अभी तक आपने मछुआरों को मछली बेचकर रोजी रोटी का इंतजाम करते हुए देखा होगा. मछली से अमीर होते मछुआरों के बारे में शायद ही सुना होगा. मगर ऐसा एक वाक्या हुआ है कराची में. जहां दो मछलियों ने मछुआरों को मालामाल कर दिया. हुआ यूं कि मछुआरे के जाल में दो बेशकीमती मछलियां फंस गईं.
दो मछलियों से शख्स हुआ मालामाल
अरब सागर में मछुआरों ने आम दिन की तरह उस दिन भी जाल डाला था. इसी दौरान उनके जाल में अन्य मछलियों के साथ दो दुर्लभ मछलियां भी आ गईं. ये देखकर मछुआरों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मछुआरों ने दुर्लभ दोनों मछलियों को जाल से अलग किया और बाजार में ले जाकर बेच दिया. जहां उन मछलियों की कीमत दस-दस लाख रुपये लगाई गई.
मछली के एयर ब्लेडर की है विशेष कीमत
पर्यावरण और जीव जंतुओं के लिए काम करनेवाली संस्था वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यू डब्ल्यू एल एफ) के मुताबिक, इसका साइज डेढ मीटर, वजन 30-40 किलो, होता है. संस्था का कहना है कि मछली के महंगा होने का कारण कई देशों में इसकी विशेष मांग है. खासकर इसमें पाया जानेवाला विशेष तरह का एयर ब्लेडर. ग्रीनपीस एशिया के मुताबिक हांगकांग में एयर ब्लेडर दो लाख स्थानीय डॉलर में बिकता है. दवा कंपनियां एयर ब्लेडर से कई बीमारियों की दवा बनाती हैं. इसके अलावा, चीन में भी ऐसी मछलियों को लोग शुभ मानते हैं. इसका इस्तेमाल करेंसी के तौर पर करते हैं. भारत में हम जिस तरह सोना बेचकर अपनी जरुरत पूरी करते हैं उसी तरह चीन में भी आर्थिक तंगी में इसकी महत्ता बढ़ जाती है. बताया जाता है कि 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान इसके एयर बेल्डर में निवेश किया गया था.
अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं मछली
दरअसल दोनों मछलियों का संबंध सव्वा प्रजाति से है. स्थानीय स्तर पर उसे अलग अलग नामों से जाना जाता है. सिंधी भाषा में ‘सव्वा’ कहा जाता है जबकि बलूची में ‘करखा’ के नाम से पुकारा जाता है. वहीं इसका वैज्ञानिक नाम ‘अरगाइरोसोम्स जापोनिकस’ है. सव्वा नस्ल की मछलियां ब्लूचिस्तान और सिंध के समुद्र में पायी जाती है. डब्ल्यू डब्ल्यू एल एफ ने अंदेशा जताया है कि जल प्रदूषण से ये विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी हैं.