हर पिता अपनी बेटी की शादी में कन्यादान करता है लेकिन उसी के साथ एक दान और होता है जिसे सिन्दूर दान कहा जाता है.भगवान श्रीराम ने राजा जनक द्वारा आयोजित किए गए स्वयंवर में शिव के धनुष को तोड़कर सीता को प्राप्त किया और सीता जी ने श्रीराम जी के गले में वरमाला डालकर उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया था.
उसके बाद राजा जनक ने अयोध्या के राजा दशरथ को संदेश भेजा और तब वह अयोध्या से बारात लेकर जनकपुरी गए। वहीं उसके बाद दोनों पक्षों की उपस्थिति में वैदिक रीति से ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण के मध्य विधिपूर्वक श्रीराम ने सीता की मांग में सिंदूर भरा जिसे ‘सिंदूर दान’ कहते हैं. कहते हैं सिंदूर दान के पश्चात ही विवाह की पूर्णता होती है.
महिलाओं में माथे पर कुमकुम (बिंदी) लगाने के अतिरिक्त मांग में सिंदूर भरने की प्रथा बहुत समय से चली आ रही है और यह उनके सुहागिन होने का प्रतीक तो है ही लेकिन इसी के साथ ही इसे मंगलसूचक भी माना जाता है। कहते हैं ज्योतिष शास्त्र में लाल रंग को काफी महत्व दिया गया है वह इस वजह से क्योंकि यह मंगल ग्रह का प्रतीक है। वहीं सिंदूर का रंग भी लाल ही होता है।
अत: इसे मंगलकारी माना जाता है। शास्त्रों में इसे लक्ष्मी का प्रतीक भी कहा गया है। इसी के साथ स्त्रियों द्वारा मांग में सिंदूर भरने का प्रारंभ विवाह संस्कार के पश्चात् ही होता है और विवाह के समय प्रत्येक वर अपनी वधू की मांग में सिंदूर भरता है। वहीं विवाह के मध्य सम्पन्न होने वाला यह एक प्रमुख संस्कार है।