कत्ल का मुकदमा फिर भी रिव्यू कमेटी ने सचिन वाज़े समेत 17 सस्पेंडेड पुलिसवालों का सस्पेंशन खत्म कर के उन्हें वापस बहाल किया था

एक शख्स जिस पर कत्ल का इल्जाम है. जिसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी हो. जिस पर अदालत में कत्ल का मुकदमा अभी जारी है. मुकदमें का फैसला होना अभी बाकी है. ऐसे कत्ल के आरोपी शख्स को पुलिस की वर्दी दोबारा कैसे पहनाई जा सकती है? सचिन वाज़े को लेकर यही सवाल उठ रहा है. क्योंकि उसके खिलाफ हत्या का मामला अभी भी अदालत में है. तो क्या उसने 2 करोड़ रुपये देकर नौकरी वापस हासिल की? या फिर उसकी बहाली के पीछे बड़े-बड़े नेता और आला अफसर शामिल थे?

16 साल की बर्खास्तगी के बाद सचिन वाज़े को नौकरी वापस किसने दी? किसके कहने पर दी? क्या शिवसेना की सिफ़ारिश पर नौकरी वापस की गई? अगर हां, तो शिवसेना का वो नेता कौन है? या तब के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का ये फैसला था? क्या नौकरी के लिए सचिन वाज़े ने 2 करोड़ रुपये दिए? तो क्या ये पैसे अनिल देशमुख ने लिए? कत्ल के एक आरोपी को वापस पुलिस में नौकरी कैसे दी जा सकती है? वो आरोपी जिसका केस अब भी अदालत में चल रहा हो. जो 16 साल तक पुलिस फोर्स से बर्खास्त रहा हो. उसे अदालत का फैसला आने से पहले ही कानूनन वापस पुलिस में नौकरी दी जा सकती है क्या?

वो भी उसी क्राइम ब्रांच के सीआईयू जिसमें रहते हुए उस पर ना सिर्फ कत्ल का इल्ज़ाम लगा, बल्कि चार्जशीट में भी जिसका नाम सबसे ऊपर है. आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी, जो अदालत का फैसला आने से पहले ही सचिन वाज़े को वापस पुलिस में लाने के लिए बड़े-बड़े नेताओं और आला पुलिस अफसरों ने सारे कानून और सारी नैतिकता को ताक पर रख दिया. वापस नौकरी पाने के लिए 2 करोड़ की रिश्वत मांगने के सचिन वाज़े के इल्ज़ाम के बाद ये ज़रूरी हो गया है कि सचिन वाज़े की दोबारा पुलिस में वापसी की पूरी कहानी समझी जाए.

कहानी की शुरुआत होती है 7 जनवरी 2003 से. दरअसल, साल 2002 में घाटकोपर रेलवे स्टेशन के बाहर वेस्ट की एक बस में धमाका हुआ था. इसमें दो लोग मारे गए थे जबकि 50 घायल हो गए थे. इस धमाके की जांच तब क्राइम ब्रांच की सीआईयू कर रही थी. सचिन वाज़े तब उस टीम का हिस्सा था. 25 दिसंबर 2002 को सचिन वाज़े ने इसी घाटकोपर धमाके के सिलसिले में 4 लोगों को गिरफ्तार किया था. इनमें से एक 27 साल का सॉफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस भी था. गिरफ्तारी के करीब 2 हफ्ते बाद 7 जनवरी 2003 को सचिन वाज़े घाटकोपर पुलिस थाने में एक रिपोर्ट लिखाता है.

रिपोर्ट ये कि घाटकोपर धमाके की जांच के सिलसिले में 6 जनवरी को वो ख्वाजा यूनुस और बाकी आरोपियों को एक जीप में औरंगाबाद ले जा रहे थे. पर रास्ते में जीप का एक्सीडेंट हो गया. इसका फायदा उठाकर ख्वाजा यूनुस पुलिस हिरासत से भाग गया. ख्वाजा यूनुस की गुमशुदगी से उसके घरवाले परेशान हो उठे. इसी के बाद उन्होंने बॉम्बें हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने ख्वाजा यूनुस की गुमशुदगी की जांच मुंबई सीआईडी को सौंप दी. इसी जांच के दौरान ख्वाजा यूनुस के साथ गिरफ्तार एक और शख्स जो पेशे से डॉक्टर था. उसने अपने बयान में अहम खुलासा किया.

