सड़क पर वाहन चलाने के लिए क्या नियम-कायदे होते हैं, पिछले पंद्रह दिन में लोगों को शायद अच्छे से समझ आ चुका है। अब तक बगैर लाइसेंस वाहन दौड़ा रहे युवा हो या अधेड़, या एक्सपॉयरी लाइसेंस अपने घर के किसी कोने में रखे बुजुर्ग। हर कोई आजकल आरटीओ दफ्तर की दौड़ में व्यस्त है।
स्थिति ये है कि लाइसेंस आवेदन का स्लॉट पांच नवंबर तक फुल हो चुका है और आरटीओ में लाइसेंस सेक्शन में तमाम व्यवस्थाएं कम पड़ रहीं। आरटीओ से मिले रिकार्ड पर नजर दौड़ाएं तो अगले डेढ़ माह के लिए करीब 16 हजार लाइसेंस वेटिंग में हैं। यही नहीं, वाहन के पुन: पंजीकरण और फिटनेस को लेकर भी लंबी फेहरिस्त है।
नए मोटर वाहन अधिनियम में ड्राइविंग लाइसेंस के बिना वाहन चलाने पर जुर्माना दस गुना बढ़ाए जाने के बाद दून आरटीओ कार्यालय में लाइसेंस बनाने वालों की भीड़ जुट रही है। स्थिति यह है कि बीते 15 दिन में लगभग 16 हजार से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं व आवेदकों के स्लॉट पांच नवंबर तक बुक भी हो चुके हैं।
भीड़ के मद्देनजर एआरटीओ प्रशासन अरविंद पांडे ने डीएल टेस्ट के प्रतिदिन स्लॉट में भी इजाफा किया है। पहले लर्निंग लाइसेंस के लिए एक दिन में 150 लोगों का टेस्ट लिया जा रहा था। जिसे बढ़ाकर 200 कर दिया गया है। परमानेंट लाइसेंस का स्लॉट 100 से बढ़ाते हुए 140 किया गया है।
सबसे ज्यादा आवेदन दुपहिया संचालन के लाइसेंस के लिए आ रहे हैं। दरअसल, चार साल पहले लाइसेंस के कंप्यूटराइज्ड होने पहले लोगों के लाइसेंस बेहद आसानी से बन जाते थे। ऐसे लोग न सिर्फ दुपहिया बल्कि उसमें कार का लाइसेंस भी बना लेते थे। लाइसेंस कंप्यूटराइज्ड होने के बाद ऐसा होना बंद हो गया और आवेदक का परीक्षा देना अनिवार्य हो गया।
इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग बिना लाइसेंस वाहन दौड़ाए जा रहे थे। पकड़े गए तो जुर्माना 500 रुपये था, जिसे वे भुगत लेते थे। ऐसी ही स्थिति बच्चों की भी है। बिना लाइसेंस धड़ल्ले से वाहन दौड़ा रहे थे। अब चूंकि, लाइसेंस न होने पर जुर्माना 5000 रुपये किया गया है, तो सभी को डर लगने लगा है।
नाबालिग को वाहन दिया तो 25 हजार जुर्माना व तीन साल जेल
नाबालिग के वाहन चलाते पकड़े जाने पर जुर्माना 25000 रुपये और अभिभावक को तीन साल की जेल का प्रावधान है। ऐसे में इन दिनों अभिभावक 16 से 18 साल तक के बच्चों का बिना गियर का डीएल बनाने दौड़ रहे हैं। यही वजह है कि लाइसेंस की वेटिंग करीब 16 हजार क्रॉस कर चुकी है।
एक्सपॉयरी लाइसेंस की आई याद
आरटीओ में रोजाना 30 से 40 मामले एक्सपॉयरी लाइसेंस को रिन्यू कराने के आ रहे हैं। किसी का लाइसेंस दस साल पहले खत्म हो चुका है तो किसी का पांच साल पहले। पहले लाइसेंस खत्म होने पर रिन्यू कराने के लिए 100 रुपये प्रतिवर्ष जुर्माना लिया जाता था, लेकिन दिसंबर-2016 से यह जुर्माना बढ़ाकर एक हजार रुपये साल कर दिया गया था।
ऐसे में लाइसेंस रिन्यू कराने पर पांच हजार से ऊपर जुर्माना बैठ रहा। चूंकि, नया लाइसेंस मौजूदा स्थिति में बनाना बेहद कठिन है, ऐसे में लोग तगड़ा जुर्माना भरकर पुराना लाइसेंस ही रिन्यू करा रहे हैं।
