खाद्य कारोबारी जिस जले तेल को यूं ही फेंक देते हैं, उससे अब गाड़ी चलेगी। आप भले ही इसे अभी मजाक समझें, पर एफएसएसएआइ ने इसकी कवायद शुरू कर दी है। खराब तेल का संग्रह कर इससे बायो-डीजल बनाया जाएगा। इस योजना को रिपरपज यूज्ड कुकिंग ऑयल (रुको) नाम दिया गया है।
खाद्य सुरक्षा विभाग ने देहरादून हलवाई एसोसिएशन और देहरादून बेकरी एसोसिएशन के सहयोग से हरिद्वार रोड स्थित अतिथि कम्युनिटी सेंटर में एक कार्यशाला का आयोजन किया। खाद्य सुरक्षा विभाग के जिला अभिहित अधिकारी जीसी कंडवाल ने बताया कि दुकानदार अब एक ही तेल में तीन बार से अधिक खाद्य पदार्थ नहीं बना सकेंगे। ऐसे तेल का इस्तेमाल बायो-डीजल बनाने में होगा। रिपरपज यूज्ड कुकिंग ऑयल (रुको) की जानकारी उन्होंने व्यापारियों को दी। कहा कि अपने आदेश से एफएसएसएआइ दो मकसद पूरा करना चाहती है।
पहला ट्रांस फैट, जिसकी वजह से दिल की बीमारियां होती है, उनपर लगाम कसना और दूसरा बायोडीजल मिशन को मजबूती प्रदान करना है। खाद्य सुरक्षा अधिकारी संजय सिंह ने फूड सेफ्टी को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी दी। व्यवसायियों के सवालों के जवाब देते कहा कि भोग और भंडारों को भी फूड सेफ्टी नियमों के तहत कवर किया जा रहा है। इनमें भी किसी तरह की कमी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी।
कार्यशाला में गति फाउंडेशन के अनूप नौटियाल, श्रम अधिकारी पिंकी टम्टा आदि ने भी कई अहम जानकारियां दीं। इस दौरान देहरादून हलवाई एसोसिएशन के अध्यक्ष आनंद स्वरूप गुप्ता, महामंत्री अरविंद कुमार गोयल, देहरादून बेकरी एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुपम गुलाटी, खाद्य सुरक्षा विभाग के योगेंद्र पांडे, मंजू, यूआरएस सर्टिफिकेशन के आशीष भार्गव आदि मौजूद रहे।
एक ही तेल बार-बार इस्तेमाल करना घातक
बार-बार गर्म करने के कारण तेल का टोटल पोलर कंपाउड (टीपीसी) 25 फीसद से कहीं अधिक हो जाता है, जो इसे जहरीला बना देता है। खासतौर से मांसाहारी भोजन बनाने के बाद बचे तेल में हेक्टोसाइक्लिक अमीन की मात्र बहुत अधिक हो जाती है। इसके अलावा बार-बार फ्राई करने के बाद बचे तेल में पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) की मात्र भी बढ़ जाती है, जो कैंसर का मुख्य कारक माना जाता है।
तीन श्रेणियों में चिह्नित होंगे प्रतिष्ठान
– रोजाना 50 लीटर से अधिक तेल का इस्तेमाल करने वाले।
– 25 से 50 लीटर के बीच खाद्य तेल का इस्तेमाल करने वाले।
– 25 लीटर से कम तेल का इस्तेमाल करने वाले।
अपना बच्चा भी किचन में मिला तो बाल श्रम
कोई भी खाद्य कारोबारी अपने यहां 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नौकरी पर नहीं रख सकता। खुद उनके भी बच्चे किचन में काम करते मिले तो भी श्रम कानून के तहत बीस हजार रुपये का जुर्माना और कानूनी कार्रवाई होगी। बल्कि जेल तक का प्रावधान है। इसके साथ ही 14 से 18 साल तक के बच्चों को नौकरी पर रखने पर शिक्षा की व्यवस्था भी प्रतिष्ठान के मालिक को करनी होगी और उन्हें भट्टी से भी दूर रखना होगा। यह जानकारी श्रम अधिकारी पिंकी टम्टा ने दी। उन्होंने बताया कि किसी भी कर्मचारी को नकद में भुगतान नहीं किया जा सकता।
कोई एक माह के लिये ही काम करेगा, उसे चेक से ही तनख्वाह देनी होगी। सभी कर्मचारियों की पहचान के लिए आधार कार्ड पंजीकरण करना होगा और जिनके पास आधार नहीं होगा, उनकी दसवीं की शैक्षिक प्रमाणपत्र की कॉपी पहचान के तौर पर रखनी होगी। प्रतिष्ठान के मालिक को कर्मचारियों के वेतन, ओवरटाइम और छुट्टी का रजिस्टर भी बनाना होगा। उन्होंने अकुशल, अर्ध कुशल और कुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी की भी जानकारी दी। आम आदमी बीमा योजना की जानकारी देते कहा कि इससे अधिकाधिक श्रमिक जोड़े जाएं।
इधर, हलवाई एसोसिएशन के अध्यक्ष आनंद स्वरूप गुप्ता ने कहा कि व्यापारी बच्चों को लालच में नहीं, बल्कि संवेदना के आधार पर नौकरी देते हैं। कई बार ऐसे भी बच्चे काम मांगने आते हैं, जिनके माता-पिता नहीं होते। सरकार को चाहिये कि इनके लिए व्यवस्था करे।