टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सपना अंग्रेजों के जमाने से पहाड़ के लोग देखते आ रहे हैं और जनप्रतिनिधि इस सपने को भूलने भी नहीं देते हैं। मनमोहन सिंह की सरकार में टनकपुर रेल लाइन की सर्वे की बात कही गई। टनकपुर से महाकाली नदी के किनारे-किनारे जौलजीबी के लिए रेल लाइन का सपना दिखाया गया।
मोदी शासनकाल में भी पहाड़ पर रेल दौड़ाने के सपने पूरे पांच साल तक सुनाई देते रहे। हालांकि चुनाव की घोषणा के 10 दिन पहले राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के हवाले से खबर आई कि 155 किलोमीटर लंबे बागेश्वर-कर्णप्रयाग रेल लाइन के सर्वे को मंजूरी मिल गई है। इन सबके बीच एक बात तय है कि रेल लाइन इस बार भी चुनावी मुद्दा होगा और रेलगाड़ी के लिए अगली सरकार का ही मुंह देखना पड़ेगा।
अंग्रेजों ने कराया था सर्वे
आजादी से पहले अंग्रेजों ने टनकपुर-बागेश्वर लाइन के लिए सर्वे कराया था। यह अलग बात है कि अंग्रेज शिमला की तरह इस पहाड़ी इलाके में रेल नहीं पहुंचा पाए। आजाद भारत के शासकों से उम्मीद थी कि विकास के लिए अहम साबित होने वाले इस मुद्दे पर बात आगे बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन के निर्माण के लिए 90 के दशक में स्वर्गीय गुसाईं सिंह दफौटी के नेतृत्व में बागेश्वर से आंदोलन की चिंगारी भड़की।
दशकों तक आंदोलनों का दौर चला, टनकपुर, चंपावत, पिथौरागढ़ की जनता का भी आंदोलन को भरपूर साथ मिला। आज भी इस मुद्दे पर लोग मुखर हैं। मनमोहन सरकार में राज्यसभा की याचिका समिति के सभापति भगत सिंह कोश्यारी ने टनकपुर बागेश्वर के साथ टनकपुर-जौलजीबी रेल लाइन का सामरिक महत्व का बताते हुए निर्माण की संस्तुति की थी। वर्ष 2009 में सांसद बने कांग्रेस के प्रदीप टम्टा सदन में रेल लाइन निर्माण का मुद्दा उठाते रहे। हाल ही राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी ने इस मुद्दे को हवा दी है।
टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन निर्माण की दिशा में गंभीर प्रयास किए गए हैं। रामनगर-चौखुटिया-गैरसैंण तक रेल लाइन का सर्वेक्षण का कार्य पूरा हो गया है। चौखुटिया से बागेश्वर रेल का प्रस्ताव रेल मंत्रालय में विचाराधीन है। इन प्रयासों के चलते आने वाले समय में पहाड़ में रेल दौड़ेगी, यह निश्चित है।
कांग्रेस शासनकाल में उन्होंने संसद में रेल लाइनों के मुद्दे को ठोस तरीके से उठाया। टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट में शामिल किया। बागेश्वर के साथ ही टनकपुर-जौलजीबी, रामनगर-चौखुटिया रेल लाइन का सर्वे हुआ। इस सरकार ने पहाड़ पर रेल पहुंचाने के लिए कुछ नहीं किया।