डॉ. मतीन ने बयान दिया कि 6 जनवरी की रात को उसने ख्वाजा यूनुस को घाटकोपर पुलिस थाने में आखिरी बार देखा था. तब वो चीख रहा था. सचिन वाज़े और उनकी टीम के लोग उसे बुरी तरह से पीट रहे थे. पिटाई की वजह से ख्वाजा यूनुस ने खून की उल्टियां करनी शुरु कर दीं. डॉ मतीन के बयान के मुताबिक उसकी हालत को देखते हुए ये तय था कि सुबह होने से पहले वो मर जाएगा और यही हुआ. पुलिस हिरासत में पुलिसवालों ने ही उसका कत्ल कर दिया. चश्मदीद डॉ. मतीन के बयान और जांच के बाद सीआईडी ने जो रिपोर्ट दी, उसमें ये माना कि ख्वाजा यूनुस का क़त्ल किया गया है और इस कत्ल के लिए सचिन वाज़े और उसकी टीम के तीन पुलिसवालों को कुसूरवार ठहराया गया.

इसके बाद सीआईडी ने 2004 में सचिन वाज़े और उन 3 पुलिसवालों को गिरफ्तार कर लिया. इनकी गिरफ्तारी होते ही मुंबई पुलिस ने वाज़े समेत चारों पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया. इसके बाद निचली अदालत में सीआईडी ने बाकायदा ख्वाजा यूनुस  के कत्ल के इल्ज़ाम में वाज़े समेत सीआईयू से जुड़े चारों पुलिसवालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 समेत कई संगीन धाराओं में चार्जशीट दाखिल की थी.

इस दौरान वक्त बीतता गया. सचिन वाज़े और तीनों पुलिसवाले ज़मानत पर बाहर आ गए. हालांकि ख्वाजा यूनुस की लाश कभी नहीं मिली. आज भी नहीं मिली है. उधर, निचली अदालत में केस की सुनवाई भी हैरतअंगेज़ तौर पर बेहद सुस्त रफ्तार से चलती थी. बीच में कई बरसों तक तो इस मामले की कोई सुनवाई ही नहीं हुई. ख्वाजा युनूस की मां इस दौरान लगातार अदालत के चक्कर काटती रही. उनकी कोशिशों से 2017 में फिर से सुनवाई शुरु हुई.

लेकिन इसके बाद फिर सुनवाई धीमी पड़ गई. 2019 में एक आद सुनवाई ज़रूर हुई फिर 2020 में कोरोना की आड़ में एक बार फिर सुनवाई ठप पड़ गई. उधर, कोरोना की आड़ में सुनवाई ठप हुई. इधर इसी कोरोना को ढाल बनाकर 16 साल से बर्खास्त सचिन वाज़े को फिर से वापस पुलिस में बहाल कर दिया गया. 2020 में पूरा देश कोरोना की चपेट में था. लेकिन जो कुछ राज्य और शहर सबसे ज़्यादा प्रभावित थे, उनमें महाराष्ट्र और मुंबई भी शामिल था. आम लोगों के साथ साथ बहुत से पुलिस वाले भी कोरोना की ज़द में आ चुके थे. कई पुलिसावालों की तो मौत भी हो गई थी.

तब कोरोना कहर के बीच 6 जून 2020 को मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी की मीटिंग हुई थी. वो रिव्यू मीटिंग थी. उन पुलिसवालों के लिए जो सस्पेंड थे. जिन्हें बहाल किया जाना था. इस मीटिंग में पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के अलावा आर्म फोर्सेस के एडिशनल कमिश्नर, ज्वाइंट कमिश्नर एडमिन, डीसीपी मंत्रालय सिक्योरिटी शामिल थे. इस मीटिंग में कुल 18 सस्पेंडेड पुलिसवालों को फोर्स में वापस बहाल करने की मंजूरी दी गई. तर्क ये दिया गया कि कोरोना की वजह से फोर्स में कमी आ गई है.

