगेट के शरीर में जाकर चुभ जाते हैं। बेकाबू भीड़ को पेलेट गन से कंट्रोल तो कर लेते हैं लेकिन कई मामलों में घायलों ने अपनी आंखों की रोशनी तक खो दिया।
कश्मीर में पेलेट गन का पहली बार इस्तेमाल घाटी में 2010 की हिंसा के दौरान हुआ था। 2010 में हुई हिंसा में 100 लोगों की मौत हो गई थी। पेलेट से घायल हुए लोगों के घाव भरने में लंबा समय लगता है और निशान रह जाते हैं। कई बार घावों की सर्जरी तक करनी पड़ती है।
जम्मू-कश्मीर दौरे पर गए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जल्द ही पेलेट गन का विकल्प देने की बात कही है और एक्सपर्ट कमिटी मिर्ची के इन गोलों (PAVA) को विकल्प के तौर पर देख रही है। हालांकि अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों, BSF, CRPF, J&K पुलिस, IIT-दिल्ली और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के 7 सदस्यों वाली कमिटी भीड़ को कंट्रोल करने के लिए कोई विकल्प तलाश रही है।
इन शेल्स को सायंटिफ़िक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के तहत लखनऊ स्थित के प्रयोगशाला में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकॉलजी रिसर्च (IITR) ने डिवेलप किया था।
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