आरटीओ में व्यवस्थाएं चरमराई
आरटीओ दफ्तर में अधिकारियों को यह अंदेशा ही नहीं था कि नए एमवी एक्ट को लेकर लोग इतना जागरुक हो सकते हैं एवं भीड़ दफ्तर में टूट पड़ेगी। वहां कार्मिकों व कंप्यूटर आदि की संख्या पहले की तरह ही सामान्य हैं। लाइसेंस सेक्टर में भीड़ बेकाबू होते देख अतिरिक्त कंप्यूटर फोटो खींचने के लिए लगाए गए हैं, लेकिन यह भी कम पड़ रहे।
दस्तावेजों की वेरिफिकेशन के लिए भी अतिरिक्त काउंटर लगाया गया है लेकिन ये भी नाकाफी साबित हो रहा। एआरटीओ ने बताया कि दो कर्मचारियों को वॉयरल होने के कारण छुट्टी देनी पड़ी। दफ्तर में कर्मियों की संख्या पहले ही कम है, ऐसे में लोगों की भीड़ बढ़ने से काम का बोझ कई गुना बढ़ गया है। इस बारे में मुख्यालय को भी अवगत करा दिया गया है।
सरकार को देना होगा समय
नया एमवी एक्ट लागू होने के बाद भले ही अभी व्यवहारिकता के नाम पर सरकारी प्रवर्तन एजेंसियां लाइसेंस या प्रदूषण प्रमाण पत्र, बीमा आदि न होने पर चालान न कर रही हों, लेकिन इसके लिए सरकार को कम से कम तीन माह की छूट देनी पड़ेगी। नया एक्ट होने के बाद लोग जागरुक हुए हैं एवं लाइसेंस बनाने के लिए आवेदन कर रहे हैं। सरकारी प्रक्रिया के अनुसार उनका आवेदन वेटिंग में फंसा है व नवंबर तक ही बनेगा।
यह तो वे लोग हैं जो 15 दिन में आवेदन कर चुके हैं। अभी आवेदन में और इजाफा होना तय है। परिवहन अधिकारी मान रहे हैं कि अगर यही स्थिति चलती रही तो डीएल बनाने का काम दिसंबर तक भी पूरा नहीं हो पाएगा। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि अगर इस अवधि में पुलिस अथवा परिवहन टीम किसी का चालान बिना लाइसेंस करती है तो क्या होगा। लोग आवेदन तो कर रहे हैं लेकिन लाइसेंस बनाने में हो रही देरी पर सरकार भी जिम्मेदार है। यही हाल प्रदूषण जांच केंद्रों का भी है।
देहरादून में महज 19 जांच केंद्र हैं व सभी पर तड़के से रात तक मारामारी मची हुई है। लोग अपना घर और खानपान छोड़कर आठ से दस घंटे लाइन में लगकर प्रदूषण जांच करा रहे। अगर इनकी संख्या ज्यादा होती तो लोगों को ये परेशानी नहीं झेलनी पड़ती। ऐसे में आमजन सरकार से मांग कर रहा है कि नए नियम को लागू करने के लिए कम से कम तीन माह समय दिया जाना चाहिए।
आरटीओ में ये है वेटिंग
- लर्निंग लाइसेंस, करीब 10 हजार
- परमानेंट लाइसेंस, करीब पांच हजार
- एक्सपॉयरी लाइसेंस, करीब एक हजार
- वाहन पुन: पंजीकरण, रोज 45 मामले
- फिटनेस जांच, रोज 250 मामलेडिजिलॉकर है मान्य, परिवहन सचिव ने जिलों में भेजा आदेश
आप वाहन चलाते वक्त रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी), ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) व प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र की मूल कॉपी साथ रखने से बचना चाहते हैं तो केंद्र सरकार के ट्रांसपोर्ट डिजिटल लॉकर यानी डिजिलॉकर में रख सकते हैं। मोबाइल एप डिजिलॉकर व एम. परिवहन प्रदेश में पूरी तरह मान्य है और शासन ने इसका शासनादेश तक जारी किया हुआ था। इसके बावजूद प्रदेशभर से ऐसी शिकायतें मिल रही थी कि पुलिसकर्मी वाहन चेकिंग के दौरान डिजिलॉकर में रखे दस्तावेजों को प्रमाणित नहीं मान रहे हैं और वाहन को सीज या चालान की कार्रवाई कर रहे।
