फेसबुक ने घोषणा की है कि वह अपने प्लेटफॉर्म पर फोटोज और वीडियोज के लिए फैक्ट-चेकिंग टूल्स का विस्तार कर रही है। सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म पर ये टूल्स टेक्स्ट और लिंक्स के लिए पहले ही उपलब्ध है।
फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर छपने वाले आर्टिकल्स को रिव्यू करने के लिए स्वतंत्र, थर्ड पार्टी फैक्ट चेकर्स के साथ काम करता है। अब इसने 17 देशों के 27 पार्टनर्स के साथ फोटोज और वीडियोज के लिए फैक्ट-चेकिंग टूल को एक्सपांड किया है। फेसबुक के पास फर्जी फोटोज और वीडियोज के लिए तीन कैटेगरीज है। कंटेंट जो कि यूजर्स को धोखा देने के इरादे से ‘मैनिपुलेटेड या फैब्रिकेटेड’ होते हैं। ‘आउट ऑफ कॉन्टेक्स्ट’ कंटेंट वो फोटोज और वीडियोज है जो कि प्रामाणिक हैं लेकिन गलत व्याख्या की गई हैं। आखिरी कैटेगरी में वो फोटोज और वीडियोज शामिल है जिनमें फर्जी टेक्स्ट या ऑडियो हो।
ऐसे काम करता है फैक्ट-चेकिंग टूल
फेसबुक यूजर्स के फीडबैक के माध्यम से अधिकांश ‘संभावित फर्जी कंटेंट’ की पहचान के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। फेसबुक समीक्षा के लिए फिर इन फर्जी फोटोज और वीडियो को फैक्ट-चेकर्स के पास भेजती है। टूल्स जिसमें फोटो-वीडियो के फैक्ट-चेक होते हैं, वह रीवर्स इमेज सर्चिंग है जो वेब पर उसी तरह की इमेज ढूंढने के लिए डाटा का उपयोग करता है। फैक्ट-चेकर्स लोकेशन, डेट और टाइम, डिवाइस, फाइल टाइप, एक्सपोजर, फोटो मोडिफिकेशन डेट और टाइम जैसी डिटेल्स के लिए इमेज मेटाडाटा का विश्लेषण करता है।
फेसबुक के मुताबिक इसका फैक्ट-चेकर्स इन स्किल्स को अन्य पत्रकारिता कौशल जैसे विशेषज्ञों, शिक्षाविदों या सरकारी एजेंसियों के रिसर्च का यूज कर फोटो या वीडियो की सत्यता या असत्यता का आकलन कर सकते हैं।
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