जिन 18 सस्पेंडेड पुलिसवालों को बहाल किया गया. उनमें से एक था सचिन वाज़े. सचिन वाज़े को बहाली के बाद 6 जून को ही आर्म्ड पुलिस फोर्स विंग में तैनाती दे दी गई. कायदे से आर्म्ड पुलिस फोर्स विंग नॉन एग्ज़ीक्यूटिव ब्रांच है. लेकिन इसके ठीक 3 दिन बाद हैरतअंगेज़ तौर पर सचिन वाज़े को आर्म्ड पुलिस फोर्स विंग से हटा कर आनन फानन में उसी क्राइम इंटेलीजेंस यूनिट यानी सीआईयू में भेज दिया गया. जहां बर्खास्तगी से 16 साल पहले वो आखिरी बार पोस्टेड था. और जहां रहते हुए ही उस पर ख्वाजा युनूस के कत्ल का इल्ज़ाम लगा था.

हैरानी की बात ये भी थी कि सचिन वाज़े को ना सिर्फ सीआईयू में भेजा गया. बल्कि उसे सीआईयू का इंचार्ज भी बना दिया गया. हालांकि सीआईयू का इंचार्ज अमूमन पुलिस इंस्पेक्टर रैंक का कोई अफसर ही होता है, जबकि सचिन वाज़े असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर था. सचिन वाज़े को सीआईयू का इंचार्ज बनाने का फरमान किसी और ने नहीं बल्कि खुद तब के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने ही जारी किया था. सीआईयू में आते ही परमबीर सिंह ने सारे हाई प्रोफाइल केस की जांच सचिन वाज़े को ही दे दी थी.

उधर, दूसरी तरफ सचिन वाज़े की बहाली की खबर जब ख्वाजा यूनुस की मां आसिया बेगम को लगी तो उन्होंने अदालत में सचिन वाज़े की बहाली को चुनौती दी. आसिया बेगम ने अपनी याचिका में कहा कि सचिन वाज़े की बहाली बॉम्बे हाईकोर्ट के 2004 के उस फैसले की अवमानना है. जिसमें अदालत ने वाज़े समेत चारों पुलिसवालों के खिलाफ अनुशासनात्मस जांच का आदेश दिया था. आसिया बेगम की इस याचिका पर अदालत में जुलाई 2020 में मुंबई पुलिस ने अपना जवाब दाखिल किया.

मुंबई पुलिस ने सफाई देते हुए कहा कि चूंकि वाज़े समेत चारों पुलिसवालों पर पहले ही क्रिमिनल केस चल रहे हैं. चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. लिहाज़ा डिसिप्लिनरी इंक्वायरी का कोई औचित्य नहीं बनता था. इसीलिए ये इंक्वायरी की ही नहीं गई. मुंबई पुलिस ने अपने जवाब में ये भी कहा कि 2011 का महाराष्ट्र सरकार का एक सर्कुलर है, जिसमें कहा गया है कि चार्जशीट दाखिल होने के 2 साल बाद भी अगर कोई केस अदालत में लंबित है तो उस पुलिस अफसर का सस्पेंशन रिव्यू कमेटी की सिफारिश पर खत्म किया जा सकता है. इसी सर्कुलर को ध्यान में रखते हुए रिव्यू कमेटी ने वाज़े समेत 17 सस्पेंडेड पुलिसवालों का सस्पेंशन खत्म कर के उन्हें वापस बहाल किया गया.

इसी साल जनवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ख्वाजा यूनुस की मां आसिया बेगम से पूछा था कि सचिन वाज़े की दोबारा बहाली से निजी तौर पर वो कैसे प्रभावित होंगी. इस पर आगे सुनवाई 31 मार्च को होनी थी. लेकिन उससे पहले ही एंटीलिया केस में 13 मार्च को सचिन वाज़े गिरफ्तार हो गया. लिहाज़ा एक बार फिर आसिया बेगम की याचिका पर सुनवाई टल गई.

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