इस पर सोमवार को परिवहन सचिव व परविहन आयुक्त शैलेश बगोली की ओर से पुलिस महानिदेशक व सभी जिलाधिकारियों और आरटीओ/एआरटीओ को पत्र भेजा है। जिसमें कहा गया है कि डिजिलॉकर व एम परिवहन पूरी तरह मान्य है। आरसी-डीएल समेत वाहन के तमाम दस्तावेज डिजिलॉकर में हैं तो वाहन का न तो चालान काटा जाना चाहिए, न ही उसे सीज किया जा सकता।
कुछ साल पहले तक परिवहन विभाग वाहन चालकों को आरसी व डीएल साथ रखने की छूट देने के लिए ग्रीन-कार्ड की सुविधा देता था, लेकिन बाद में सुविधा पर रोक लग गई। ऐसे में चालकों को आरसी व डीएल साथ लेकर चलने पड़ते हैं। यदि पुलिस या परिवहन विभाग का दस्ता मिल जाए तो मौके पर दस्तावेज दिखाने जरूरी हैं।
चौपहिया सवारों को तो दस्तावेजों को साथ लेकर चलने में दिक्कत नहीं, लेकिन दुपहिया सवारों को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। खासतौर से बाइक पर। डिग्गी या कोई सुरक्षित स्थान नहीं होने की वजह से बाइक में दस्तावेजों के भीगने का खतरा बना रहता है। डिजिटल लॉकर को आधार कार्ड से लिंक कर आप खुद अपने वाहन की आरसी और डीएल इसमें अपलोड कर सकते हैं। इसके लिए स्मार्ट फोन यूजर को गूगल-प्ले स्टोर से डिजिटल लॉकर एप को डाउनलोड करना होगा और सुविधा आपके मोबाइल पर शुरू हो जाएगी।
डिजिटल या डिजिलॉकर को मान्यता देते हुए सरकार ने परिवहन विभाग और ट्रैफिक पुलिस को निर्देश दिया कि वेरिफिकेशन के लिए असली दस्तावेज न देखे जाएं। आइटी एक्ट-2000 के तहत सरकार ने डिजिलॉकर या एमपरिवहन एप पर मौजूद दस्तावेज की ई-कॉपी को वैध माना है। पुलिस भी अपने मोबाइल में मौजूद दोनों एप से ड्राइवर और वाहन की जानकारी डेटाबेस से मिलान कर सकती है।
क्या है डिजिटल लॉकर
डिजिटल लॉकर या डिजिलॉकर एक तरह का वर्चुअल लॉकर है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 2015 में लांच किया था, मगर इससे जुड़े नियमों को केंद्र सरकार ने 2017 में नोटिफाई किया था। सरकार का दावा है कि एक बार डिजिलॉकर में अपने दस्तावेज अपलोड करने के बाद उन्हें फिजिकली खुद के साथ रखने की जरूरत नहीं है। संबंधित अधिकारी द्वारा वाहन के कागज मांगे जाने पर आप डिजिलॉकर दिखाकर अपना काम चला सकते हैं।
आधार होना बेहद जरूरी
अगर आपके पास आधार कार्ड है तो ही डिजिटल लॉकर में अपने जरूरी दस्तावेज रख सकते हैं। लॉकर आपके आधार कार्ड की जानकारी के जरिए ही आपका एकाउंट खोलता है। डिजिलॉकर में एकाउंट खुलने के बाद आप अपने वाहन के दस्तावेज या शैक्षिक दस्तावेज इसमें अपलोड कर सकते हैं।
डिजिटल लॉकर की खासियत ये है कि आप कहीं भी और कभी भी अपने तमाम दस्तावेज जरिए जमा कर सकते हैं। लॉकर स्कीम में हर भारतीय नागरिक वाहन और शैक्षिक समेत मेडिकल, पासपोर्ट और पैन कार्ड आदि की डिटेल को डिजिटल फॉर्म में रख सकता है।